अरण्यकाण्ड के 13 दोहे अर्थ सहित 13 couplets of Aranyakaand with meaning
दोहा :
लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।
ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥
इस दोहे में कहा गया है कि लक्ष्मण की बहुत अल्पता थी, उन्होंने नाक और कान के बिना किया। इसलिए रावण ने उनसे मन में चुनौती देने का प्रयास किया।दोहा :
सावधान होइ धाए जानि सबल आराति।
लागे बरषन राम पर अस्त्र सस्त्र बहुभाँति॥19 क॥
इस दोहे में कहा गया है कि सावधानी से धावा करने वाले राक्षस जानते हैं कि उनका आक्रमण कितना मजबूत होता है। उनके आक्रमण से भगवान राम पर विभिन्न प्रकार के आस्त्र-शस्त्र बरसने लगते हैं।तिन्ह के आयुध तिल सम करि काटे रघुबीर।
तानि सरासन श्रवन लगि पुनि छाँड़े निज तीर॥19 ख॥
इस चौपाई में कहा गया है कि भगवान राम ने राक्षसों के आयुधों को बिना आयुधों को हानि पहुंचाए समान कर दिया। जैसे वह रावण की धनुषा को अपने कान में रख लिया, फिर उसी की शक्ति से उसी की धनुषा के तीर को पुनः छोड़ दिया।दोहा :
राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान।
करि उपाय रिपु मारे छन महुँ कृपानिधान॥20 क॥
इस दोहे में कहा गया है कि जो व्यक्ति भगवान के नाम का जाप करके अपने शरीर को त्यागता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है। भगवान की कृपा से शत्रुओं को मार डालता है, क्योंकि वह अनन्त कृपासागर है।हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान।
अस्तुति करि करि सब चले सोभित बिबिध बिमान॥20 ख॥
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान की महिमा को गाते हुए देवताओं के द्वारा हर्षित होकर सुमन्त्रे चमकते हैं और स्वर्गीय पक्षियों द्वारा आकाश में शोभा प्रकट होती है। सभी विभिन्न वाहनों द्वारा भगवान की स्तुति करते हुए सभी विचित्र विमानों में चले जाते हैं।दोहा :
सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ।
तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ॥21 ख॥
इस दोहे में कहा गया है कि सभा में मैं बहुत तरह से व्याकुल होकर रोता हूं। मुझे लगता है कि क्या मैं इस दशा से बाहर निकल पाऊंगा, जैसे कि दस कंधर में फंसे हुए हों।दोहा :
सूपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति।
गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति॥22॥
इस दोहे में कहा गया है कि रावण की बहन सूर्प्णक्हा को बहुत तरह से समझाया गया, परन्तु वह बलपूर्वक बात कहती रही। उसने अधिक सोचने में अपने घर से बाहर जाने का निर्णय किया, और उसकी नींद रात्रि में नहीं आई।दोहा :
लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद।
जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद॥23॥
इस दोहे में कहा गया है कि जब लक्ष्मण ने जनक कुमारी सीता के संग वन में लकड़ी और फल की रेशमी जड़ें लेने गए थे, तब सीता ने कृपाशाली होकर हंसते हुए उनसे बात की और उन्हें सुखद वर्षा की।दोहा :
करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात।
कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात॥24॥
इस दोहे में कहा गया है कि जब भगवान राम ने मारीच की पूजा की और सम्मान से बात की, तो उन्होंने सादरता से पूछा कि ऐसा क्यों है कि आपका मन बहुत अकस्मात बहुत बेचैन रहता है?दोहा :
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड।
खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड॥25॥
इस दोहे में कहा गया है कि जैसे ताड़का को सुबाह ही हरियाणे तथा वीरभद्र को धनुष के बाणों ने विघ्नित किया, ठीक उसी तरह खर और दूषन को रामजी ने मानव समुदाय के हित के लिए बंधन में डाला।दोहा :
मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान।
फिरि फिरि प्रभुहि बिलोकिहउँ धन्य न मो सम आन॥26॥
इस दोहे में कहा गया है कि जिस प्रकार सरासन (तीर) राम की धनुषा के पीछे होते हुए चलते हैं, ठीक उसी तरह मैं भी उसके पीछे-पीछे चलता रहता हूँ। मैं बार-बार भगवान को देखने के लिए धन्य हूँ, जैसा कि किसी और को नहीं मिलता।दोहा :
बिपुल सुमर सुर बरषहिं गावहिं प्रभु गुन गाथ।
निज पद दीन्ह असुर कहुँ दीनबंधु रघुनाथ॥27॥
इस दोहे में कहा गया है कि देवताओं ने बहुत से सुंदर गाने गाकर प्रभु राम की महिमा की। वे असुरों को भी अपने पद में आने का अवसर प्रदान करके उन्हें दीनबंधु, यानी कि दीनों के संगठन के अधिपति, बना दिया।दोहा :
क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ।
चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ॥28॥
इस दोहे में कहा गया है कि जब रावण क्रोधित होकर रथ में बैठा, तो वह आतुर होकर आसमान के पथ की ओर चला, लेकिन उसका रथ वहाँ जाने से विचलित हो गया।दोहा :
हारि परा खल बहु बिधि भय अरु प्रीति देखाइ।
तब असोक पादप तर राखिसि जतन कराइ॥29 क॥
इस दोहे में कहा गया है कि जब दुर्जन की हानि होती है, तो उसके अनेक प्रकार के भय और प्रेम को देखकर उस पर ध्यान देना चाहिए। तब तुलसी के पेड़ को सही ढंग से पानी देने के लिए प्रयास करें।दोहा :
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर।
निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर॥30॥
इस दोहे में कहा गया है कि श्रीरामचंद्रजी के कृपासिंधु भगवान हनुमान ने अपने सिर को श्रीराम के पादों में रखकर उनकी कृपा को प्राप्त किया। उन्होंने भगवान राम की छवि को देखा और उनके दर्शन से सभी पीड़ाएँ दूर हो गईं।
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