Nav Durga : नवरात्रि के चतुर्थ मां कूष्माण्डा पूजा विधान और,मंत्र,Navratri Ke Chaturth Maa Kooshmaanda Pooja Vidhaan Aur,Mantr
Nav Durga : नवरात्रि के चतुर्थ मां कूष्माण्डा पूजा विधान और,मंत्र
नवरात्रि के चतुर्थ मां कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लूमेव च।
निता दधाना हस्तपदमाभयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।
भगवती दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हँसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने इर्षत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी, अतः यही सृष्टि की आदिस्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं।
इनकी आठ भुजाएं हैं, अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं, इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं, आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है, संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कुम्हड़े को कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें । प्रिय है। इस कारण सेही से ही यह कूष्माण्डा कही जाती हैं। संसार में तीन ताप होते हैं-दैहिक, दैविक और भौतिक । इन तीनों तापों के निवारण हेतु ग हेतु आद्याशक्ति ने कूष्माण्ड (तुमड़ी, पेठा) से अपना आविर्भाव किया। ऐसा कुछ विद्वानों तथा शास्त्रों का उल्लेख है। दैहिक, दैविक तथा भौतिक ताप मनुष्य ही नहीं अन्य जीवों को भी कष्ट ही देते हैं। ये मनुष्य की विवेकशीलता को नष्ट करने के साथ अत्यन्त दुःखी करते हैं। त्रिविध तापों के निवारण हेतु माता कूष्माण्डा की पूजा-अर्चना की जाती है।
Navratri Ke Chaturth Maa Kooshmaanda Pooja Vidhaan Aur,Mantr |
जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से माता कूष्माण्डा के चरणों का ध्यान करते हुए विधि-विधान से पूजा एवं जप करता है उसे परम सुख और शान्ति प्राप्त होती है। वह इस लोक का यश प्राप्त करके परलोक में स्वर्ग क अधिकारी होता है। कूष्माण्डा देवी का बसेरा भीमा पर्वत पर है।
कूष्माण्डा पूजा विधान
वैसे तो किसी भी शुक्रवार या शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भगवती देवी की कूष्माण्डा के रूप में पूजा की जा सकती है, किन्तु नवरात्र की चतुर्थी तिथि में माता कूष्माण्डा की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सामग्री के रूप में सर्वप्रथम मांता कूष्माण्डा का चित्र पहले स्थापित करे। फिर लाल चंदन, लाल पुष्प, गौखुरी, धूप, लालवस्त्र, अक्षत, नैवेद्य घृतदीपक आदि से तथा किसी एकान्त अथवा पवित्र स्थान में देवी की पूजा करके लाल चंदन की माता से जप आदि क्रियाएं की जाती हैं।
- आचमन-
ॐ भीमायै नमः ॥
ॐ दुर्गायै नमः ॥
ॐ कूष्माण्डायै नमः ।
उपरोक्त मंत्र से आचमन करें। आचमन के पश्चात् घी का दीपक जलायें। उसमें लाल चंदन या सिंदूर से रंगी हुई रूई का प्रयोग करें। उसके उपरांत दूसरी तीली या अग्नि तत्व से तेल का दीपक जलाएं।
- ध्यान-
अनन्त शक्ति भेदां तां कामाक्षीं प्रणमाम्यहम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डायै नमः। ध्यानं समर्पयामि। इस मंत्र से हाथ में लाल फूल लेकर भगवती कूष्माण्डा देवी का ध्यान करें।
- आवाहन-
भगवती कूष्माण्डा को आमन्त्रण करना ही आवाहन है। हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें। फिर उस पुष्प को पुनः माता कूष्माण्डा के चरणों में अर्पित करें-
हे ब्रह्मवादिनी कूष्माण्डा
आओ वरदान प्रदान करो।
नगाहे महादेवि हे कल्याणी!
भक्तों को जीवन दान करो। ॐ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डायै नमः। आवाहनं समर्पयामि ॥
- आसन-
सफेद या क्रीम रंग के वस्त्र को चौकी पर बिछाकर चावल को हल्के हरे रंग से रंगकर या मूंग की दाल से वृत्ताकार अथवा पेठा के समान गोल आकृति बनाएं। माता कूष्माण्डा देवी को बैठने के लिए निवेदन करें-
रत्नों और मणियों से मण्डित अर्पण करना चाहूं मैं आसन ।
ग्रहण करो हे कुष्माण्डे तुम, स्वर्णमण्डित दिव्यासन ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि॥ पुनः इस मंत्र के बाद चरणों में चावल अर्पित करें।
- पाद्य-
हाथ में सुवासित जल लेकर माँ भगवती के प्रथम पैर के अंगूठे, पुनः समस्त पैर धोएं। यहां पहले दाहिना, पुनः बायां पैर व्यवहार में लाना चाहिए। दोनों चरण धोते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें- जिसकी भक्ति के लेश मात्र से परमानंद सम्भव हो जाता है। पाद्य अर्घ्य उस कूष्माण्डे को करे, मन सुख पा जाता है।। ॐ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डायै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
- अर्घ्य-
कुशा दूर्वा तिल सर्वपयुत यह अर्घ्य समर्पित करता हूं।
ग्रहण करें देवी कूष्माण्डा जी तन-मन-धन अर्पित करता हूं।।
ॐ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डायै नमः हस्तयोः अर्ध्वं समर्पयामि। उपरोक्त मंत्र से दोनों हाथों को जल द्वारा प्रक्षालन करें।
- आचमन-
कर्पूर सुवासित शीतल जल जो स्वादु भरा आचमन हेतु।
हे कूष्मांडे माते ग्रहण करो, कर दो किरपा हे जननि सेतु ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै श्रीगायत्रीदेव्यै नमः, आचमनीयं समर्पयामि। इससे आचमन के लिए लौंग या लौंग के इत्र से युक्त जल अर्पित करें। पुनः अपने हाथ धो लें।
- स्नान-
निम्न मंत्र से जल द्वारा भगवती कूष्माण्डा को स्नान करायें- गंगा का पावन अचरज भरा तीर्थराज से भर लाया हूं। स्नान हेतु माँ स्वीकारो मैं अतिशय हरषाया हूं।। ॐ भूर्भुवः स्वः कूष्माण्डायै नमः। स्नानार्थे जलं समर्पयामि ॥
- मधुपर्क-
भगवती के चरणों में उर्द के बड़े या उर्द की दाल, दही, शहद, घी से युक्त मधुपर्क निम्न मंत्र द्वारा अर्पित करें- दही थी शहद से युत उड्दयुक्त तेरा भोजन ये। करता है जग को मायामुक्त मधुपर्क शोभित भोजन ये।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै श्रीगायत्रीदेव्यै नमः, मधुपर्क समर्पयामि। मधुपर्कान्ते आचमनीयं समर्पयामि भगवत्यै श्रीगायत्रीदेव्यै नमः । पहले मधुपर्क अर्पित करें, उसके बाद जल अर्पित करें।
- पञ्चामृत-
दूध, दही, गोघृत, दूरा तथा शहद-इन पांच अमृत वस्तुओं का समन्वय पञ्चामृत है। इनका एक साथ मिश्रण या अलग-अलग करके भगवती कूष्माण्डा को स्नान कराना चाहिए।
- दूध स्नान-
घास-फूस यव हरिता से धेनु ने दूध पवित्र बनाया है। अमृत तुत्य गोसुत सेवित यह माँ दर तेरे आ चढ़ाया है। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः पयः स्नानं समर्पयामि। दूध से स्नान कराके जल से स्नान करायें।
- दधि स्नान-
धेनुदुग्ध दोहन करके, स्वच्छ शुद्ध दधि बनाया है।
चन्द्रप्रभा की रश्मि इसमें, कूष्माण्डे चरण तुम्हारे आया है।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डा देव्यै नमः, दधिस्नानं समर्पयामि। दहि से स्नान कराके पुनः जल से स्नान करायें।
- घृत स्नान-
आग को यौवन देने वाला द्विज देव बना जो गोघृत है। शक्ति वर्धक गोघृत ये कूष्माण्डे तुमको अर्पित है।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः घृतस्नानं समर्पयामि। घी-स्नान के बाद जल से स्नान करायें।
- मधु स्नान-
फूलों-फूलों से चुन-चुनकर, मक्खी ने शहद बनाया है। सुंदर स्वादिष्ट मधुर वरेण्य स्नानार्थ तुम्हें यह आया है।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डायै नमः मधुस्नानं समर्पयामि। शहद से स्नान कराके जल से स्नान करायें।
- शर्करा स्नान-
गन्ने की ओटी पोनी से मीठा-मीठा रस बरसा। शर्करा बना कूष्माण्डा तुमको अर्पण करने को मन तरसा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डायै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि। बूरा या शक्कर से स्नान कराके जल से स्नान करायें।
- गन्धोदक-
इत्र (सैन्ट) या चंदन जल में डालकर भवगती को पुनः स्नान करायें- इत्र चंदन मौलश्री युत कस्तूरी गंध भरा है। गंधोदक तुमको देकर माँ तन-मन हरा-भरा है। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः गंधोदकस्नानं समर्पयामि। पुनः स्वच्छ वस्त्र से प्रोक्षण (पौंछना) करना चाहिए।
- वस्त्रार्पण-
निम्न मंत्र से स्वसुविधानुसार भगवती को वस्त्र अर्पण करें- चित्र-विचित्र वर्णों से युत वस्त्र तुम्हें अर्पण करता हूँ। हे मात कूष्माण्डे देवी सर्वव समर्पित करता हूं।। ॐ भूर्भुवः स्व भगवत्यै श्रीगायत्रीदेव्यै नमः उपवस्त्रसहितं वस्त्रं समर्पयामि।
- अलंकार-
भगवती कूष्माण्डा को श्रृंगार के लिए अनेक वस्तुएं माता/बहिनें अर्पण करती हैं। नीचे कुछ वस्तुएं और उनके मंत्र दिए हैं उन्हें वे अपनी सुविधानुसार भगवती को अर्पण करें। स्मरण रहे प्रत्येक वस्तु के बाद जल अर्पित करें।
- अलंकार (कंगन या चूड़ी) -
माणिक्य मुक्ता मणिखंडो से सुनार ने इसे बनाया है। सुंदर से सोने के कंगनों को ये भक्त पहनाने आया है।।
- कुण्डल-
पूनो के चाँद से गोल बने माणिक्य खण्ड से शोभित हैं। स्वर्णसूत्र से निर्मित ये कूष्माण्डे तुमको अर्पित हैं।
- अंगुद (बाजूबंद)-
जानु ग्रंथि तक फैली तेरी बाहु पर अंकित करने को। सुंदर चित्रित अंकित ये अंकित तव धारण करने को।।
- हार (माला) -
कल कंठ का भूषण बनने को मणि-मानिक इसमें पिरोए हैं। धारण करो माँ कूष्माण्डा सुवासित जल बिच धोए हैं।।
- अंगूठी-
हेममयी मनोहारी ये मुदरिका मनमोहक प्यारी है। स्वर्ण मणि के खंडों से शोभित महिमा तेरी न्यारी है।
- काँधनी-
धरती धरती जिस तरह शेषनाग की बनी मेखला । कूष्माण्डा तुम भी धारण कर लो स्वर्ण तन्तु की बनी श्रृंखला।।
- नूपुर (घुंघरू)-
रुनझुन रुनझुन ध्वनि मरोहर। पद पंकज में नूपुर के स्वर ।। कूष्माण्डा तुम देवि अति पावन। बने हैं नूपुर स्वर के सावन ।। मातु हमारी जय जगदम्बे । नूपुर लीजै है माँ अम्बे ।। रुनझुन रुनझुन करते तव घुंघरु ।। नाचे उठे शिव लेके डमरू ।।
- मुकुट-
स्वर्ण युत हीरक जडित मात तुम्हारे माथ ।। अर्पण करने आया हूं दीजो मेरा साथ ।।
- गंध-
श्री खंड चंदन-सा है तेरा रूप सलौना। श्वेत चंदन को अर्पण करने आया तेरा छौना ।।
- कुभकुम-
कुमकुम कामिनी के मस्तक पर जो कुमकुम शोभित होता है। उसको कूष्माण्डा अर्पण करे ये भक्त उपस्थित होता है।।
- केशपाश संस्करण (कंघी)-
सूर्यकांति की किरणों सम तेरे सुंदर बालों में। चंपक वेला कनक सूत्र युत गूंथने तेरे बालों में। अगणित दांतों वाला माते, तेरे दर पर कंघा लाया हूं। इसके सम दोष दूर करो माँ यह अर्ज साथ में लाया हूं।
- सौवीराञ्जनम् (सुरमा) -
काजल ग्रहण करो कूष्माण्डे, जो है शान्ति का कारक। 'कर्पूर ज्योति से उत्पन्न हुआ बना हमेशा ज्योतिवर्धक ।।
- सौभाग्यसूत्र (मंगल सूत्र)-
सौभाग्य सूत्र धारण कर देवी। करें स्तुति हम नित ही तेरी ।। दुर्भागी को सौभागी करतीं। हार स्वर्णमणि धारण करतीं।।
- अत्तर (इत्र या सैन्ट/सुगंधित द्रव्य) -
चम्पक विल्व बेला चंदन। इत्र सुगंध हो तुझको अर्पण।। कूष्माण्ड रूपा जगदम्ब भवानी। दिव्य सुगंध अर्पित करता अज्ञानी ।।
- सिन्दूर (सौभाग्य सिन्दूर)-
जपासुमन सम रक्त कांति का सिंदूर तुम्हारे चरणों में। अरुण रश्मि सम कांति ज्ञान की दो, मैं आया तेरे शरणों में।।
- राजोपचारान् (छत्र चढ़ाना) -
स्वर्णछत्र मस्तक पर सुहावा ।। धर्म वाता प्रनाशन पावा।।
- चामरम् (चामर) -
चमरी पुच्छ निरमित यह चामर। अधम निर्लज्ज हूं मैं अति पावर ।। धर्म सत्य भर दे चामुण्डा। पाप राशि का करके खण्डा ।।.
- तालवृत्तम् (पंखा) -
मध्य दण्ड से समन्वित जो तालवृत्त का पंखा है। बृहद-बृहद पंखों वाला अर्पण करता पंखा है।।
- दर्पणम् (शीशा)-
दर्पण बिम्ब का प्रतिबिम्ब बनें, प्रतिविम्ब बने बिम्बन का दर्पण। मम आत्मन बिम्ब को बिम्ब बने हे कूष्माण्डे तुम्हें दर्पण अर्पण ।।
- गन्धलोशनम् (क्रीम) -
मृगनाभि को वासित कस्तूरि बनो काश्मीरक केशर चूर्ण भयो। अब कूष्माण्डा तव मस्तक पर मकरंद गंध सो सुगंध भयो।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः भाले गन्धलोशनम् समर्पयामि ॥
उपरोक्त सभी वस्तुएं महिला पूजक को उसी प्रकार अर्पण करनी चाहिएं जिस प्रकार वह स्वयं धारण करती हैं। समस्त शृंगारिक वस्तुएं अर्पण करने के बाद रोली से तिलक कर अक्षत (चावल) मस्तक पर लगायें/अर्पण करें।
- पुष्प - पुष्पमाला-
भगवती कूष्माण्डा को पहले मस्तक पर उसके बाद समस्त अंगों को पुष्पों से सजायें- जपा करीर जाती अरु चंपक कमल कुमोदिनी बेला की माला। कहुं रक्त बने कहुं पीत सजे इत रंग गुलाबी मनमोहक वाला ।। और सुलभ हुए जो कुसुम मंजरी थाली भर-भर लाया हूं। कुसुमों-सी महके बगिया मेरी यही अरज मांगने आया हूं।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवन्त्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः। पुष्पमालां समर्पयामि ॥
- धूपबत्ती-
माँ भगवती कूष्माण्डा को अपने दाहिने हाथ को बायीं ओर ले जाकर पुनः ऊपर की ओर ले जाते हुए वृत्तक्रम में धूपबत्ती घुमाना चाहिए। घुमाते समय एक बार मुख पर, तीन बार मस्तक पर, तीन बार हृदय पर, चार बार चरणों में घुमाकर पांच या सात बार सम्पूर्ण प्रतिमा के चारों ओर घुमाना चाहिए। इसके बाद माँ के बायीं ओर घूपवत्ती स्थापित करनी चाहिए।
- दीपक-
जमीन या पटड़े पर सात्विक (卐) बनाकर उस पर कुछ चावल रखकर पहले दीपक को अन्यत्र जलायें फिर चावल के ऊपर रखें। फिर चावल, पुष्प तथा चंदन के साथ दीपक का पूजन करें-
हे ज्योति पुंज दीपक तुम देवी की पूजा के साक्षी हो।
पापों की गठरी को अंधकारसम दूर करने के साक्षी हो।।
पुनः हाथ चावल लेकर हाथ जोडने की मदा बनाकर भगवती को दीपदान करें।
सुंदर सुगम नरम कर्पासा। योजित घृत वर्तिका सुहासा ।।
ज्वलित दीप धारण कर माते। हरो पाप मम लगते ताते ।।
हाथ में रखे चावल दीपक को अर्पण करें तथा भगवती को हाथ जोड़कर पुष्प चढ़ायें, पुनः हाथ मार्जन करें।
- धूप-
गाय के गोबर से बने उपले को जलाकर माँ भगवती कूष्माण्डा का ध्यान करके घी में लौंग का जोड़ा भिगोकर अग्नि को अर्पित करें। (गाय का वह गोबर जो बिना छुए सूख जाता है उस सूखे गोबर के उबले को, जिसे आरना भी कहते हैं, लेकर धूप के लिए अति उत्तम होती है। इस भस्म का प्रयोग नजर दूर करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।) लौंग चढ़ाते समय भगवती कूष्माण्डा का ध्यान करते हुए ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नमः मंत्र से लौंग का जोड़ा चढ़ायें। पुनः निम्न मंत्र से माँ भगवती कूष्माण्डा को कूष्माण्डा (साबुत पेठा/काशीफल) या ऋतुफल अथवा अनार चढ़ायें। भगवती को अनार या ऋतुफल एक से अधिक और कूष्माण्डा एक या सुविधानुसार चढ़ाया जाना चाहिए।
इदं फलं मया देवि स्थापितं पुरस्तव ।
तेन मे सफलावाप्तिभवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
श्री जगदम्बायै कूष्माण्डायै नमः । ऋतुफलानि समर्पयामि ॥ (यहां ध्यान दें यदि व्रत नहीं रखा है तब पहले भोजन की थाली में मोहनी भोग लगायें तब फल अर्पित करना चाहिए।).
- ताम्बूल-
कोमल पात पान सुहावा।
लौंग इलायची जातीफल पावा ।।
ग्रहण करो जगदम्ब भवानी।
हे कूष्माण्डा माँ कल्याणी।।
ॐ एलालवङ्गादिभिर्युतं ताम्बूलं समर्पयामि। भूर्भुवः स्वः भगवत्यै कूष्माण्डादेव्यै नमः मुखवासार्थं इस मंत्र से इलायची, लौंग, सुपारी तथा जायफल के साथ पान निवेदित करें।
- ध्यान-
वन्दे वांछित कामथें चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मुदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर कार केयूर किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदनीचारु चिबुकां कांत कपोलां तुंग 'कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
हाथ में राशि के अनुसार पुष्प लेकर (देखें शैलपुत्री पूजन) अथवा लाल पुष्प,लेकर माँ भगवती कूष्माण्डा का उपरोक्त मंत्र से ध्यान करें।
- कवच-
पीली सरसों लेकर अपने चारों ओर डालते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें-
हंसरै मे शिरः पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरों नेत्रव, हंसरौश्च ललाटकम ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्व पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिण मम ॥
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेय कूं बीजं सर्वदावतु ॥
कूष्माण्डा का जपनीय मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नमः।
- कूष्माण्डा गायत्री मंत्र-
ॐ कूष्माण्डायै विद्महे चामुण्डाय धीमीह। तन्नो भीमा प्रचोदयात्। स्तोत्र-भगवती कूष्माण्डा का कम से कम एक माला जप करके निम्न स्तोत्र का पाठ कर ध्यान करें-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशनीम्। जपंदा धनंदा कुष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम् । परमानंदमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
- कूष्माण्डा के रूप में चतुर्थ कन्या का पूजन-
कूष्माण्डा के रूप में चतुर्थ नवरात्र को या नवरात्र की अन्तिम तिथि को चतुर्थ कन्या के रूप में कूष्माण्डा देवी का पूजन किया जाता है। कूष्माण्डा को प्रचलित भाषा में चामड़ या अथवा देवीमठी कहते हैं। कूष्माण्डा के लिए सात वर्ष की कन्या का पूजन किया जाता है। निम्न मंत्र से 'कूष्माण्डा' को भोज्य पदार्थ अर्पित करें-
चण्डवीरां चण्डमायां चण्ड-मुण्ड-प्रमञ्जनीम्।
पूजयामि सदा देवी चण्डिकां चण्डविक्रमाम्॥
भगवती चामुण्डा (कूष्माण्डा) आद्यादेवी हैं। ये क्षेत्र या निवास स्थल की देवी या ग्राम देवी अथवा वचन देवी कही जाती हैं। इनको गाय का दूध उतना ही प्रिय है जितना भैंस का। आज भी ग्रामीण पशु प्रसव के बाद प्रथम दूध इन्हीं देवी को अर्पित करके स्वयं ग्रहण करते हैं।
चामुण्डा देवी
दुर्गा सप्तशती के पाठ में चामुण्डा देवी की वृहत् कथा है। सप्तशती के पंचम अध्याय से आरंभ होकर सप्तम अध्याय में चामुण्डा देवी की कथा समाप्त होती है। जब देवतागण शुम्भ और निशुम्भ के अत्याचारों से बहुत ही संतप्त हुए, तब वे देवी की प्रार्थना के निमित्त हिमलाय पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने जगदम्बा की अनेक प्रकार से स्तुति की। उसी समय माता पार्वती गंगा-स्नान को जा रही थीं। देवताओं की करुण पुकार को सुनकर माता द्रवित हो गईं। उनके शरीर से एक अत्यंत सुंदरी देवी प्रकट हुई, जिनका नाम कौशिकी हुआ। कौशिकी के निकलते ही माता पार्वती का रंग काला हो गया। कौशिकी देवी ने देवताओं को आश्वासन दिया कि वे शुम्भ निशुम्भ का अवश्य ही वध करेंगी। भगवती कौशिकी देवताओं के चले जाने पर वहीं एक शिला पर बैठ गईं। उसी समय शुम्भ-निशुम्भ के द्वारा भेजे गए दूत चण्ड-मुण्ड वहां आए और भगवती के सुंदर रूप के बारे में अपने स्वामी शुम्भ-निशुम्भ को सूचना दी। शुम्भ-निशुम्भ ने अपने दूत से देवी को यह सूचना भिजवाई कि वह उनसे परिणय सूत्र में बंधना चाहता है, पर देवी ने इसे ठुकरा दिया। शुम्भ-निशुम्भ के सेनापति धूम्रलोचन ने अपनी सेना के साथ देवी को बलात् ले जाना चाहा, पर देवी ने उसकी सेना को भस्मं कर दिया और धूम्रलोचन मारा गया। इसके बाद शुम्भ-निशुम्भ ने चंड-मुंड को देवी के साथ युद्ध करने को भेजा। अब अम्बिका के मस्तक से भयंकर रूप वाली कालिका प्रकट हुई। हुई। उन्होंने चण्ड-मुण्ड के सिरों का छेदन कर डाला। इसके बाद कालिका देवी ने भगवती अम्बिका देवी के सामने उन दोनों सिरों को प्रस्तुत किया। देवी इससे प्रसन्न हो गईं और कहा-
यस्माच्चण्डं च् मुण्डं गृहीत्वा त्व मुपागताः ।
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवि भविष्यसि ॥
:हे देवी! तुम चण्ड और मुण्ड नामक महादैत्यों का वध कर और उनके मस्तकों को लेकर मेरे समक्ष आई हो इसलिये जगत में तुम्हारी ख्याति चामुण्डा के नाम से होगी।
चामुण्ड देवी का यहः पुनीत स्थान हिमालय पर्वत श्रेणी पर स्थित है। यह शक्तिपीठ जालंधर पीठांतर्गत 108 शक्ति पीठों में एक है। यह स्थान हिमाचल के कांगड़ा जिले के वाणगंगा नदी के तट पर स्थित है। इस सुंदर स्थान पर पहुंचने के लिए पठानकोट-बैजनाथ-पपरोला तक के रेलमार्ग से जगरीटो-बंगवां नामक स्टेशन पर उतरना पड़ता है, जहां से मला तक आकर पुनः पांच किलोमीटर वस से जाना होता है। पठानकोट से सीधी बसें कांगड़ा तक जाती हैं।कांगड़ा से पालमपुर और बैजनाथ-पपरोला तक सीधी बस सेवा है। इस बस से मला उतरकर धर्मशाला की ओर जाने वाली सड़क पकड़कर 5 किलोमीटर चलकर चामुण्डा स्थान पहुंचा जा सकता है।
चामुण्डा देवी के मंदिर का निर्माण काल 700 वर्ष है। यह स्थान प्राचीन सिद्धपीठ रहा है। इस पावन माता के तीर्थ के पास अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं।
आरती कूष्माण्डा देवी की
आरती करो श्री कूष्माण्डा की।
जगजननी माँ चामुण्डा की॥
कंचन थाल, कपूर की बाती।
जगम ज्योत करे दिन राती,
भक्तों की प्रेम दीवानी जी की ॥ आरती.
जो भी माँ के द्वारे आये।
पापी अधर्मी सबको तारे।
चरण पड़ो कल्याणी जी की ॥ आरती.
अष्टभुजा है, नयन विशाला।
लाल चुनर और लाल दुशाला,
मन में बसाओ, कात्यायनी जी की॥ आरती.
ऋषि मुनि देव अप्सरा गायें।
हरि ब्रह्मा शिव शीश झुकायें,
विनती करो ब्रह्माणी जी की ॥ आरती.
महिषासुर मधुकैटभ मारे।
रक्तबीज को स्वर्ग सिधारे,
शरण लगो विज्ञानी जी की ॥ आरती.
प्रेम भाव से विनय सुनाओ
माँ के दर पर शीश झुकाओ
मांगों दया की भीख मात से
जगकल्याणी दयालु जी की।
आरती करो भवानी जी की॥
- मंत्र प्रकरण-
भगवती कूष्माण्डा चामुण्डा रूप में क्षेत्र की रक्षा करती हैं। इन्हें दूध अतिप्रिय है। अतः प्रत्येक मंत्र का जप करने से पूर्व बिना उबाला दूध विशेषतः भैंस का दूध लेकर स्नान कराना चाहिए। नीचे कुछ मंत्र दिए जा हैं।
- विपत्तिनाशक मंत्र-
करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी शभानि भटगागभिडन्त चा
उक्त मंत्र को 108 बार बोलने से अचानक आई विपत्ति किनारा कर जाती है और मंगल शगुन होते हैं। प्रयोग में लाने से पूर्व इसे 51,000 का जप करके सिद्ध कर लेना चाहिए।
- ऋद्धि-सिद्धिदायक प्रयोग-
नवरात्रि काल में ऋद्धि-सिद्धि यंत्र को बाजोट पर पीले वस्त्र पर स्थापित करें तथा यंत्र के चारों ओर कुमकम से स्वास्तिक बनायें तत्पश्चात् यंत्र को स्वच्छ जल में स्नान कराकर तिलक करें और पहले दिन एक माला, दूसरे दिन दो माला, तीसरे दिन तीन माला- इस प्रकार निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें- ॐ पद्मावती पद्मनेत्रे लक्ष्मीदायिनी सर्वकार्य सिद्धि करि करि ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै नमः॥
- शत्रु-बुद्धि विनाशक मंत्र-
यदि आप शत्रु की बुद्धि का विनाश करना चाहते हैं तो हकीक के पत्थर पर शत्रु का नाम सिन्दूर से या कुंकुम से लिखकर 21 बार मंत्र पढ़कर पत्थर पर फूंक मारें। शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट हो जायेगी। ॐ नमो भगवते शत्रुणां बुद्धि स्तम्भमं कुरु कुरु स्वाहा। प्रयोग करने से पूर्व मंत्र को चतुर्थी से त्रयोदशी तक प्रतिदिन 21 माला जप करके सिद्ध कर लें।
- आकर्षण प्रयोग-
नवरात्र में चतुर्थी को या नवरात्र के किसी रविवार की 'शाम, सूर्यास्त के समय अपनी सबसे छोटी उंगली से रक्त निकालकर कनेर की कलम से भोजपत्र पर उस व्यक्ति का नाम लिखें जिसे आकर्षित करना चाहते हों इसके बाद नीचे यह मंत्र लिखें-
- ॐ नमो वैतालाय आदि पुरुषाय अमुकं आकर्षण कुरु कुरु सवाहा। व्यावसायिक बंधन-मुक्ति का मंत्र -
- ॐ कीली कीली स्वाहा॥
अन्तिम दिन दीपक बुझाकर उसका तेल किसी डिब्बी में बंद कर व्यावसायिक प्रतिष्ठान में स्थापित करके प्रतिदिन पूजन करें-मनोकामना पूर्ण होगी।
- धनवर्षा मंत्र-
पद्मासने पद् अरु पद्मक्षि पद्म सम्मवे ।
तन्मे भजसि पद्माक्षि, येन सौख्यं' लभामहे ॥
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं में जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।
तीन हकीक पत्थर, तीन मोती, शंख एवम् चार गोमती चक्र को एक तांबे के सिक्के के साथ बांधकर पूजास्थल में रखकर पाठ करें।
- धन-धन्य हेतु अन्नपूर्णा प्रयोग-
धन-धान्य से परिपूर्णता प्रदान करने वाली अन्नपूर्णा देवी की साधना इस प्रकार करें- कुशासन पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। बाजोट (तख्त) पर 'धनदा यंत्र' स्थापित करके पूर्ववर्णित विधि से पूजन करें, तत्पश्चात् दीपक प्रज्जवलित करके इस मंत्र का पाठ करें-
- ॐ ह्रीं नमो भगवती अन्नपूर्णे स्वाहा॥
शत्रु निवारण साधना-शत्रुओं का संहार करने वाली श्री माता कालिका देवी मंत्र का पाठ करें-
- ॐ ऐं ह्रीं शत्रुनाशाय ह्रीं ऐं ॐ फट्॥
पूजन के लिए आवश्यक सामग्री-एक हत्थाजोड़ी, एक मोती, शंख, सात गोमती चक्र, ग्यारह रक्त बूंजा के बीज पूजन से पूर्व एकत्रित कर लें।
- शनि-दोष निवारण प्रयोग-
शनि के प्रकोप से कौन बच सका है? देवता, दानव, मानव शनि की टेढ़ी दृष्टि से मुसीबतों के जाल में घिर जाते हैं-शनि की कुदृष्टि से पांडव वनवासी हुए। पुरुषोत्तम राम को वनवास जाना हुआ। यदि शनि ग्रह की अशुभ दशा से आप प्रभावित हैं तो नवरात्र स्थापना दिवस से नवमी तक नीचे लिखे मंत्र का पाठ करें-
- ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनये नमः ॥
मंत्र पाठ करने से पहले पूजन करें। पूजन करने के लिए एक लकड़ी की चौकी पर उड़द का ढेर रखें और चुटकीभर सिंदूर छिड़कें और शनि यंत्र स्थापित करके सरसों के तेल का दीप प्रज्जवलित करें, तत्पश्चात् कंबल का आसन लगाकर शनिमाला से मंत्र का जाप करें। पाठ पूर्ण कर दशमी के दिन समस्त सामग्री काले कपड़े में लपेटकर तिराहे (तीन रास्तों वाला चौपला) पर रख आयें।
कूष्माण्डा के वाहन का रहस्य
कूष्माण्डा वैष्णवी चतुर्थ शक्ति के रूप में विराजमान हैं। जो चैतन्य सत्ता स्थिति शक्ति से अभिमान करे वही विष्णु है। अधिष्ठान चैतन्य का आश्रय ले जो शक्ति जगत का पालन करे वही शक्ति वैष्णवी हैं। इनका वाहन गरुड़ है। श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कन्ध में लिखा है- 'त्रिवृद्वेदः सुपर्णस्तु यज्ञं वहति पूरुषम्' त्रिवृत् वेदरूपी गरुड़ यज्ञपुरुष विष्णु को ढोता है। इस गरुड़ पक्षी के ज्ञान और कर्म-ये दो पांख हैं। योगवासिष्ठ में लिखा है-
तथैव ज्ञानकर्मभ्यां जायते परमं पदम् ॥
केवलात् कर्मणो ज्ञानान्नहि मोक्षोऽभिजायते ।
किन्तु ताभ्यां भवेन्मोक्षः साधनं तूभयं विदुः ॥
अर्थात् जिस प्रकार पक्षीगण दोनों पांखों के सहारे आकाश में भ्रमण करने में समर्थ होते हैं उसी प्रकार साधक ज्ञान एवं कर्म-साधन से विष्णु के परम पद को पाते हैं। जीव जब वेदोक्त कर्मकाण्ड के ज्ञानमय अनुष्ठानों में तत्पर होता है तब वह पक्षी होता है। वेदप्रतिपादित कर्म और ज्ञान-ये ही दो गरुड़ के पक्ष हैं। इसके अतिरिक्त गरुड़ का एक और धर्म 'पन्नगाशनत्व' है। कर्मसमूह जितना ही ज्ञानमय होता है उतना ही संसारासक्त देहात्मबोधरूपी कुटिलगति सर्प विलय को पाता है, यही इस गरुड़ का भक्ष्य सर्प है। मनुष्य जब इस प्रकार गरुड़ भाव का सर्वतोभावेन लाभ करता है तब देख पाता है कि- जगद्वयापक वैष्णवी शक्ति उस पर ही आसीन हैं। इस प्रकार वैष्णवी शक्ति का गरुड़ वाहन भी निरतिशय सारदें गर्भित ही है।
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