श्री रामचरित मानस किष्किन्धा काण्ड दोहा अर्थ सहित

श्री रामचरित मानस किष्किन्धा काण्ड दोहा अर्थ सहित Shri Ramcharit Manas Kishkindha Kand Doha with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के दोहा 21-30 अर्थ सहित हैं
दोहा
एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ,
नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरुथ ||२१ ||
इस दोहे का अर्थ है
"इस प्रकार बना बनर जूथ आई, जिसके विभिन्न रंगों को देखकर सभी दिशाओं में ब्रजभाषा में विचार किया जा सकता है॥२१॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि बनर सेना इस प्रकार बनी है, जिसमें विभिन्न रंगों की विविधता है। यह सेना ब्रजभाषा में समझाई जा सकती है और इससे सभी दिशाओं में इस सेना की विशेषता का विचार किया जा सकता है॥२१॥
दोहा 
बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत ,
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत ||२२ ||
इस दोहे का अर्थ है

"सब बनरों ने जिधर-जिधर श्रीराम के आज्ञा का अनुसरण किया, तब सुग्रीव ने अंगद, नल, और हनुमान से बोला॥२२॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि जब बनर सेना ने श्रीराम के आज्ञा का पालन करते हुए अनेक स्थानों पर जाकर चरण सेवन किया, तब सुग्रीव ने अपने उपन्यास में अंगद, नल, और हनुमान से बातचीत की॥२२॥
दोहा  
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह,
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह ||२३ ||
इस दोहे का अर्थ है

"सभी बनर चले, सरिता, सर, और गिरि की खोज करते हैं, राम के कार्य में लगे हुए मन ने तन को छोड़कर खोज की॥२३॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि सभी बनर सेना के सदस्य चले हैं और सरिता, सर, और गिरि की खोज कर रहे हैं। मन ने तन को छोड़कर राम के कार्य में लगा हुआ है और वह भी खोज कर रहा है॥२३॥
दोहा 
दीख जाइ उपवन बर सर बिगसित बहु कंज,
मंदिर एक रुचिर तहँ बैठि नारि तप पुंज ||२४ ||
इस दोहे का अर्थ है

"उपवन में बड़े ही सुंदर सर कंज के पेड़ों का समृद्धि से भरा दृश्य दिखाई देता है, एक रुचिर मंदिर में वहां एक नारी बैठी है, जो तपस्या कर रही है॥२४॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि उपवन में बड़े ही सुंदर सर कंज के पेड़ों का समृद्धि से भरा दृश्य दिखाई देता है। वहां एक रुचिर मंदिर में एक नारी बैठी है जो तपस्या कर रही है॥२४॥
दोहा  
बदरीबन कहुँ सो गई प्रभु अग्या धरि सीस,
उर धरि राम चरन जुग जे बंदत अज ईस ||२५ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"बदरीबन में जाकर मैंने वहां प्रभु की अज्ञा को मानकर सीस झुका लिया है, मेरे हृदय में राम के चरण को धारण करने वाले भक्त को बंदगी में आता हूँ॥२५॥"
इस दोहे में हनुमानजी व्यक्तिगत भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से बदरीबन में जाकर श्रीराम की अज्ञा का पालन करने का संदेश दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि उनका सीस सिर्फ और सिर्फ प्रभु की अज्ञा को मानने के लिए है, और उनका हृदय राम के चरणों को धारण करने में लगा हुआ है॥२५॥
दोहा
निज इच्छा प्रभु अवतरइ सुर महि गो द्विज लागि,
सगुन उपासक संग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि ||२६ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"प्रभु ने अपनी इच्छा के अनुसार देवताओं, महर्षियों और गौभक्षकों में अवतरित होते हैं, वहां सगुण उपासकों के साथ रहकर सभी को मुक्ति प्रदान करते हैं, सब कुछ त्यागकर॥२६॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि प्रभु अपनी इच्छा के अनुसार देवताओं, महर्षियों और गौभक्षकों में अवतरित होते हैं और वहां सगुण उपासकों के साथ रहकर सभी को मुक्ति प्रदान करते हैं, सब कुछ त्यागकर॥२६॥
दोहा  
मोहि लै जाहु सिंधुतट देउँ तिलांजलि ताहि,
बचन सहाइ करवि मैं पैहहु खोजहु जाहि ||२७ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"मुझे लेकर सिंधु तट पर जाकर तिलांजलि दें, वहां आपके उपदेश के साथ मैं सच्ची प्रार्थना करूँगा, मेरे बचनों को सहारा देकर मुझे पहचानें और वहां आपकी खोज करेंगे॥२७॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि उन्होंने सागर से एक तिल को लेकर सिंधु तट पर जाने की प्रार्थना की है और उनकी इस प्रार्थना के साथ राम के उपदेश को भी अपनाया है। उन्होंने वहां बचनों को सहारा देने का आदान-प्रदान किया है ताकि वे हनुमान को पहचान सकें और वह राम की खोज में निरंतर लगे रहें॥२७॥
दोहा
मैं देखउँ तुम्ह नाहि गीघहि दष्टि अपार ||
बूढ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार ||२८ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"मैं तुम्हें देखता हूँ, तुम गीघा नहीं, और मेरी दृष्टि अपार है। मैं बूढ़ा नहीं हो गया हूँ और मैंने कभी तुम्हारी सहायता को नहीं छोड़ा है॥२८॥"
इस दोहे में हनुमानजी भगवान राम को बता रहे हैं कि वह गीघा नहीं हैं और उनकी दृष्टि अपार है, जिससे वे सभी चीजें देख सकते हैं। वह यह भी कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी योग्यता को कभी भी नहीं छोड़ा है और वे हमेशा भगवान राम की सेवा में लगे रहें हैं॥२८॥
दोहा 
बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई,
उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ ||२९ ||
इस दोहे का अर्थ है
"बलि बाँधने पर प्रभु ने उस तनु को बढ़ावा दिया, जिसका रंग कहीं भी नहीं जाता, उन्होंने उस तनु को दोनों हाथों में लेकर सात प्रकार से बाँध दिया॥२९॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि प्रभु श्रीराम ने बलि को जब बाँधा, तो बलि के तन का रंग कहीं भी नहीं जा सकता था। उन्होंने बलि के तन को दोनों हाथों से पकड़कर सात प्रकार से बाँध दिया॥२९॥
दोहा 
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि,
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि ||३०(क) ||
इस दोहे का अर्थ है
"रघुनाथ के भव भेषज का सुनने से जो नर और नारी हैं, उनके सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं, ऐसा त्रिसिरारि (श्रीराम) कर सकते हैं॥३०(क)॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि जो नर और नारी श्रीराम के भव भेषज की कथा सुनते हैं, उनके सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इस प्रकार श्रीराम त्रिसिरारि (तीनों लोकों के स्वामी) के रूप में अपनी महिमा दिखाते हैं॥३०(क)॥

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