किष्किंधा कांड छंद अर्थ सहित

किष्किंधा कांड छंद अर्थ सहित Kishkindha Kand verses with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के छंद अर्थ सहित हैं:
छंद
कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं,
त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं ||
अर्थ 

कपि सेन संग - कपि सेना के साथ सँघारि निसिचर रामु - निसिचरों को संहार करने वाले राम सीतहि आनिहैं - सीता माता के साथ आएं
त्रैलोक पावन - तीनों लोकों को पवित्र सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं - जो सुन्दरता में सर्वश्रेष्ठ हैं, वे देवताएं, मुनियाँ, और नारद आदि बोलते हैं
इस दोहे में तुलसीदास जी भगवान राम की महिमा गाते हैं और उनके द्वारा किए गए निसिचर संहार की कथा को सुना रहते हैं
इस छंद में तुलसीदास जी भगवान राम के लक्ष्मण और वानर सेना के साथ लंका में रावण और उसके सेना का संहार करते हुए का वर्णन कर रहे हैं। सीता के साथ राम का मिलन भी हो चुका है। इस छंद में राम की वीरता और धर्म के प्रति अपना समर्पण प्रकट हो रहा है।।
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई,
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई ||
अर्थ
जो सुनत गावत कहत समुझत - जो श्रवण करता है, गाता है, और समझता है परम पद नर पावई - वह पुरुष आत्मा को परम पद (ब्रह्म रूपी परम आत्मा) को प्राप्त करता है
रघुबीर पद पाथोज - रघुकुल श्रीराम के पाद को पथिक (यात्री) कहता है मधुकर दास तुलसी गावई - मधुकर दास तुलसी (तुलसीदास) गाता है
इस में तुलसीदास जी श्रीराम की महिमा गाते हैं और यह कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रीराम की कथा सुनता है, उसे आत्मा को परम पद प्राप्त होता है। और वह पुरुष रघुकुल श्रीराम के पाद को यात्री कहता है।
इस छंद में तुलसीदास जी भगवान राम की महिमा की स्तुति करते हैं। यह छंद उनके भक्ति भावना और राम भगवान के अद्वितीय पद की महत्ता को व्यक्त करता है। इसमें कवि कह रहे हैं कि जो भक्त रामकथा को सुनता है, गाता है और समझता है, वह परम पद (भगवान का उच्च पद) को प्राप्त करता है। इसमें मधुकर दास तुलसी की आत्मा राम की भक्ति में रमी हुई है और वह राम की महिमा का गान करता है।

रामायण के "किष्किंधा काण्ड" में, भगवान राम, लक्ष्मण, और वानरराज सुग्रीव और हनुमान का मिलन विस्तार से वर्णित

रामायण के "किष्किंधा काण्ड" में, भगवान राम, लक्ष्मण, और वानरराज सुग्रीव और हनुमान का मिलन विस्तार से वर्णित है। यह घटना वानरराज सुग्रीव के प्रमाणस्वरूप राम और लक्ष्मण के साथ हुई थी, जब वे वनवास के दौरान किष्किंधा नामक स्थान में आए थे।
सुग्रीव और उसके सभी वानर सैन्य विभीषण की सहायता कर रहे थे, जो रावण के बाहर निकलकर भगवान राम की सेना के पास गए थे। सुग्रीव ने राम से अपनी दुखभरी कहानी सुनाई और भगवान राम ने उससे मित्रता करने का निर्णय लिया।
इसके बाद, भगवान राम, लक्ष्मण, और सुग्रीव ने मिलकर साज्वल नामक वानर के साथ हनुमान को भेजा ताकि हनुमान सीता माता का पता लगा सके और उनके साथ संदेश पहुंचा सके। हनुमान ने आश्रम में सीता माता को देखा, उनसे मिला, और राम का सन्देश सुनाया। इसके पश्चात सुग्रीव, हनुमान, राम और लक्ष्मण ने मिलकर रावण के खिलवारी होने वाले वानर सेना के साथ राम की सेना का समर्थन करने का निर्णय लिया।
इस प्रकार, किष्किंधा काण्ड में राम, लक्ष्मण, हनुमान, और सुग्रीव का मिलन हुआ और उनका साथी बना।

राम ने किष्किंधा के बाली का वध किया

राम ने किष्किंधा के बाली का वध किया था। इसका वर्णन "रामायण" के किष्किंधा काण्ड में होता है। बाली, जो वानरराज था, अपने भाई सुग्रीव को निकालकर उसकी पत्नी सीता को प्राप्त करने के लिए रावण के साथ मिला हुआ था।
सुग्रीव ने भगवान राम की सहायता मांगी थी और राम ने उसकी सहायता करने का निर्णय लिया था। राम, लक्ष्मण, और सुग्रीव ने वानर सेना के साथ मिलकर किष्किंधा का दर्शन किया। सुग्रीव ने बाली के साथ संघर्ष करने के बाद राम की सेना के साथ मिलने का सोचा था।
राम ने एक तरफ़ खड़े होकर बाली को उसके आगे बुलाया और उसके साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में, राम ने एक बाण से बाली को वध कर दिया। इस घटना को समर्थन में धर्म और न्याय के प्रति आदर के साथ वर्णित किया गया है, क्योंकि बाली ने अन्धकार में छिपकर अन्य व्यक्तियों के साथ अन्याय किया था।

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