सुंदरकांड पाठ हिंदी में अर्थ सहित (91-100 चौपाई का भावार्थ हिंदी में)

सुंदरकांड पाठ हिंदी में 

चौपाई 91-100  भावार्थ हिंदी में

श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे  हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है
चौपाई
जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।।
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा।।91
91इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"जिसका नाम सुनकर भवानी (माता पार्वती) भी जपती हैं, वही नर ज्ञानी होता है और उसका भव-बंधन (संसार से मुक्ति) हो जाता है। उसी प्रभावशाली नाम के ध्यान से हनुमानजी ने लंका के राक्षसों को बंधित किया था। प्रभु के कार्य के लिए कपि ने उन्हें बंधाया।"
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि जो व्यक्ति इस नाम का जप करता है, वह नर ज्ञानी हो जाता है और उसका संसार से मुक्ति होता है। हनुमान जी ने भी प्रभु श्रीराम के नाम का जप करके लंका के राक्षसों को बंधित किया और प्रभु के कार्य के लिए उन्हें बंधित किया।
चौपाई
कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।।
दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई।।92
92इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"जब सुनी कि कपि ने निसाचरों को बंधन में डाला है, तो सभी लोग उस प्रमाण को देखने के लिए सभा में आए। कपि ने दस मुख वाले राक्षस सभा को देखा और उसमें जाकर कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि प्रभुता में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ था।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण के दस मुख वाले सभा को देखने के लिए गए हैं और उनकी सभा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। इससे साफ होता है कि हनुमान जी ने अपनी प्रभुता को सुनिश्चित करने के लिए राक्षसों को बंधन में डाला है।
sunderkand lesson in hindi
चौपाई
कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।।
देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका।।93
93इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 
"जब सुर (देवताएँ) बिनीती भृकुटी देखती हैं, तो वह सभी चिन्हित हो जाती हैं। कपि ने उनके प्रताप को देखकर किसी भी संदेह में नहीं पड़ा, जैसे कि अगरुड़ नामक गरुड़ को देखता है, तो वह असंका होता है।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण के सामर्थ्य का वर्णन कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जब देवताएँ भगवान के प्रताप (महाकाव्य) को देखती हैं, तो उनकी भृकुटी (माथा) में उन्हें चिन्हित हो जाती है। कपि (हनुमान) ने भी रावण के महत्वपूर्ण प्रताप को देखकर किसी भी संदेह में नहीं पड़ा, जैसे कि गरुड़ को देखकर भी कोई असंका नहीं होती।
चौपाई
कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।।
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।।94
94इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"तुम लंकेश्वर (रावण), तुम्हारा स्वभाव कैसा है? किस प्रकार तुमने अपने बल से बन को जला दिया है? कौन कह सकता है कि तुमने कैसे और किस प्रकार अपनी शक्ति का उपयोग किया है? मैंने तुम्हारी बातें श्रवण की हैं, लेकिन मैं तुम्हें देखने में असमर्थ हूँ, क्योंकि तुम अत्यन्त असंकेत (रहस्यमय) हो।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण से उनके बल और अद्भुत शक्तियों के बारे में पूछ रहे हैं, और वे जानना चाहते हैं कि रावण ने कैसे अपनी शक्ति का उपयोग किया है। हनुमान जी कह रहे हैं कि वे तो रावण की बातें सुन सकते हैं, लेकिन उन्हें देखने में असमर्थ हैं, क्योंकि रावण रहस्यमय हैं और उनकी शक्ति अत्यंत असंदिग्ध है।
चौपाई
मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।।
सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।।95
95इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"मैंने निसाचरों को किसी भी प्रकार का अपराध नहीं किया है, कहो तोहि मेरे प्राणों को कहीं भी कोई बाधा नहीं हुई है। हे रावण, तुम्हने ब्रह्मांड को प्राप्त किया है, जिसमें ब्रह्मा द्वारा सृष्टि, विष्णु द्वारा पालन, और शिव द्वारा संहार किया जाता है, जो सब माया से उत्पन्न होता है।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण से अपने निष्कलंक और निर्दोष रूप का प्रमाण दे रहे हैं, और यह कह रहे हैं कि उन्होंने किसी भी प्रकार का अपराध नहीं किया है और उनके प्राणों को कोई बाधा नहीं हुई है। उन्हें रावण को बता रहे हैं कि ब्रह्मांड को प्राप्त करने के बाद भी तुम अज्ञानी हो, क्योंकि तुम अपनी माया में अवगत होते हो।
चौपाई
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा।
जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।।96
96इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"जिसका बल और वीरता ब्रह्मा, हरि (विष्णु), और ईसा (शिव) के समान है, जो सृष्टि करता है, पालता है और हरता है, उसका सिर सहस्रानन शेषनाग भी धारण करता है। उस शक्तिशाली पुरुष के सीसे से ही अंडक के समान सम्पूर्ण गिरिराज (हिमालय) सहित कानन भी धराया जाता है।"
इस चौपाई में हनुमान जी भगवान शिव के महाकाव्य में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के सामर्थ्य का वर्णन कर रहे हैं, और उन्हें सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी रूप में पूजनीय कह रहे हैं।
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता।
हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।।97
97इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"तुमने जिन विभिन्न रूपों में सुरक्षा की है, वह सब रूप सीखने वालों को शिक्षा देने वाले हो। जैसे किसी कठिन युद्ध को आसानी से भंजन करते हैं, वैसे ही तुमने राक्षसों के समूह को भी नष्ट किया है, जिससे नृप दल भी मदगंजा हो गया है।"
इस चौपाई में हनुमान जी राक्षसों के समूह को हरने की बहादुरी का वर्णन कर रहे हैं और उन्हें सीखने वालों को शिक्षा देने का संकेत है। हनुमान जी ने राक्षस सेना को नष्ट करने में अपनी अद्भुत क्षमता और साहस को प्रकट किया था।
चौपाई
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।।
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।।98
98इस चौपाई का अर्थ

"खर, दूषण, और त्रिसिरा अरु बाली, इन सभी ने अपने-अपने अतुलनीय बल से सबको मारा। मैं तुम्हारी प्रभुता को जानता हूँ, और तुमने सहस्त्रबाहु राक्षसों के साथ युद्ध किया।"
इस चौपाई में भगवान राम ने खर, दूषण, त्रिसिरा, और बाली को उनके अतुलनीय बल से मार डाला है और इससे यह भी प्रकट होता है कि उनकी प्रभुता अत्यंत शक्तिशाली है। इसके साथ ही, चौपाई में राम ने अपनी प्रभुता का ज्ञान रखने वालों को अपनी महाकाव्य के महत्वपूर्ण संदेशों में से एक को साझा किया है।
चौपाई
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।।
खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।।99
99इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"जब बालि ने समुद्र को चलाकर राम से मिला, तब कपि हनुमान ने राम के वचनों को सुनकर हंसते हंसते उसका स्वागत किया। राम के लिए फल खाने के लिए, हनुमान ने भूखा रहते हुए एक रूख को छूपने का तरीका देखा।"
इस चौपाई में हनुमान जी की प्रेरणा और उनका आत्मसमर्पण दिखाया जा रहा है। वह राम के लिए भूखा रहकर फलों को छुपाने का क्रम अपनाते हैं, जो उनकी चतुराई और विवेक को दर्शाता है।
चौपाई
सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।।
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।।100
100इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"सभी के शरीर में परम प्रिय स्वामी हैं, जो मुझे मारने वाले कुमारग (राम जी) हैं। जिन लोगों ने मुझे मारा है, उन्हें मैं भी मारता हूं। इसलिए, हे राम, तुम्हारे तनयों को मैं भी बाँध लूँगा।"
इस चौपाई में हनुमान जी राम चंद्र जी के प्रति अपनी भक्ति और सेवा भाव को दिखा रहे हैं। हनुमान जी यह कह रहे हैं कि जिन्होंने मुझे मारा है, उन्हें मैं भी मारता हूं और राम जी के तनयों को उनसे बाँध लूँगा। यह भक्ति भाव हनुमान जी की निष्ठा और प्रेम को दर्शाता है।

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