शनि प्रकोप से बचाव | शनि शांति के टोटके
शनि प्रकोप से बचाव
प्रस्तुत यंत्र को लोहे, शीशे या रांगे के पत्र पर, किसी शनिवार के दिन उत्कीर्ण कराएं तथा यंत्र के बीच में एक नीलम (रत्न) लगवा लें अथवा बड़े आकार के नीलम पर यंत्र बनवा लें। तदुपरांत यंत्र का सविधि पूजन करें। आगे दिए गए मंत्र से प्राण- प्रतिष्ठा करें। मध्याह्नकाल में तेल का दीपक जला कर, पूजन आदि करके दान कर दें। इसके साथ ही लोहे का कोई टुकड़ा या बर्तन आदि, कड़वा तेल, उड़द, भैंस, काला वस्त्र, श्यामली गाय, कृष्ण पुष्प, स्वर्ण, कुलथी, कस्तूरी व कुछ धनादि भी दान करें।
Shani Prakop Se Bachaav | Shani Shaanti Ke Totake |
सौंफ, खिरैटी, लौंग, खस, लोबान, सुरमा, काले तिल, गोंद तथा शतकुसुम मिश्रित जल से स्नान करें। इससे शनिकृत पीड़ा का अतिशीघ्र निवारण हो जाता है। प्राण-प्रतिष्ठा का मंत्र यह है -
ओं शन्नो देवीरभीष्टयऽआपोभवन्तु पीतये ।
शंय्यो रभिस्त्रवन्तुनः ओंशनैश्चराय नमः ।।
यह पन्द्रहिया यंत्र भी शनि कष्ट निवारण के लिए अद्वितीय है। इसे किसी लोहे के पत्र पर उत्कीर्ण करवा कर, उपरोक्त मंत्र से ही अभिमंत्रित करने के पश्चात् शरीर पर धारण करना अपेक्षित है। इसके प्रभाव से शनि की साढ़ेसाती से उत्पन्न कष्ट दूर हो जाते हैं। मंत्र के 23 हजार जप से यंत्र सिद्ध हो जाता है।
वीरबाहुक प्रयोग
यह अत्यंत प्रभावशाली प्रयोग है। सबसे पहले स्वर्ण, चांदी या ताम्रपत्र पर निम्न यंत्र को उत्कीर्ण कराएं। फिर लाल वस्त्र पर यंत्र की स्थापना करके गंगाजल से कुश द्वारा मार्जन करें। इसके बाद यंत्र के मध्य दाहिने हाथ का अंगूठा रखकर प्रतिष्ठा का मंत्र पढ़ें। मंत्र यह है-
ओं आं ह्रीं क्रों यं रंलं वंशंषं सं हंसः अस्य प्राण प्राण इह प्राणाः पुनः ओं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वंशं षं सं हं सः अस्य सर्वेन्द्रयाणि वाड्मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र- जिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इहै - वागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा। ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पति- र्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमन्दधातु विश्वेदेवा स इहमादयान्तामों प्रतिष्ठ। प्रधानपीठादियंत्ररूपं श्रीहनुमानदेवता सुप्रतिष्ठितो वरदो भवतु ॥
षोडशोपचार पूजनोपरांत श्रीराम मंत्र का न्यूनतम एक माला जप करें। नैवेद्य में लड्डू, मालपूआ या पंचमेवा हो।श्रीराम का मंत्र यह है-
- ॐ नमो भगवते रामाय महापुरुषाय नमः ।
यंत्र को गुग्गल की धूप दें तथा एक माला, 'ॐ हनुमते नमः' इसका जप करते हुए गोदुग्ध में निर्मित हविष्यान्न से १०८ आहुतियां दें। इसके पश्चात् यंत्र की उपस्थिति में एक माह तक नित्यप्रति चार पाठ हनुमानबाहुक के करने हेतु विधिवत् संकल्प करें। पाठारंभ और पाठान्त में श्रीराम के मंत्र का जप अभीष्ट है। इससे शनि की साढ़ेसाती के प्रकोप का संपूर्णतः निवारण होता है। शनिवार को शुद्ध-पवित्र होकर हनुमानजी की मूर्ति के समक्ष बैठ उनकी पूजा-अर्चना करें। स्वयं अपने हाथों से राम मंत्र का उच्चारण करते हुए मूर्ति पर घृत मिश्रित सिंदूर लगाएं। सब अनुकूल हो जाता है।
शनि पाताल क्रिया
शनि की निर्दोष प्रतिमा का निर्माण उत्तराभाद्रपद, पुष्य या अनुराधा नक्षत्र में कराएं। प्राण प्रतिष्ठा करें।निम्नलिखित महामंत्र का 12 हजार की संख्या में जप करें।
ओं शन्नोदेवीरभिष्टयऽआपो भवंतु पीतये ।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु नः ।।
जप पूर्ण होने पर -
साधना-स्थल पर एक गहरा गड्डा खुदवाएं। फिर अत्यंत गोपनीय विधि से इस गड्ढे में शनि प्रतिमा को उल्टा करके मिट्टी से भली-भांति दाब दें एवं गड्ढे को समतल कर दें। शनि प्रतिमा का शीश नीचे की ओर होने से वह पाताल की ओर प्रस्थापित होगी तथा जातक आजीवन शनि संताप से मुक्त रहेगा।
शनि शांति के टोटके
- शनिवार को वट एवं पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक प्रज्वलित करके शुद्ध दूध एवं धूपादि अर्पित करना चाहिए।
- काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। उसके शीश पर रोली और सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करनी चाहिए। फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिलाएं। बंदरों और काले कुत्तों को लड्डू खिलाने से भी शनि के कुप्रभाव का शमन होता है।
- शनिवार के दिन अपने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा बटकर, माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से शनि की अनिष्टता शांत हो जाती है।
- शुक्रवार की रात में काले चने पानी में भिगो दें। शनिवार को ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले वस्त्र में बांधकर मछलियों के मध्य डाल दें। पूरे एक वर्ष तक प्रत्येक शनिवार को यह क्रिया करें। इसके फलस्वरूप शनि जनित कोप शांत होता है। जो व्यक्ति मछली भक्षी हों, उन्हें प्रयोगकाल में भूलकर भी मछली का भक्षण नहीं करना चाहिए।
- सुरमा, काले तिल, सौंफ, नागरमोथा एवं लोध्र मिले हुए जल से स्नान करें। आंखों में सुरमा लगाना और तेल मालिश करना भी लाभप्रद है।
- कांसे की कटोरी में तेल भरें। उसमें अपना प्रतिबिंब देखकर तेल दान करें।
- काली गाय के घी का दीपक रोज शाम को मंदिर में जलाएं।
- शनि के प्रतिकूल होने पर दुर्घटना का भय सदैव बना रहता है। बचाव के लिए नीचे दिए मंत्र का सुबह, दोपहर और सायं (विशेषकर संधिकाल में) जपें। अपनी छाती पर फूंक मारें। ओं आं ह्रीं क्लीं श्रीं हूं द्रं हुं फट् रक्ष रक्ष कालिके कुंडलिके निगुटे अस्त्र शस्त्र, मर्जार व्याघ्र कुदंष्ट्रिभ्यो विषेभ्यो, शनुभ्यो सर्वेभ्यो द्री दूं स्वाहा ।। उपरोक्त प्रयोग उनके लिए अत्यंत लाभकारी है, जिन्हें घोर जंगल की राहों से आना-जाना होता है।
- वीरान जगह पर जमीन में सुरमा दबाएं।
- बरगद के पेड़ पर दूध चढ़ा कर गीली मिट्टी से तिलक करें।
- मांसाहार और मदिरा के सेवन से बचें। सर्पों को संरक्षण दें।
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