नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री जपनीय मंत्र !आरती ! स्तोत्र ! वाहन का रहस्य ,Navratri first chanting mantra of Mata Shailputri! Aarti! Psalm! vehicle mystery
नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री जपनीय मंत्र !आरती ! स्तोत्र ! वाहन का रहस्य
नवरात्रि के पहला दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था।
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नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री |
नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री के जपनीय मंत्र-
वंदे वांछित लाभाय चन्द्रार्ध शेखरम् । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशश्विनीम्॥ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः ।
ॐ शैलजादेव्यै नमः ।
शैलपुत्री के रूप में प्रथम कन्या का पूजन-
शैलपुत्री के रूप में प्रथम नवरात्र को या नवरात्र की अंतिम तिथि को प्रथम कन्या के रूप में 'कुमारी' का पूजन किया जाता है। 'कुमारी' के लिए दो वर्ष की कन्या का पूजन करना चाहिए। निम्न मंत्र से शैलपुत्री को भोज्य पदार्थ अर्पित करें-
- जगद् पूज्ये जगद् वन्द्ये सर्वशक्ति स्वरूपिणि ।
- पूजां गृहाण कौमारि ! जगन्म तर्नमोऽस्तुते॥
इस प्रकरण में हम अपने जीवन को सुख, सौविध्य और सर्वेश्वर्य सम्पन्न करने के लिए मंत्र, यंत्र तथा टोने-टोटकों के माध्यम से बनाने के विषय में चर्चा करेंगे।
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नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री |
नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री [कीआरती ]
ॐ जय शैलसुते मैया जय शैलसुते ।
भयहारिणि भवतारिणी पार्वती तू वर दे॥ टेक ॥
द्याता स्वरूप धरिकै रचि सृष्टि सारी।
पालौ प्रजाः अखिल अच्युत भेषधारी ॥ ॐ जय०॥
नांशौ बहोरि सब शंकर अंक आयीं ॥
लीला अपार तव अंब न जाय गायी ॥ ॐ जय०॥
भावी अतीत अरू संप्रति काल ज्ञाता।
तू ही सतोरज तमोगुण-पूर्णा-गाता ॥ ॐ जय०॥
आद्यांतहीन, अखिलेश्वरि तू ही एका।
है तू ही जाहि जपते तपसो अनेका॥
सप्रेम पूजि जिनको नर नेमबारी। ॐ जय०॥
पावें कवीन्द्र पद पावन कीर्तिकारि ॥ ॐ जय०॥
नावें नृदेव निज पायन पै स्वमाथा।
दंड़प्रणाम तिनको ममजोरि माथा ॥
ब्रह्मा, विष्णु निधिनायक नीरनाथा। ॐ जंय०॥
सानन्द जासुगुण गावत जोरि हाथा ॥ ॐ जय०॥
सकीर्ति तासुयह पावर ज्ञानहीना। हा! हा!!
कहे किमि महामतिमंद हींना॥ ॐ जय०॥
पीयूषपूर्ण दृग तू जननी हमारी।
संताप तप्ततन बालक मैं दुखारी॥ ॐ जय०॥
संबंध सत्य अस मातु हिये बिचारी।
कीजै यथा उचित देवि! हमें निहारी॥ ॐ जय०॥
इन मंत्र, यंत्र तथा टोने-टोटकों में मंत्र का प्रयोग साधक को गुरु द्वारा दीक्षा लेकर पूर्ण करना चाहिए तथा समस्त क्रियाविधि का पूर्ण पालन करते हुए करना चाहिए। माँ भगवती के प्रत्येक अनुष्ठान में शौच शुद्धता अति अनिवार्य है।
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नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री |
[नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री ] मंत्र प्रकरण-
[ भक्ति-प्राप्ति हेतु मंत्र- ] माँ भगवती शैलपुत्री की भावभीनी कृपा प्राप्त करने के लिये कुशासन पर बैठकर पूर्वाभिमुख होकर माँ भगवती का ध्यान करें, पश्चात् पञ्चमुखी रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का 31,000 जप दशांश हवन, दशांश तर्पण तथा दशांश मार्जन करना चाहिए। एक समय फलाहार रहकर जप संख्या पूर्ण करना चाहिए पश्चात् दो वर्ष की नौ कन्याओं को भोजन तथा दक्षिणा से संतुष्ट करना चाहिए। भोज्य पदार्थ में बेलपत्थर का हलुआ देने से शीघ्र शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं। मंत्र इस प्रकार है-- ॐ त्वं परा प्रकृतिः साक्षाद् ब्रह्मणः परमात्मनः
- त्वत्तो जातं जगत्सर्वं त्वं जगज्जननी शिवे॥
- विष्णोर्माया भगवती यमा सम्मोहितं जगत्।
- 'आदिष्टा प्रभुणांशेन कार्यार्थे सम्भविष्यति ॥
[ स्त्री वशीकरण मंत्र- ] अज्ञानता या भ्रमवश जिस पुरुष को अपनी पत्नी के प्रति यह भय उत्पन्न हो जाए कि मेरी पत्नी मुझे तलाक दे देगी या मुझसे तलाक मांग लेगी। अथवा पत्नी येन-केन-प्रकारेण हावी रहती हो उसके चले जाने या आत्महत्या करने का भय हो; अर्थात् गृहस्थ डांवाडोल हो रहा हो तो इस मंत्र के करने से घर में शान्ति आती है। अपने घर गयी पत्नी आ जाती है। इस मंत्र को जपते समय कमलगट्टा की माला से 51 या 101 माला का जप करना चाहिए।
लाल और पीला पुष्प देवी शैलपुत्री को भेंट करना चाहिए- - इयं गेहे लक्ष्मी रियममृतवर्त्तिर्नयनयो,
- रसावस्याः स्पर्शों वपुषि बहलश्चन्दनरसः ।
- अयं कण्ठे बाहुः शिशिर मसृणो मौर्वतकसरः,
- किमस्या न प्रेयो यदि परमसद्यस्तु विरहः॥
[ दुःख तथा दारिद्र्य निवारण के लिए-]दरिद्रता के नाश के लिए तथा दुःख के निवारण के लिए निम्न मंत्र का कमलगट्टा या रुद्राक्ष की माला से 21,000 का जप करें, पुनः 210 या 2,100 गुलाब या कमल के पुष्पों को भगवती शैलपुत्री को अर्पण करने से दरिद्रता का नाश तथा सुख की प्राप्ति होती है। मंत्र इस प्रकार है-
- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो,
- स्वस्थैः स्मृता मतिमतीत शुभां ददासि ।
- दारिद्रय दुःख भयहारिणि का त्वदन्या,
- सर्वोपकार करणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥
इस मंत्र की एक माला प्रतिदिन करने से भी माँ भगवती शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं और शनैः शनैः इच्छित फल देती हैं।
[ सुलक्षणा पत्नी की उपलब्धि के लिए मंत्र- ] इस मंत्र का प्रतिदिन 5 या उससे अधिक माला जप करने से शीघ्र ही उत्तम कुल की कुलीन कन्या की प्राप्ति होती है। इस मंत्र को सावधानीपूर्वक शुद्ध उच्चारण के साथ ही करना चाहिए। पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्ग संसार-सागरस्य कुलोद्भवाम्॥
[ अतुल धन-धान्य प्रयोग हेतु मंत्र-] धन-धान्य से परिपूर्णता प्रदान करने वाली अन्नपूर्णा माता शैलपुत्री की साधना की जाती है। यह वह मंत्र है जो द्रोपदी ने अपनी सिद्धि से अक्षय पात्र प्राप्त किया था जिसके फलस्वरूप उस छोटे पात्र का अन्न तब तक खत्म नहीं होता था जब तक स्वयं द्रोपदी भोजन नहीं कर लेती थी। माता शैलपुत्री ने साध्वी द्रोपदी को प्रसन्न होकर दिया है। कुशासन पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। षोडशोपचार विधि से पूजन कर माता अन्नपूर्णा के निम्न मंत्र को प्रत्येक अन्नपूर्णा स्तोत्र मंत्र के आगे और पीछे सम्पुट लगाएं। मंत्र और अन्नपूर्णा स्तोत्र दिया जा रहा है- अन्नपूर्णा मंत्र-ॐ ह्रीं नमो भगवती अन्नपूर्णे स्वाहा।
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नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री |
नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री स्तोत्र [अन्नपूर्णा स्तोत्र]
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
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नवरात्रि प्रथम माता शैलपुत्री |
माता शैलपुत्री के वाहन का रहस्य
इन नव शक्तियों में प्रथम ब्राह्मी शक्ति है। ब्राह्मी सृष्टि-शक्ति को कहते हैं। अखण्ड चैतन्य समुद्र के जिस अंश में सृष्टि क्रिया प्रकाशित हो उस चैतन्यांश का नाम ब्रह्मा कहते हैं और चेतनाधिष्ठान से जो क्रियाशक्ति प्रकाशित हो वही 'ब्राह्मी' है। इसका वाहन हंस है। हंस जीव को कहते हैं। व्यष्टि मन समष्टि मन का अंश मात्र होने के कारण समष्टि मन विराट मन है। इसी में सृष्टिक्रिया प्रकाशित होती है। मन का धर्म कल्पना है एवं कल्पना शक्तिरूपा है। इसी को क्रियाशक्ति कहते हैं, जो ब्राह्मी नामक है। यह हंसवाहिनी है। प्रति जीव में जो विभिन्न संकल्प देखा जाता है उसके मध्य होकर ही यह समष्टि मन का प्रकाश समझा जाता है, उसके मध्य होकर ही यह समष्टि मन का प्रकाश समझा जाता है। अतः जीव ही सृष्टि का परिचालक है। यदि जीव नहीं हो तो सृष्टि शक्ति के ज्ञान का उपाय हो ही नहीं सकता। इस कारण सृष्टि शक्तिरूपिणी ब्राह्मी का वाहन जीवरूपी हंस का होना ही उचित है। जीव श्वास-प्रश्वास के द्वारा दिन-रात में इक्कीस हजार छः सौ हंस मन्त्र का जप कर लेता है अतः उसे तान्त्रिक शब्दों में 'अजपा' कहते हैं। यही कारण है कि जीव हंस कहा जाता है।
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