Nav Durga : नवरात्रि के नवमं मां सिद्धिदात्री पूजा विधान और,मंत्र,Navratri Ke Ninth Maa Siddhidatri Pooja Vidhaan Aur,Mantr,
Nav Durga : नवरात्रि के नवमं मां सिद्धिदात्री पूजा विधान और,मंत्र
श्री सिद्धिदात्री नवदुर्गा के सम्बन्ध में यह बात प्रसिद्ध है कि वे हिमालय की पत्नी मेनका के गर्भ से प्रकट हुई हैं। वैदिक कोष निघण्टु के अनुसार, 'मेना', 'मेनका' शब्द का अर्थ 'वाणी' और 'गिरि', 'पर्वत' आदि शब्दों का अर्थ मेघ होता है। वे जगन्माता हैं। माता का काम बच्चों को दूध पिलाना है। वे जगत को जलरूपी दूध पिलाती हैं, इस काम में मेघ पिता के समान उनका सहायक हुआ। अतएव उनका नाम पार्वती और गिरिजा संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध है। हिमालय का मानी भी मेघ है क्योंकि महर्षि यास्क ने निरुक्त के छठे अध्याय के अन्त में हिम का अर्थ जल किया है-हिमेन उदकेन (नि.अ. 6) सिद्धिदात्री माता दुर्गा जगत के प्राणियों को दूध-जल पिलाती हैं, यह बात ऋग्वेद में दीख पड़ती है। गौरीर्मिमाय सलिलानि तक्षती ।
Navratri Ke Ninth Maa Siddhidatri Pooja Vidhaan Aur,Mantr, |
माता से संतति का आविर्भाव होता है। मेनका - वेदवाणी ने उनका ज्ञान लोगों .. को कराया। वेद ने हमें सिखाया है परमात्मा अपने को स्त्री-पुरुष-दो रूपों में देखते हैं जिससे कि प्राणियों को ईश्वर के मातृत्व-पितृत्व दोनों का सुख प्राप्त हो। (त्र्यम्बकं यजामहे०) इसका अर्थ है हम दुर्गा सहित महादेव की पूजा करते हैं। सामवेद के षड्-विंश ब्राह्मण ने 'त्रयम्बक' शब्द को उक्त अर्थ बताया है 'स्त्री अम्बा स्वसा यस्य स त्र्यम्बकः'।
श्री दुर्गा दुर्गतिनाशिनी हैं। दुर्गति को विनिष्ट करने के लिए वीरता की आवश्यकता होती है। है। अतः एक अन्य कथा के अनुसार दुर्गा की उत्पत्ति विभिन्न देवों के तेज से हुई है। किसी समय दैत्यों के घोर अत्याचार से पीड़ित देवता त्राहि-त्राहि करते हुए सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के पास पहुंचे और रक्षा हेतु प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा को जब यह ज्ञात हुआ कि दैत्यराज वर प्राप्त करके शक्तिशाली हो चुका है। उसकी मृत्यु किसी कुंआरी कन्या के हाथ से होनी है, तब समस्त देवताओं के सम्मिलित दिव्य तेज से देवी की उत्पत्ति हुई, जिसमें शिव के तेज से मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजायें, चक्र के तेज से स्तन, इन्द्र के तेज से कमर, वरुण से जंघाएं, पृथ्वी से नितम्ब, ब्रह्मा से पैर, सूर्य से अंगुलियां, अग्नि से दोनों नेत्र उत्पन्न हुए।
दिव्य तेज से युक्त देवी सिद्धिदात्री दुर्गा के अद्भुत स्वरूप के दर्शन मात्र से ही मनुष्यों के समस्त पाप धुल जाते हैं।
मां सिद्धिदात्री पूजा विधान
आचमन-अपने हाथ धोकर निम्न मंत्र से माँ भवानी सिद्धिदात्री का ध्यान करते हुए तीन बार गंगाजल से आचमन करें-
॥ ॐ दुं दुर्गायै नमः ॥
॥ ॐ महाकाल्यै नमः ॥
॥ ॐ सिद्धिदात्र्यै नमः ॥
पुनः ॐ ह्रीं हृषीकेशाय नमः कहकर अपने दोनों हाथ धोएं। पुनः प्राणायाम और शिखाबंधन कर निम्न मंत्र से या निम्न स्तुति से माँ दुर्गा का ध्यान हाथ में लाल पुष्प लेकर करें-
करें।
- ध्यान-(संस्कृत में) -
सिद्धगर्ध्व यक्षाद्यै रसुरैरमरैदपि ।
सेव्यमाना सदाभूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
(अथवा)
छलक रहे हैं अपलक देखने को नेत्र, ललक रहे ये मेरे सकल करण हैं। आंसू हैं पदार्थ मन-मानिक की दक्षिणा है, सतत प्रदक्षिणा में निरत वाहन को हंस, अवगाहन को मानस है, आसन कमल-दल विमल पूजा का अखिल उपकरण सजा है अंब, चरण हैं। वरण हैं। आजा आज आये हम तेरी ही शरण हैं।
भगवती का ध्यान करते हुए ॐ दुं दुर्गायै नमः कहकर पुष्प चौकी पर अर्पण करें -
- आवाहन-
दारे दुख-दारिद घनेरे सरनागत कें, अंब अनुकंपा उर तेरे उपजत ही।
मंदिर में महिमा विराजा माँ सिद्धिदात्री जू की, गाजै झनकार धुनि कंचन-रजत ही।।
आसन विराजौ मातु सिद्धिदाता अम्बारानी मत गजराजन की घंटा बजत ही।
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। दुर्गादेवीमावाहयामि।
हारे हिय सारे हथियार डारि शत्रुअन के हारे देत हिम्मत नगारे के बजत ही ।।
(उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए हाथ में चावल और लाल पुष्प लेकर भगवती सिद्धिदात्री दुर्गा को अर्पण करें।)
- आसन-
नाना रत्नों मणियों से युत आसन तेरा सलौना है।
हेमसूत्र से गुंथा दिया दिव्यासन् तेरा मोहना है।।
श्रीजगदम्बायै दुर्गार्दव्यै नमः।
आसनार्थ पुष्पा पुष्पाणि समर्पयामि ॥
(लाल कपड़े पर सर्वतोभद्र चक्र या अष्टदल बनाकर (चावल से) विभिन्न पुष्पों से सुसज्जित आसन प्रदान करें। (सर्वतोभद्र रंगयुक्त चावल या दाल द्वारा बनायें ।)
- पाद्य-
जिनकी भक्ति के लेश मात्र से परमानंद संभव हो जाता है। पाद्य अर्घ्य उस सिद्धि सिद्धिदात्री को कर मन सुख पा जाता है।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि। (जल चढ़ायें।)
- अर्घ्य-
गंध सुवासित प्रसूनों का, अर्घ्य समर्पित जल है ये। अक्षत सम्पादित जल को लेकर, दूर करो मल मन का ये ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि ॥ (चन्दन, पुष्प, अक्षत से युक्त अर्घ्य दें।)
- आचमन-
कर्पूर सुवासित शीतल जल, जो स्वादु भरा आचमन हेतु । माते सिद्धिदात्री अर्पण तुमको, कर दो किरपा हे जननि सेतु ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। आचमनं समर्पयामि ॥ (कर्पूर से सुवासित जल द्वारा आचमन करायें।)
- गंगाजल स्नान-
भगवती महामाया सिद्धिदात्री दुर्गा को गंगाजल से निम्न मंत्र द्वारा जलाभिषेक करायें-
- स्नान-
मंदाकिनी का उत्तम जल, सब पापहारी गंगाजल है। हे सिद्धिदात्री सर्वसिद्धि देवी, - अर्पण तुमको उत्तम जल है।। श्री सिद्धिदात्र्यै दुर्गादेव्यै नमः। स्नानार्थं जलं समर्पयामि ॥
(गङ्गाजल चढ़ायें।) स्नानाङ्ग-आचमन-स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमन के लिए जल दें।)
- दुग्ध स्नान-
गैया के स्तन से निकल-निकल, बही दूध की अमृत धारा।
सिद्धिदात्री दुर्गा भैया यह दूध समर्पित गौ का सारा ।। (गोदुग्ध से स्नान करायें ।)
- दधिस्नान-
धेनुदुग्ध दोहन करके, स्वच्छ शुद्ध दधि बनाया है। चंद्रप्रभा की किरणें इसमें, सिद्धिदा चरण तुम्हारे आया है।। (गोदधि से स्नान करायें ।)
- घृत स्नान-
सभी जनों के सुंतोष का कारक, नवनीत बना नवनीत बना ।
स्नानार्थ लाया नूतन घृत परम पुनीत नवनीत घना।।
श्री जगदम्बायै सिद्धिदेव्य नमः । घृतस्नानं समर्पयामि । (गोघृत से स्नान करायें ।)
- मधु स्नान-
पुष्पों-पुष्पों से चुन-चुन कर, मक्खी ने शहद बनाया है।
मधुर वरेण्य सुगम स्वादिष्ट, स्नानार्थ तुम्हें यह आया है।।
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि। (मधु से स्नान करायें।)
- शर्करा स्नान-
जल मूल रसगर्भित इक्षु से, मधुर शर्करा निर्माण किया, मलापहारी दिव्य स्नान को, कर अर्पित तव सम्मान किया।।
श्री करायें।)
जगदम्बिकायै दुर्गादेव्यै नमः।
शर्करास्नानं समर्पयामि। (शक्कर से स्नान करायें।)
- पंचामृतं स्नान-
दूध, दही, घृत और मधु, शर्करा मिलाकर लाया हूँ। स्नान करो पंचामृत से, भय दूर रहे हरषाया हूं।। श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। (अन्य पात्र
में पृथक् निर्मित पञ्चामृत से स्नान करायें।)
- गन्धोधक स्नान-
मलयाचल में ठंडे झोकों बिच, चंदन का प्रादुर्भाव होता है। उस चंदन को गंधोदक कर, सिद्धि स्नान समर्पण होता है।। श्री जगदम्बायै सिद्धयै नमः। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि। (मलयचन्दन और अगरु से मिश्रित जल चढ़ायें।)
- शुद्धोदक स्नान-
शुद्ध सलिल दिव्य गंगा सम, समर्पित तुम्हें हे सिद्धिदात्री । मन मेरा शुद्धि से भर दो, कल्याणदायिनी जगतधात्री ।। ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (भगवती सिद्धिदात्री दुर्गा को शुद्ध सुवासित जल से स्नान करायें।) आचमन-शुद्धोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥ (उसके बाद इस मंत्र से आचमन के लिए जल दें।)
- वस्त्र-
हे सिद्धिदायिनी हे सिद्धिदा कृपा करो पट धारो।
यह कंचुक पट युग्म समर्पित मुझे भव सागर से तारो ।।
ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः वस्त्रोपवस्त्रं कञ्चुकीयं च समर्पयामि। (इस मंत्र से दो, पांच या अधिक वस्त्र भगवती को अर्पित करें।) 'वस्त्रान्ते आचमनीं समर्पयामि' से पुनः जल अर्पण करें।
- सौभाग्य सूत्र-
सौभाग्य सूत्र धारण कर देवी। करे स्तुति हम नित ही तेरी।
दुर्भागी को सौभागी करतीं। हार स्वर्णमणि धारण करतीं।।
श्री जगदम्बिकायै नमः । सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि ॥ (इस मंत्र से महिलाएं सौभाग्य सूत्र भगवती के गले में धारण करायें। पुरुष भगवती के दक्षिण हाथ पर धारण करायें।)
- पादुकार्पण-
नवरत्न युत समर्पित हो ये पादुकाएं जगदम्बे
तब चरणों की बस धूलि मिले सिद्धिदात्री हे अम्बे ।।
भगवती सिद्धिदात्र्यै नमः। चरणयोः पादुके समर्पयामि। (भगवती के चरणों से नूतन पादुकाएं स्पर्श करें तथा उन्हें अलग रखें।)
- चन्दन-
कस्तूरी मृग की नाभि से गंध मिली ये कस्तूरी। केशरयुक्त समर्पित सिद्धे, माँ इच्छा करना मेरी पूरी ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। चन्दनं समर्पयामि । (भगवती जगदम्बा दुर्गा को मलयचन्दन लगायें ।)
- केशपाशसंस्करणम्-(कंघी/कंघा)-
सूर्य कांति की किरणों सम, तेरे सुंदर बालों में।
चंपक बोला कनकसूत्रमुत, गूंथने तेरे बालों में।।
अगणित दांतों वाला माते, तेरे दर पर कंघा लाया हूं।
इसके सम दुःख दूर करो, यही अरज साथ में लाया हूं।।
ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्री दुर्गादेव्यै नमः । केशपाशसंस्करणं समर्पयामि ॥
(इस मंत्र से भगवती के केशों में कंघा करें और कंघा को अर्पण करें।) अद्भुत प्रयोग-इस उपरोक्त मंत्र से किसी एक कंधे से प्रतिदिन सोलह बार भगवती के केशों में कंघा करें और कंघे को गंगाजल से धोएं। यह क्रम 41 दिन तक करें। गंगाजल को पीतल के पात्र में रखें तथा अगले दिन अपने बालों में गंगाजल लगाते रहें। 42वें दिन गंगाजल लगाकर और उस कंघे के द्वारा पहले भगवती को कंघा करें पुनः ग्रहण करके प्रतिदिन अपने सिर में कंघा करें। ध्यान रहे कंघा लेते समय दूसरा भगवती को अर्पण करना न भूलें। कंघे में प्राप्त ऊर्जा से सिरदर्द दूर होता है। इस कंघे के दैनिक प्रयोग से बाल भगवती की तरह लम्बे और घने होते हैं। इस प्रयोग में श्रद्धा और विश्वास की परमावश्यकता है।
- हरिद्रा चूर्ण-
सुख-सौभाग्य प्रदायक यह, हल्दी तुम्हें समर्पित है। सुख-शान्ति प्रदान करे सिद्धिदा, यह मनं मेरा अति हर्षित है।।
द्वारा ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्री दुर्गायै नमः। हरिद्रां समर्पयामि।। (इस मंत्र भगवती के मस्तक तथा दक्षिण अंगुष्ठ (दोनों) पर हल्दी लगायें।)
- कुमकुम-
जाती के सुमनों-सा रक्त रंग मुख-कांति को बढ़ाता है। कुमकुम नाम दिया जिसने यह भक्त उसे चढ़ाता है। ॐ नमो भगवती दुर्गादेव्यै नमः। कुंकुमं समर्पयामि। (इस मंत्र द्वारा भगवती के मस्तक पर कुमकुम से तिलक लगायें।)
- सिन्दूर-
भक्ति भाव से हे सिद्धिदात्री, सिंदूर तुम्हें चढ़ाता हूं। स्वीकार करो वर दो माते, यह सुंदर गीत सुनाता हूं।।
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। सिन्दूरं समर्पयामि। (इस मंत्र से भगवती की मांग में सिंदूर चांदी या सोने की सलाई से भरें।) (यह कार्य महिलायें ही करें।)
- कज्जल (काजल)-
काजल ग्रहण करो सिद्धिदा, जो है शांति का कारक । उत्पन्न हुआ कर्पूर ज्योति से, बना हमेशा ज्योतिवर्धक ।। से आंखों में काजल लगायें।)
(इस मंत्र दूर्वाकुर-कुछ विद्वान् जन भगवती दुर्गा को दूर्वा (कालि घास) चढ़ाना निषेध करते हैं। किन्तु ऐसा करना सम्यक् व सार्थक कारण नहीं मिलता। तथापि यह विषय विवाद का नहीं है अतः मंत्र द्वारा भाव लेकर मानसिक रूप में अर्पण करना या दूर्वा लेकर चरणों में चढ़ाना श्रेयष्कर है।
- दूर्वाकुर-
हरितकांतमणि सम सुन्दर न्दर दूर्वा से, पूजा करू मैं नित सिद्धिदात्री।
चरणों में तेरे अर्पित है। बस तुम ही हो माँ पालनकर्ती ।।
- विल्व-पत्र -
त्रिदल- त्रिगुणाधार बने, त्रिनेत्र बने त्रि-आंयुध से। तीनों जनमों का पाप हरें, विल्वदल बने ये आयुध से ।।
विल्व-पत्र के तीनों दलों पर क्रमशः ऐं, ह्रीं क्लीं लिखकर स्वेच्छा से उपरोक्त मंत्र से विल्व-पत्र अर्पण करें।
- अलंकारान् (कंकणम्) -
माणिक्य मुक्ता मणिखंड युत, स्वर्णकार ने संस्कार कर बनाया है। ये कंगन स्वर्णशिला से मंडित, सिद्धिदात्री बेटा तेरा लाया है।। ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः ! हस्तयोः कंकणे समर्पयामि ॥ (भगवती दुर्गा को चौदह चूड़ी दोनों हाथों में अर्पण करें।)
- कर्णभूषणम्-
कर्णफूल भी स्वर्णमंडित यह, सिद्धिदात्री तुम्हारे कर्णों में। नमन मेरा स्वीकार सिद्धिदे, आया भक्त तुम्हारे चरणों में।। भगवती दुर्गादेव्यै नमः। कर्णयोः कुण्डले समर्पयामि।। (कानों के लिए सुवर्ण कुण्डल अर्पण करें।)
- हार-
गलकंठ का भूषण बनने को, मणि मानिक इसमें पिरोये हैं। धारण की माँ सिद्धि की दात्री, सुवासित जल में धोये हैं।। ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः। कण्ठे ग्रैवेयं समर्पयामि।। (इस मंत्र से भगवती दुर्गा को हार अर्पण करें।)
- अंगद-
जानु तक की दीर्घ भुजा में, स्वर्णांगुद समर्पित करता हूं। मम भुजा में हो शक्ति की वर्षा, सिद्धिदा नमन अर्पित करता हूं।। ॐ नमो भगवती सिद्धिदात्री दुर्गादेव्यै नमः। वाह्वोः अंगदे समर्पयामि ॥ (इस मंत्र से भगवती दुर्गा को बाजूबंद अर्पण करें ।)
- अंगुलीयकम् -
रवि-रश्मि की आभा जैसी पद्मपंखुरी-सी अंगुली तेरी। स्वर्णशिला से बनी अंगूठी वरदहस्त की शोभा अंगुली तेरी ।।
ॐ भगवती श्री दुर्गादिव्यै नमः। करौरंगुलिमुद्रिकां समर्पयामि। (इस मंत्र से भगवती को अंगूठी अर्पण करें।)
- कटिभूषणम् (कौंधनी)-
धरती माता ने कौंधनी से जैसे रत्न चौदहों का निर्माण किया। उसी तरह हे सिद्धिदा देवी ने नव रस का निर्माण किया ।। ये नव रस हमारे जीवन में, नवयुग निर्माण करें। स्वर्णमेखला धारण करके सिद्धि देवी कल्याण करें।। ॐ भगवती दुर्गादेव्यै नमः। कटिप्रदेशे काञ्चीं समर्पयामि ॥ (इस मंत्र से कटिभाग में कौंधनी पहनायें।)
- नूपुर-
कमल-कांत की आभा सम सिद्धिदा तव चरणों में।
नूपर रुनझुन-रुनझुन बोलें अर्पित तेरे चरणों में।।
ॐ नमो भगवती दुर्गादेव्यै नमः । पादयोः नूपुरे समर्पयामि ॥ (भगवती दुर्गा के दोनों पैरों में नूपुर पहनायें ।)
- राजोपचार-
भगवती के राजसिंहासन हेतु राजोपचार के लिए छत्र, चंवर, दर्पण (शीशा) तालवृंत (पंखा) और नारियल अर्पण किया जाता है। छत्र, चंवर, दर्पण, तालवृंत और नारियल जब तक स्वयं या किसी अन्य प्रकार से खंडित नहीं होता तब तक यह प्रतिदिन अर्पण किया जा सकता है। अतः उन्हें राजोपचार की सामग्री कहा जाता है। निम्न मंत्रों के अनुसार प्रत्येक को माँ भगवती को उनके उपयोग के स्थान पर अर्पण करें।
- छत्र-
कनक शिला का बना छत्र, अब अर्पित तेरे मस्तकं पर ।। चौदह रत्न जड़े हैं इसमें, चौदह ही भुवनों के दस्तक पर ।।
ॐ भगवती सिद्धिदात्र्यै नमः। छत्रं समर्पयामि । (छत्र धारण करायें।)
- चामर -
चमरीमृग के बालों से निर्मित अर्पण तुमको ये चामर।. सिद्धिदात्री जगत की अंबा मैं बेटा तेरा अति पामर ।। ॐ भगवती सिद्धिदात्री देव्यै नमः। चामरं समर्पयामि ॥ (चामर अर्पण करें ।)
- आदर्शम् (शीशा)-
दर्पण बना है इस जग में, सदा बिम्ब निहारन को।
सिद्धिदात्री स्वीकार करो, अब समझो मेरे कारण को।।
ॐ भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः। आदर्श समर्पयामि। (देवी को उनका श्रृंगार शीशे में दिखायें।)
- तालवृतम् (पंखा) -
खजूर के सुंदर पत्रों से सुंदर पंखा है तैयार किया। सिद्धिदात्री को मिले सुखद वायु कर ध्यान बयार किया।। ॐ नमोः भगवती दुर्गादेव्यै नमः। तालवृतम् समर्पयामि। (देवी को ताड़ का पंखा अर्पण करें।)
- मुकुट-
चौदह रत्नों से मंडित, निर्माण किया गया सुंदर ताज। जगतधात्री सिद्धि माता स्वीकण्र करो आकर आज ।। ॐ भगवती सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः। शिरसि मुकुटं समर्पयामि। (देवी के मस्तक पर मुकुट विराजमान करें।)
- अन्य आभूषणम्-
दूसरे (शेष) आभूषणों को निम्न मंत्र द्वारा धारण करायें- हार कंगन मेखला केयूर कुंडल आदि हैं। हीरों से जड़ा रत्न-भूषण लेकर हरती भव व्याधि हैं।।
- पुष्पमाला-
अति सुगंधित मालती की, माला गले में पहनाऊं।
अपने ही द्वारा लाए इन, सुमनों की तुम्हें चढ़ाऊं ।।
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। पुष्पमालां समर्पयामि। (पुष्प एवं पुष्पमाला चढ़ायें ।)
- नानापरिमल द्रव्य-
अबीर भरा गुलाल भरा। भुड्भुड़ की दी चमकन इसमें अर्पण करने को पात्र धरा ।। श्री सिद्धिदात्रीदेव्यै नमः। नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि। (गुलाल; लाल व हरा आदि, भुड़भुड़, चंदन चूर्ण अर्पण करें ।)
- सौभाग्यपेटिका-
सौभाग्यकामिनी को सजने को सौभाग्य द्रव्य जो भी होते। वे सभी समर्पित सिद्धिदात्री बड़े-बड़े या हो छोटे ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादिव्यै नमः। सौभाग्यपेटिकां समर्पयामि। (देवी को समस्त सुहाग की वस्तुओं की सौभाग्यपेटिका अर्पण करें।)
- धूप-
दस अंगों से रंजित धूप बनी, विघ्न-विनाशक यह धूप घनी। सिद्धिया तव अर्पण करने को, धूप बनी यह नव धूप बनी ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। धूपमाघ्रापयामि। (परमाराध्या देवी दुर्गा के समस्त अंगों को धूप दिखायें ।)
- दीप-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। दीपं दर्शयामि ॥ (परमाराध्या देवी दुर्गा के समस्त अंगों को घी की बत्ती दिखायें, पुनः हाथ धो लें।)
- नैवेद्य-
खोवा, पनीर अन्य सुस्वादु चीजों से, नाना प्रकार का भोजन ये। दधि-दूध, खीर, अरु, हलुआ, ये सब समर्पित भोजन ये ।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। नैवेद्यं निवेदयामि ॥ (नैवेद्य निवेदित करें।) आचमनीय आदि-नैवेद्यान्ते ध्यानमाचमनीयं जलमुत्तरापोऽशनं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ॥ (चार बार जल जमीन
पर छोड़ें।)
- -ऋतुफल-
मौसम और, ऋतुओं ने जो फल जग को प्रदान किये। लेकर उनकी तुच्छ भेंट सिद्धिदा जु को दान किये।। श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। ऋतुफलानि समर्पयामि। (भगवती जगज्जनी दुर्गा को ऋतुफल अर्पण करें।)
- ताम्बूल-
नागवल्ली के पावन पत्रों में, लौंग, इलायची को लेकर। पूंगीफल को लेकर देवी, संतुष्ट होऊं तुझको देकर॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। ताम्बूलं समर्पयामि ॥ (भगवती जगज्ज दुर्गा को इलायची, लौंग, पूंगीफल के साथ पान निवेदित करें।)
- धूप-
पूर्व देवियों की तरह भगवती सिद्धिदात्री को निम्न मंत्र से लौंग जोड़ा अर्पण करें-
सर्वमंगल मांगल्ये शिवि सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरिनारायणि नमोऽस्तुते॥
- ध्यान-
हाथ में लाल पुष्प या राशि के अनुसार एक या अधिक पुष्प ले माँ भगवती सिद्धिदात्री का निम्न मंत्र से ध्यान करें-
देव्या यय तदमिदं जगदात्मशक्त्या, निः शेषदेवगणशक्ति समूहमूर्त्या । तामम्बिका माखिलदेव महर्षि पूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥ स्तोत्र-(श्री सप्तश्लोकी दुर्गा)
- ॥ शिव उवाच ॥
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रहि यत्नतः॥
- ॥ देव्युवाच ॥
शृणु दे प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्। मया तदैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥ विनियोग अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्रस्य नारायण ऋ अनुष्टुप् छन्दः श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता श्री दुर्गाप्रीत् सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हिसा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥1॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्य दुःख-भयहारिणि का त्वदन्या,
सर्वोपकारकरणाय सहार्द्रचित्ता॥2॥
सर्वमंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥
शरणागतदीनार्तपिरत्राणपरायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नौ देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥5॥
रोगसशेषान पहंसि तुष्टा रुष्टा तु,
कामान् सकलानभीष्टान् !
त्वाामाश्रितानां त्वामाश्रिता
ह्यश्रयतां विपन्नराणो, प्रयान्ति ॥6॥
न सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्॥7॥
- स्तोत्र (हिन्दी में)-
विश्व-वर वीणा की मनोज्ञ मूर्छना हो, ज्ञान- दीप की शिखा हो, तुम-तोम-परिभूति हो। दिव्य जन्म-कर्म का तुम्हारे कौन जाने मर्म, कवि प्रतिभा की तुम पावन प्रसूति हो।॥ हो। परम प्रभूति हो, विभूति भव्य जीवन की, विभव-विहीन की अमिट भवभूति चाहता न कौन है सहानुभूति तेरी देवि ! नर-नरलोक की अमर अनुभूति पाकर तुम्हारी करूणा की एक बूंद हो। अम्ब! ज्ञान का अपार वाणी में अगम निरागम पाराबार है छलकता। निवास करें, तत्व परमाणु में महान का झलकता ॥ संतत उर-अन्तर से, अनंत रसमय भव्य भावनाओं का प्रवाह है ढलकता। आते दृष्टि में हैं दृश्य सृष्टि के रहस्यभरे, कान्त-कल्पना की ओर हृदय ललकता ॥
सिद्धिदात्री के जपनीय. मंत्र-
- ॐ ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
- ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः ।
सिद्धिदात्री के रूप में नवम कन्या का पूजन-सिद्धिदात्री के रूप में नवरात्र की अन्तिम तिथि को सिद्धिमाता की प्रतीका नवम कन्या के रूप में 'त्रिपुरा' का पूजन किया जाता है। त्रिपुरा के लिए तीन वर्ष की कन्या का पूजन करना चाहिए।
निम्न मंत्र से सिद्धिदात्री को भोज्य पदार्थ अर्पित करें-
त्रिपुरां त्रिपुरा धारां त्रिवर्ग ज्ञानरूपिणीम्।
त्रैलोक्य वन्दितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम्हम्॥
- मंत्र प्रकरण-
प्रत्येक प्रकार के दैहिक, दैविक तथा भौतिक कार्यों सृष्टिकर्त्ता भगवती सिद्धिदात्री हैं। उनके द्वारा साधक का मनोरथ उसी प्रकार प होता. है, जैसे बच्चे का माँ के द्वारा। नीचे भगवती के जन-कल्याण मंत्र दिए रहे हैं। साधक को इनका सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
- लक्ष्मी-विनायक मंत्र-
नवरात्र की नवमी तिथि अथवा दीपावली से आर कर चौबीस दिनों में पांच लाख की संख्या में जप करने के उपरान्त यह सिद्ध हो जा है। इसके उपरान्त एक मिट्टी या तांबे के कलश में सप्त धान्य, घी, देवी का सिन् तथा चांदी या सोने का सिक्का रखकर पात्र को विधिपूर्वक सकोरे से ढककर व गंगाज द्वारा इसी मंत्र से अभिमंत्रित करके लाल कपड़े में नौ गांठों से पूर्णतः कलश बंद तिजोरी में रखने से लक्ष्मी वहां वास करती हैं। यह मंत्र इतना प्रभावशाली होता है। इसके 108 मात्रा में जप करने से ही सामान्य धन की समस्या से छुटकारा मिल जा है। इस मंत्र को विनियोग तथा ध्यान मंत्र के बाद जपना चाहिए-
- विनियोग-
ॐ अस्य लक्ष्मी विनायक मंत्रस्य अंतर्यामी ऋषिः गायत्री छंदः, लक्ष् विनायको देवता श्रीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे ज् विनियोगः ।
- ध्यान-स्तुति-
दन्तामये चक्रवरौ दधानं, करांग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम् । धृताब्जया लिंगितमब्धि पुत्रयाः लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे ॥
- जप-मंत्र-
ॐ श्री गं सौम्याय गणपतये, वर वरद सर्वजयं मे वशमान्य स्वाहा। भय निवारक मंत्र-अकारण मिलने वाले भय से शीघ्र मुक्ति दिलाने में समर्थ यह भगवती दुर्गा का मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली है। स्वप्न, भूत, प्रेत, पिशाच का भय दूर करने में समर्थ यह मंत्र सोने के समय भय से उठ जाने वाले कच्चे के लिए अत्यंत उपयोगी है। नजर दूर करने में सहायक है। इस मंत्र से 21 बार जल अभिमंत्रित कर रोगी को पिला देने से वह भयमुक्त हो जाता है। नजर लगे व्यक्ति के ऊपर आटे की लोई लेकर सात बार इस मंत्र द्वारा सिर से पैर की ओर फिराकर दक्षिण दिशा में फेंक देने से नजर लगने का प्रभाव जाता रहता है।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि! दुर्गे देवि ! नमोऽस्तुते॥
शक्ति-विनायक मंत्र
यह गणेश-मंत्र सभी प्रकार की भौतिक समृद्धि प्रदान करता है। धन-धान्य, भूमि-भवन, यश-मान, सेवक-सेविका और वाहन आदि सुख की कामना रखने वाले भक्तों के लिए नवमी तिथि से आरम्भ कर प्रतिदिन एक माला जप करते हैं। इसका जप बहुत कल्याणकारी होता है।
- विनियोग-
ॐ अस्य शक्तिगणाधिप मंत्रस्य भार्गवऋषिः विराट् छंदः शक्तिगणाधिपोदेवता ह्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
- ध्यान-स्तुति-
समुद्याद्दिनेशाभमीडे ॥ स्वपल्या युत हेमभूषामराढ्यं, गणेशं
- जप-मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं। सर्वविघ्नहरण प्रयोग-समस्त पीड़ाओं से मुक्ति पाने हेतु दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रात्रि में एक थाली काजल से 'क्लीं' लिखें और उस पर पुष्प अर्पित करके कुमकुम, चावल आदि से पूजन करके मंत्र पाठ करें।
ॐ अदृश्य देवाय विघ्नविनाशाय फट् स्वाहा। एक हजार जप प्रतिदिन पूर्णिमा तक करें। पूर्णिमा को तेल एवं गुड़ को डालकर हलवा बनायें। वह हलवा और जल का पात्र लेकर चौराहे पर जायें। हलवा चौराहे पर रखकर जल का घेरा बनायें और बिना पीछे देखे लौट आयें। मंत्र जाप मूंगे की माला से करें।
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