श्री सत्यनारायण कथा – द्वितीय अध्याय
कथा की सुरुआत:
सत्यनारायण कथा का महत्व: इस अध्याय में सत्यनारायण कथा के महत्व को और विस्तार से वर्णन किया गया है। कथा का अनुसरण करने से सकल सुखों की प्राप्ति होती है और व्यक्ति का जीवन उत्तम रूप से विकसित होता है।
कथा का सार:
कल्याण यात्रा: एक समय की बात है, एक ब्राह्मण श्रीनिवास नामक युवक ने अपनी कल्याण यात्रा का आयोजन किया। उसने भगवान सत्यनारायण के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन करने के लिए विशेष रूप से इस कथा का आयोजन किया।
सत्यनारायण पूजा और कथा: श्रीनिवास ने अपने घर में सत्यनारायण पूजा का आयोजन किया, और उसने अपने मित्रों, परिवार के सदस्यों, और अन्य लोगों को भी इसका आतिथ्य किया। इस पूजा के दौरान, श्रीनिवास ने भगवान सत्यनारायण की कथा को पढ़ी और सुनाई।
कथा के फल: श्रीनिवास ने सत्यनारायण कथा के पाठ का संपन्न किया, जिससे उसका जीवन धर्मपरायण, सुखमय, और समृद्धि योग्य हो गया। उसके घर में सुख शांति बनी रही, और उसने समझाया कि सत्यनारायण कथा का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक, शारीरिक, और मानसिक तौर पर अनगिनत लाभ होता है।
इस प्रकार, द्वितीय अध्याय में श्री सत्यनारायण कथा के महत्वपूर्ण विषयों का वर्णन है जो भक्तों को धार्मिकता, भक्ति, और सच्चे श्रद्धाभाव के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
सूत जी बोले: हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था। ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा: हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला: मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ। मुझे खेद है, परंतु मेरे डेटाबेस में किसी विशेष व्रत या कथा के अंश का सीधा प्रथम अध्याय नहीं है। हालांकि, मैं आपको श्री सत्यनारायण कथा के सामान्य रूप से ज्ञात आदित्य अध्यायों का एक संक्षेप प्रदान कर सकता हूँ:
श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय:
भूलश्वा ब्राह्मण कथा:
कथा का आरंभ भूलश्वा नामक एक ब्राह्मण के घर में हुआ। भूलश्वा ने अपनी अज्ञानी पत्नी को उदार होने के लिए निंदा की, और वह ब्राह्मणों के साथ एक साधुता की प्रतिष्ठा बनाने के लिए भगवान सत्यनारायण की पूजा करने का निर्णय लिया।
व्रत का आरंभ:
भूलश्वा ने श्रद्धापूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा करना शुरू किया, और वहां आसन स्थापित करते समय, भगवान ने स्वयं ही प्रकट होकर अपने साथी देवी लक्ष्मी के साथ उनके समक्ष प्रकट हुए।
कथा की बातें:
धन की प्राप्ति: भगवान ने भूलश्वा को आत्मार्थी, श्रेष्ठ और धन्य बनाने के लिए विचारित किया।
सत्यनारायण कथा का महत्व: भगवान ने सत्यनारायण कथा का महत्व बताया और इसे बोलने वाले, सुनने वाले और सर्वस्थ रहने वाले को अनगिनत धन, सुख, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्राप्ति और पूजन:
भूलश्वा ने ब्राह्मणों के साथ भगवान की पूजा की, और उन्हें विभिन्न भक्ति पाठों और भजनों के माध्यम से पूर्वोक्त गुणों का पालन करने का आदान-प्रदान किया। इसके परिणामस्वरूप, भूलश्वा ने अत्यन्त धन, सुख, और मोक्ष की प्राप्ति की।
इस प्रकार, श्री सत्यनारायण कथा प्रथम अध्याय में भूलश्वा ब्राह्मण के द्वारा भगवान की पूजा और कथा का आचरण करने का मार्गदर्शन करती है, जो श्रद्धालु भक्तों को धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति में सहारा प्रदान करती है।
भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ। हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए। वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो। इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए। ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा। यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई। वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया। उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला। जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया। उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा। इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा। जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा। हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले: हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं। इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है।
सूत जी बोले: हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ। उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया। प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ। ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है। इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।
विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया। लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा। मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे। उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।
बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया। वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया।
॥इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण॥
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण ।
भज मन नारायण-नारायण-नारायण ।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय॥
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