Shani Vrat Vidhi : शनि व्रत-विधि सम्पूर्ण,Shani Vrat Vidhi Complete

Shani Vrat Vidhi : शनि व्रत-विधि सम्पूर्ण,

शनि व्रत प्रत्येक स्त्री-पुरुष कर सकता है। इस व्रत को किसी भी शनिवार से आरम्भ किया जा सकता है। श्रावण मास के श्रेष्ठ शनिवार से व्रत आरम्भ किया जाए तो विशेष लाभप्रद रहता है। व्रती मनुष्य नदी आदि के जल में स्नान कर, ऋषि-पितृ तर्पण करे, सुन्दर कलश जल से भर कर लावे, शनि प्रतिमा के पास अथवा पीपल के पेड़ के नीचे सुन्दर वेदी बनावे, उसे गोबर से लीपे, लौह से निर्मित शनि की प्रतिमा को पंचामृत में स्नान कराकर काले चावलों से बनाए हुए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करे। काले रंग के गंध, पुष्प, अष्टांग, धूप, फूल, उत्तम प्रकार के नैवेद्य आदि से पूजन करे। शनि के दस नामों का उच्चारण करे, जो इस प्रकार हैं: -
Shani Vrat Vidhi : शनि व्रत-विधि सम्पूर्ण,Shani Vrat Vidhi Complete
  1. ॐ कोणस्थाय नमः
  2. ॐ पिंगलाय नमः
  3. ॐ बभ्रवे नमः
  4. ॐ कृष्णाय नमः
  5. ॐ रौद्रांतकाय नमः
  6. ॐ यमाय नमः
  7. ॐ सौरये नमः
  8. ॐ मन्दाय नमः
  9. ॐ शनैश्चराय नमः
  10. ॐ पिप्पलादेन संस्तुताय नमः
पीपल के वृक्ष में सूत के सात धागे लपेटकर सात परिक्रमा करे तथा वृक्ष का पूजन करे। शनि पूजन सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में करना चाहिए। शनिवार व्रत- कथा को भक्ति और प्रेमपूर्वक सुने। कथा कहने वाले को दक्षिणा दे। तिल, जौ, उड़द, गुड़, लोहा, तेल, नीले वस्त्र का दान करे। आरती करे और प्रार्थना करके प्रसाद बांटे। पहले शनिवार को उड़द का भात और दही, दूसरे शनिवार को खीर, तीसरे को खजला, चौथे शनिवार को घी और पूरियों का भोग लगावे। इस प्रकार तैंतीस शनिवार तक इस व्रत को करे। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इससे सब प्रकार के कष्ट, अरिष्ट तथा आधि-व्याधियों का नाश होता है और अनेक प्रकार के सुख-साधनों, यथा-धन, पुत्र, पौत्रादि की प्राप्ति होती है।
कामना की पूर्ति होने पर शनिवार के व्रत का उद्यापन करे। तैंतीस ब्राह्मणों को भोजन करावे, व्रत का विसर्जन करे। इस प्रकार व्रत का उद्यापन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है एवं सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति होती है। राहु, केतु और शनि के कष्ट निवारण हेतु शनिवार के व्रत का विधान है।
इस व्रत में शनि की लोहे की, राहु व केतु की शीशे की मूर्ति बनवाएं। कृष्ण वर्ण वस्त्र, दो भुजदण्ड और अक्षमालाधारी, काले रंग के आठ घोड़े वाले शीशे के रथ में बैठे शनि का ध्यान करें। 
कराल बदन, खड्ग, चर्म और शूल से युक्त नीले सिंहासन पर विराजमान वरप्रद राहु का ध्यान करें। धूम्र वर्ण, भुजदण्डों, गदादि आयुध, गृध्रासन पर विराजमान, विकटासन और वरप्रद केतु का ध्यान करें। इन्हीं स्वरूपों में मूर्तियों का निर्माण करावें अथवा गोलाकार मूर्ति बनावें। काले रंग के चावलों से चौबीस दल का कमल बनाएं। कमल के मध्य में शनि, दक्षिण भाग में राहु और वाम भाग में केतु की स्थापना करें। रक्त चन्दन में केशर मिलाकर, गन्ध- चावल में काजल मिलाकर, काले चावल  काकमाची, कागलहर के काले पुष्प, कस्तूरी आदि से 'कृष्ण धूप' और तिल आदि के संयोग से कृष्ण नैवेद्य (भोग) अर्पण करें और 'शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्तेतवथ राहवे। केतवेऽथ नमस्तुभ्यं सर्वशान्तिप्रदो भव' मंत्र से प्रार्थना करें। सात शनिवार व्रत करें। घी व काले तिल से प्रत्येक के लिए १०८ आहुतियां दें और ब्राह्मणों को भोजन करावें। इस प्रकार शनिवार के व्रत के प्रभाव से शनि, राहु, केतुजनित कष्ट, सभी प्रकार के अरिष्टों का सर्वथा नाश होता है।
  • महाकाली की उपासना करें। नारियल चढ़ाएं।
  • उड़द की दाल का भोजन प्रयोग में न लाएं।
  • पीपल की जड़ में तेल चढ़ाएं।
  • तेल का दीपक सुबह-शाम जलाएं।

शनिवार के दिन व्रत रखने से शनिदेव की कृपा बनी रहती है और कई तरह के लाभ मिलते हैं-

  • शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के कष्टों से मुक्ति मिलती है
  • नौकरी और व्यापार में सफलता मिलती है
  • घर में सुख शांति आती है और स्वास्थ्य लाभ भी होता है
  • मनुष्य की सभी मंगलकामनाएं सफल होती हैं
  • जीवन में सुख-समृद्धि आती है और मान-सम्मान बना रहता है
  • व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है 
  • व्यक्ति का जीवन रोग मुक्त होता है और आयु में वृद्धि होती है
  • कठिन परिश्रम, अनुशासन और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है
  • कुंडली में शनि ग्रह दोष खत्म हो जाता है

शनिवार के दिन शनि देव की असीम कृपा पाने के लिए ये काम किए जा सकते हैं

  • काला कपड़ा या काला तिल दान करें
  • शमी के पौधे को जल चढ़ाएं और उसके नीचे सरसों का 
  • किसी गरीब को भोजन कराएं या दान दें
  • शनि मंत्र का जाप करें
  • शमी के पत्ते, शमी के फूल, जड़ और उसका फल चढ़ाएं

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