देवी दुर्गा की महिमा

देवी दुर्गा की महिमा glory of goddess durga

अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू॥
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू॥ 428

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:

"अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू॥
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू॥"
"अब" - अब, अब से
"जौ" - जब
"तुम्हहि" - आपमें
"सुता" - संतान, बेटी
"पर नेहू" - प्रेम करती हैं
"तौ" - तो, तब
"अस" - ऐसा
"जाइ" - जाना चाहिए
"सिखावन देहू" - सिखाना चाहिए
अर्थात, जब आपकी संतान (बेटी) आपसे प्रेम करती है, तो आपको ऐसा काम करना चाहिए जिससे वह अच्छे तरीके से सीख सके। वह काम ऐसा होना चाहिए जिससे उसे महादेव (भगवान शिव) का अनुभव हो, लेकिन उसकी समस्याओं का हल नहीं होता।

नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू॥
अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका॥429

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:

"नारद" - संत नारद (धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित संत और ऋषि)
"बचन" - वचन, उक्ति
"सगर्भ" - अत्यंत महत्त्वपूर्ण, गूढ़
"सहेतू" - सहारा, संरक्षण
"सुंदर" - सुंदर, आकर्षक
"सब गुन निधि" - सभी गुणों का भंडार
"बृषकेतू" - चंद्रमा के समान, चंद्रमौलि भगवान शिव का एक नाम
"अस" - इस प्रकार, इस रूप में
"बिचारि" - विचार करके
"तुम्ह" - तुम्हें, आपको
"तजहु" - छोड़ दो
"असंका" - संदेह, शंका
"सबहि भाँति" - हर रूप में, सभी प्रकार से
"संकरु" - भगवान शिव का एक नाम
"अकलंका" - निष्कलंक, निर्दोष, शुद्ध
इस श्लोक में कहा जा रहा है कि नारद ऋषि के वचन बड़े महत्त्वपूर्ण और गूढ़ होते हैं। भगवान शिव के गुणों का भंडार हैं, और उनके रूप को समझकर संदेहों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि वे हर रूप में शुद्ध और निर्दोष हैं।

सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं॥
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी॥430

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:
"सुनि" - सुनकर
"पति बचन" - पति की वाणी, भगवान शिव के वचन
"हरषि मन माहीं" - मन में आनंद होता है
"गई तुरत" - तुरंत जाकर
"उठि" - उठकर
"गिरिजा" - भगवान शिव की पत्नी, पार्वती
"पाहीं" - पाया, पहुँची
"उमहि" - उन्होंने
"बिलोकि" - देखा
"नयन भरे" - आँखों में भरा हुआ
"बारी" - पंक्ति
"सहित" - साथ
"सनेह" - प्यार, स्नेह
"गोद बैठारी" - गोद में बैठाया
इस श्लोक में बताया जा रहा है कि पार्वती ने भगवान शिव के वचन सुनकर बहुत खुशी महसूस की और तुरंत उठकर उनके पास गई। उन्होंने शिव को देखकर आँखों में आंसू भर आये और प्यार से उन्हें गोद में बैठाया।

बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई॥
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी॥431

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है, और इसका अर्थ है:
"बारहिं बार" - बारह बार, बार-बार
"लेति" - लेकर
"उर लाई" - सीने से लगाया
"गदगद कंठ" - थरथराती आवाज़
"न कछु कहि जाई" - कुछ नहीं कह पा रही
"जगत मातु" - जगत की माँ
"सर्बग्य" - सभी को जानने वाली
"भवानी" - पार्वती, भगवान शिव की पत्नी
"मातु सुखद" - खुशीप्रद माँ
"बोलीं मृदु बानी" - मृदु और मिठी बोली
इस श्लोक में बताया जा रहा है कि जब देवी पार्वती भगवान शिव के पास बार-बार जाकर उनसे बात करने की कोशिश कर रही है, तो उनकी आवाज़ थरथराई और वे कुछ नहीं कह पा रहीं। जगत की माँ, देवी पार्वती, की बातें बहुत मृदु और मिठी होती हैं।

सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि॥432

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है और इसका अर्थ है:
"माताजी, सुनिए, मैंने एक स्वप्न देखा है और मैं उसे आपको सुना रहा हूँ।
उस स्वप्न में भगवान श्रीराम बहुत सुंदर और गौरवमय हैं, और उनका उपदेश मुझे अत्यंत मोहक लगता है।"
यह श्लोक मातृभाव, श्रद्धा, और भगवान के उपदेश की महत्ता को प्रमोदपूर्वक बताता है और स्वप्न के माध्यम से उनके दर्शन का आनंद व्यक्त करता है।

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