वरुथिनी एकादशी | कथा | पूजाविधि | व्रत का महत्व,Varuthini Ekadashi | Katha | Pooja Vidhi | Vrat Ka Mahatv

वरुथिनी एकादशी | कथा | पूजाविधि | व्रत का महत्व

यह पुण्यदायिनी, सौभाग्य प्रदायिनी एकादशी वैशाख बदी एकादशी को पड़ती है। इस दिन भक्ति भाव से भगवान् मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान् मधुसूदन की प्रसन्नता प्राप्त होती है। भगवान् की प्रसन्नता से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है और सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा भगवान् का चरणामृत ग्रहण करने से आत्म शुद्धि होती है।

Varuthini Ekadashi | Katha | Pooja Vidhi | Vrat Ka Mahatv

वरुथिनी एकादशी कथा 

प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम का राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह तपस्या कर रहा था, उसी उसमय जंगली भालू ने आकर राजा का पैर चबा डाला और फिर उसे घसीटता हुआ वन में ले गया। राजा ने करुण भाव से भगवान् विष्णु को पुकारा। भक्तवत्सल भगवान् ने प्रकट होकर भालू से राजा के प्राण बचाये। राजा का पैर भालू खा चुका था इससे वह बहुत ही शोकाकुल हुआ।
भगवान् बोले- वत्स! शोक मत करो। यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों के कारण तुम्हें कष्ट भोगने पड़े हैं। अब तुम वरुथिनी एकादशी को मथुरा में जाकर मेरे बाराह अवतार की मूर्ति की पूजा और व्रत करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। भगवान् की आज्ञा मान राजा ने श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया और प्रभु की कृपा से पुनः सुन्दर अंगों वाला हो गया।

वरुथिनी एकादशीपूजाविधि

इस दिन शंख, चक्र, कमल, गदा एवं पीताम्बरधारी भगवान विष्णु की रोली, मोली, पीले चन्दन,अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए और साथ ही यथाशक्ति श्री विष्णु के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करते रहना चाहिए। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर  रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व

पदम पुराण के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और अनेक वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। मनुष्य वरूथनी एकादशी का व्रत करके साधक विद्यादान का फल भी प्राप्त कर लेता है। यह एकादशी सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है एवं दरिद्रता का नाश करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली भी मानी गई है।

वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा (Varuthini Ekaadashi Vrat Katha)

वरुथिनी व्रत कथा कुछ इस तरह हैं की एक बार धर्मराज युधिष्ठिर कहते है की : हे प्रभु ! मैं आपको कोटि कोटि नमन करता हूँ। मुझ पर कृपा करके आप मुझे वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) के बारे में बताये और किसको करके कैसे व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा : हे धर्मराज ! वैशाख मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) कहा जाता है। यह एकादशी अत्यंत सौभाग्य देने के साथ साथ, सभी पापों को नष्ट कर अंत में मनुष्य को मुक्ति देती हैं। इस एकादशी का माहत्म्य आपसे कहता हूँ ध्यान से सुनकर इसका अनुसरण करे। आज से कई वर्षो पहले प्राचीन काल में मोक्ष दायिनी सरिता नर्मदा के तट पर मान्धाता नामक प्रभावशाली राजा सुखी पूर्वक राज्य कर रहे थे। वे अत्यंत तपस्वी तथा दानदाता थे। एक दिन की बात है अपने राजसी कार्यो को पूर्ण कर वे राज्य से कुछ दुरी पर तपस्या कर रहे थे और उसी में लीन थे, तभी वहा कही से जंगली भालू आ गया और वह राजा के पैरो को चबाने लगा। कित्नु राजा तपस्या में लीन थे की उन्हें पता नहीं चला।
कुछ देर बाद पैर चबाते हुए वो राजा को अत्यंत जोर से घसीटते हुए, जंगल को ओर ले जाने लगा। लेकिन घबराये हुए राजा ने इस विकट परिस्थिति में भी धैर्य और संयम नहीं खोया और अपने तापस धर्म को निभाते हुए न क्रोध किया और नहीं किसी तरह की हिंसा का प्रयोग भालू पर किया। इस विकट स्थिति में उसने हाथ जोड़ भगवान श्री हरि विष्णु से प्रार्थना की दया की पुकार से श्री हरि को पुकारा। इस करुणमयी पुकार से श्री हरि अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हो गए और उस भालू को मार दिया। राजा का पैर भालू पहले ही खा चूका था। पीड़ित और दुखी राजा को देख कर श्री हरि समझ गए और उन्हें दुखी न होने की बात करके बोले की हे राजन! तुम अपने इस पैर के लिए दुखी ना हो। मेरा कहना मानो और मथुरा नगरी जाओ तथा वह पहुंच कर वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi Vrat Samapan) का विधि पूर्वक व्रत करके मेरे ही एक अवतार वाराह की मूर्ति का पूजन करो। उस व्रत के प्रभाव से और मेरी ही कृपा से तुम फिर से सुदृढ़ शरीर वाले बन जाओगे। भालू द्वारा तुम्हे काटना भी तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का दोष है।
श्री हरि विष्णु की के कथन अनुसार राजा ने मथुरा जाकर अपना व्रत और प्रभु दर्शन बड़े ही भाव और श्रद्धा से किया। हरि कथन अनुसार ही जल्दी ही इस व्रत के प्रभाव से राजा फिर से पुरे शरीर के साथ और भी सुन्दर हो गया और अंत में वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) के प्रभाव से स्वर्ग लोक पहुंचे। इसीलिए हे धर्मराज ! अगर मनुष्य भय से पीड़ित हो और कुछ न समझ आये तो उस व्यक्ति को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) का बहुत ही श्रद्धा से व्रत करते हुए श्री हरि या वराह अवतार की भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए।

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