राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास
राम जन्मभूमि
हिन्दुओं के अनुसार- श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक मंदिर था जिसे बाबर ने तोड़कर मस्जिद बना दी थी। इसके चलते एक दीर्घकालीन और विवादित अधिकारिक प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) का मुख्य योगदान रहा।
६ दिसम्बर १९९२ को, करीब १५ लाख की संख्या में कर सेवकों ने बाबरी मस्जिद को तोड़ा, जिससे राम जन्मभूमि मुक्त हुई और वहां एक अस्थायी मंदिर बनाया गया। यह घटना एक बड़े विवाद का केंद्र बन गई और इसने देशभर में विभाजन और आपसी विरोधों को उत्पन्न किया।
अब वक्त बीत चुका है, और इस मुद्दे पर कई न्यायिक और सामाजिक प्रक्रियाएं हुई हैं।हालांकि, इस मुद्दे पर विभिन्न स्तरों पर विचारधारा है और न्यायिक प्रक्रिया भी जारी है। राम जन्मभूमि के आस-पास के क्षेत्र में मंदिर की निर्माण प्रक्रिया भी हुई है और यह एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया है जो राम भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है
history of Ram Janmabhoomi dispute,
राम जन्मभूमि विवाद
यहाँ एक संक्षेपित रूप में राम जन्मभूमि विवाद का इतिहास दिया गया है
- 1528 मुग़ल सम्राट बाबर ने राम जन्मभूमि पर मस्जिद बनाई। हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में यहां भगवान राम का जन्म स्थान माना जाता है।
- 1853 हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच पहला विवाद हुआ जिसमें राम जन्मभूमि के क्षेत्र की ज़मीन पर विवाद उत्पन्न हुआ।
- 1859 ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान, अंग्रेजों ने ताजमहल वाले तरीके से स्थिति को सुलझाने के लिए विवादित स्थल को हिन्दूओं और मुस्लिमों में बाँट दिया, जिसके अनुसार मुस्लिमों को मस्जिद के अंदर, और हिन्दूओं को बाहर पूजा के लिए जगह मिली।
- 1949 भगवान राम की मूर्ति को मस्जिद के अंदर से बाहर लाया गया, जिससे तनाव बढ़ा। सरकार ने इसके गेट पर ताला लगा दिया।
- 1986 जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिन्दू पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया, जिसके खिलाफ मुस्लिम समुदाय ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
- इन घटनाओं ने एक विवाद का नींव रखा और समय के साथ, इस विवाद ने राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर बड़े विवाद को जन्म दिया।
- 1989 विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर की मुहिम शुरू की, जिसमें विवादित स्थल से सटी जमीन पर मंदिर बनाने की कड़ी कोशिश की गई।
- 6 दिसम्बर 1992 बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए अयोध्या में हिन्दू कर सेवकों ने कार्रवाई की, जिससे बड़े दंगे हुए और कई लोगों की जानें गईं।
- 16 दिसम्बर 1992 इस घटना के बाद, लिब्रहान आयोग की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य था विवादित स्थल पर मंदिर या मस्जिद का निर्माण करने के लिए समीक्षा करना।
- 1993 लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट जारी की, लेकिन उसकी जारी रिपोर्ट में फैसला नहीं हुआ।
- 1993 सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के बाद, केंद्र सरकार ने जमीन के संग्रहण का अधिग्रहण किया।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करे- 1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी
हाल की घटना: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा किया है कि जमीन का पुनर्निर्माण करने के लिए उन्हें अतिरिक्त जमीन चाहिए। इसके संबंध में कोर्ट में चर्चा जारी है।
अयोध्या विवाद
अयोध्या विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है जो नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा उभार पर था। इस विवाद का मूल मुद्दा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है। विवाद इस बात को लेकर था कि क्या हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया। बाबरी मस्जिद को एक राजनीतिक रैली के दौरान नष्ट कर दिया गया था, जो 6 दिसंबर 1992 को एक दंगे में बदल गया था। जो संगठन राम मंदिर के निर्माण का समर्थन कर रहे थे, उन्होंने 1992 के दिसंबर में एक कारसेवा का आयोजन किया वे राम मंदिर के निर्माण में श्रमदान के लिए संगठित हुए थे, बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भूमि शीर्षक का मामला दर्ज किया गया था, जिसका फैसला 30 सितंबर 2010 को सुनाया गया था। फैसले में, तीन न्यायाधीशों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अयोध्या की 2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर) भूमि को तीन भागों में विभाजित किया जाएगा, जिसमें 1⁄3 राम लला या हिन्दू महासभा द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाना था, 1⁄3 सुन्नी वक्फ बोर्ड और शेष 1⁄3 निर्मोही अखाड़ा को दिया जाना था।
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करे-9 नवंबर, 2019 को, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसले को
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