वट सावित्री व्रत का महत्व | कथा | पूजन सामग्री,Vat Savitri Vrat Ka Mahatv | Katha | Poojan Saamagree
वट सावित्री व्रत का महत्व | कथा | पूजन सामग्री
यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है। स्त्रियाँ बड़े सबेरे स्नान करती हैं और केशों को धोती हैं। जल, मौली, रोली, चावल, गुड़, भीगें चने, धूप-दीप से वढ़ वृक्ष की पूजा की जाती है और उसके चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है। भीगें हुए चनों का वायना निकाला जाता है। कहीं-कहीं पर यह त्यौहार ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक मनाया जाता है। यह व्रत स्त्रियों द्वारा अखण्ड सौभाग्यवती रहने की कामना से किया जाता है।
Vat Savitri Vrat Ka Mahatv | Katha | Poojan Saamagree |
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं बरदग की पूजा करने तक निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद बरगद के पेड़ की कोपल खाकर अपना व्रत को खोलती हैं। मान्यता है कि इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं। ऐसा करने से अच्छा स्वास्थ्य के साथ-साथ लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है।
सुहागिन नारियाँ नहा धोकर पूर्ण शृंगार करके और सुन्दर वस्त्राभूषण पहनकर प्रायः सामूहिक रूप से पूजा करने जाती हैं। वट वृक्ष के तने पर जल चढ़ाकर रोली के छींटे लगाए जाते हैं। और पूजन के लिए लाई गई सभी सामग्री चढ़ा दी जाती है। घी का दीपक जलाकर कच्चे सूत के धागे को हल्दी से रंगकर वृक्ष के तने पर लपेटते हुए वृक्ष की सात परिक्रमाएँ की जाती हैं। यदि आपके आस-पास बड़ का कोई पेड़ न हो तब भी निराश न हों, कहीं से एक टहनी मँगा लें अथवा दीवार पर वट वृक्ष को अंकित करके पूजा कर लें। पूजा-आराधना में मुख्य महत्त्व भावना, श्रद्धा विश्वास और आस्था का है। अतः आप दीवार पर बड़ के पेड़ का अंकन करें अथवा वास्तविक वट वृक्ष का पूजन, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। इस अवसर पर सत्यवान-सावित्री की यह कहानी कही और सुनी जाती है-
वट सावित्री व्रत कथा
बहुत समय पूर्व मद्रदेश में अवश्पति नामक एक परम ज्ञानी राजा थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए पण्डितों की सम्मति से भगवती सावित्री की आराधना की। इस पूजा से उनके यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ। उन्होंने इसका नाम सावित्री रखा। सावित्री सर्वगुण सम्पन्न थी। जब वह विवाह योग्य हुई तब राजा ने उसे स्वयं अपना वर चुनने को कहा। एक दिन महर्षि नारद राजा अवश्पति के घर आये हुए थे। तभी सावित्री भी अपने लिए वर चुनकर लौटी उसने आदरपूर्वक नारदजी को प्रणाम किया। नारदजी के पूछने पर सावित्री ने बताया कि महाराज, राज्यच्युत राजा द्युमत्सेन के आज्ञाकारी पुत्र सत्यवान को मैंने अपना पति बनाने का निश्चय किया है। तीनों लोको में भ्रमण करने वाले नारदजी ने उसके भूत, वर्तमान और भविष्य को देखकर राजा से कहा- राजन्! तुम्हारी कन्या ने वर खोजने में निःसन्देह भारी परिश्रम किया है। सत्यावन गुणवान और धर्मात्मा है। वह सावित्री के लिए सब प्रकार से योग्य है परन्तु उसमें एक भारी दोष है। वह अल्पायु है और एक वर्ष के पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त होगा। नारदजी के वचन सुनकर राजा ने पुत्री को कोई अन्य वर खोजने की सलाह दी। परन्तु सावित्री ने दृढ़तापूर्वक कहा कि जिसे मैंने एक बार मन से पति स्वीकार कर लिया है, वह अब चाहे जैसा भी है, वही मेरा पति होगा।
सावित्री के ऐसे दृढ़ वचन सुनकर राजा अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। सावित्री अपने पति और अन्धे सास-ससुर की सेवा करती हुई सुखपूर्वक वन में रहने लगी। नारदजी के कथानानुसार जब उसके पति के जीवन के तीन दिन बचे, तभी से वह उपवास करने लगी। तीसरे दिन उसने पितरों का पूजन किया। तत्पश्चात् वह सत्यवान के साथ वन में जाने की उद्यत हुई। इसके लिए उसने सास-ससुर से आज्ञा प्राप्त कर ली। सत्यवान लकड़ीं काटने के लिए एक वृक्ष पर चढ़ा, परन्तु शीघ्र ही सिर में पीड़ा होने के कारण नीचे उतर आया और सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। तभी सावित्री ने यमराज और उसके दूतों को सत्यवान का जीव निकालकर ले जाते हुए देखा। यह देख वह भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने उसे समझाकर वापस लौट जाने के लिए कहा। प्रत्युत्तर में सावित्री ने कहा- धर्मराज, पति के पीछे जाना ही स्त्री का धर्म है। पतिव्रत के प्रभाव और आपकी कृपा से कोई मेरी गति नहीं रोक सकता। सावित्री के धर्मयुक्त वचनों से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वर माँगने को कहा। सावित्री ने अपने सास-ससुर को दिखाई देने का वरदान माँगा। वर प्राप्त करके भी सावित्री ने अपने पति का साथ न छोड़ा। यमराज ने दूसरी वार वर माँगने को कहा। सावित्री ने अपने ससुर के खोए हुए राज्य की प्राप्ति का वरदान माँगा। वर देने के बाद यमराज ने पुनः सावित्री को वापस लौट जाने का आग्रह किया, किन्तु सावित्री अपने प्रण पर अडिग रही। तब यमराज ने उससे अंतिम वर माँगने के लिए कहा। सावित्री ने सत्यवान से सौ पुत्र प्राप्त होने का वरदान माँगा। सावित्री की पतिभक्ति और युक्तिपूर्ण वचनों के बंधन में बंधे यमराज ने सत्यवान के जीव को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री को वर देकर यमराज अंतर्ध्यान हो गये और वह लौटकर वट वृक्ष के नीचे आई। सत्यवान के मृत शरीर में पुनः जीवना का संचार हो गया था। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म का पालन करके अपने ससुर कुल एवं पितृकुल दोनों का कल्याण कर, दिया।
वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री
- सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए गाय का गोबर
- चावल और हल्दी के पेस्ट में थोड़ा सा पानी मिलाकर मिश्रण बना लें( थापा के लिए)
- कच्चा सूत या फिर सफेद धागा
- बांस का पंखा
- लाल कलावा
- बरगद की एक कोपल
- खरबूज, आम, केला फल
- फूल
- लाल कपड़ा
- अक्षत
- सुहाग का सामान
- स्टील या कांसे की थाली
- मिठाई
- धूप
- मिट्टी या पीतल का दीपक
- घी
- एक लोटा और गिलास
- फूल का माला
- बताशा
- सिंदूर
- रोली
- इत्र
- सुपारी
- पान
- नकद रुपए
- भिगोया हुआ चना
- 14 गेहूं के आटे से बनी हुई पूड़ियां
- 14 आटा और गुड़ से बने गुलगुले
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