जानिए कन्याकुमारी शक्तिपीठ-शुचिन्द्रम के बारे में, Jaanie Kanyaakumaaree Shaktipeeth-Shuchindram Ke Baare Mein
कन्याकुमारी शक्तिपीठ-शुचीन्द्रम
पौराणिक आख्यान है कि बाणासुरने घोर तपस्या करके भगवान् शंकरको प्रसन्न कर अमरत्वका वर माँगा। शंकर जी ने कहा-कुमारी कन्याके अतिरिक्त तुम अन्य सभीक्के लिये अजेय होओगे। भगवान् शिवसे इस प्रकारका वर प्राप्तकर बाणासुर घोर उत्पाती बन गया। देवताओंपर भी उसने विजय प्रास कर ली। इतना ही नहीं, देवलोकमें उसने त्राहि-त्राहि मचा दी। तब भगवान् विष्णुके परामर्शसे देवताओंने एक महायज्ञका आयोजन किया। देवताओं द्वारा किये गये यज्ञकी चिदग्निसे माता दुर्गा अपने एक अंशसे कन्यारूपमें प्रकट हुई।
देवी ने पतिरूपमें शंकरको पानेके लिये दक्षिण समुद्रतटपर कठोर तप किया। तपस्यासे प्रसन्न हो भगवान् आशुतोष ने उनका पाणिग्रहण स्वीकारा। देवताओंको चिन्ता हुई कि इनके पाणिग्रहण होनेपर तो बाणासुरका वध न हो सकेगा। अतएव नारदजीने विवाहार्थ आ रहे शंकरबीको 'शुचीन्द्रम्' नामक स्थानपर अनेक प्रपश्चोंमें उलझाकर इतनी देरतक रोके रखा कि प्रातःकाल हो गया और विवाहमुहूर्त टल गया। भगवान् शंकर वहाँ स्थाणुरूपमें स्थित रह गये। देवताओंकी युक्ति काम कर गयी। अपना अभीह जपूर्ण रहनेके कारण देवीने पुनः तपस्या करनी शुरू की। मान्यता है कि अभीतक वे कुमारीरूपमें तपस्यारत हैं। अपने दूतोंद्वारा तपस्यामें लीन देवीके अद्भुत सौन्दर्यका वृत्तान्त जानकर बाणासुर देवीके पास गया और उनसे विवाह करनेके लिये हठ करने लगा। फलतः देवीमें और बाणासुरमें घोर युद्ध हुआ। अन्ततः देवीके द्वारा बाणासुरका वध हुआ और देवगण आश्वस्त हुए।
कन्या कुमारी एक अन्तरीप है। यह भारतकी अन्तिम दक्षिणी सीमा है। पूर्वमें बंगालकी खाड़ी, पश्चिममें अरबसागर, दक्षिणमें हिन्दमहासागर है। तीनों समुद्रोंका संगम होनेसे यह स्थान तीर्थ बन गया। इसकी महिमाका वर्णन करते हुए महाभारतमें कहा गया है कि समुद्रतटपर स्थित कन्यातीर्थ (कन्याकुमारी) में जाकर ज्ञान करनेसे मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है-
ततस्तीरे समुद्रस्य कन्यातीर्थमुपस्पृशेत्।
तत्रोपस्पृश्य राजेन्द्र सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।
यहाँ बंगालकी खाड़ीके समुद्रमें सावित्री, गायत्री, सरस्वती, कन्याविनायकादि तीर्थ हैं। देवीके मन्दिरके दक्षिणमें मातृतीर्थ, पितृतीर्थ और भीमातीर्थ हैं। पश्चिममें थोड़ी दूरपर स्थाणुतीर्थ है। कहा जाता है कि शुचीन्द्रम्में शिवलिङ्गपर चढ़ाया जल भूमिके भीतरसे आकर यहाँ समुद्रमें मिलता है। कन्याकुमारी-मन्दिर समुद्रतटपर है। वहाँ ज्ञानघाट भी है। घाटपर गणेशजीका मन्दिर है। ज्ञानकर गणेशजी के दर्शन करनेके उपरान्त लोग कन्याकुमारीके दर्शन करने मन्दिरमें जाते हैं। कई द्वारोंके भीतर जानेपर कुमारीदेवीके दर्शन होते हैं। देवीकी प्रतिमा भावोत्पादक एवं भव्य है। देवीके एक हाथमें माला है। आश्विन नवरात्र, चैत्रपूर्णिमा, आषाढ़ अमावास्या, आश्विन अमावास्या, शिवरात्रि आदि पर्वोपर विशेष उत्सव होते हैं। विशेष उत्सवोंपर देवीका हीरोंसे शृङ्गार किया जाता है। रात्रिमें देवीका विशेष श्रृङ्गार होता है। निज मन्दिरके उत्तरमें अग्रहारके बीच भद्रकालीका मन्दिर है। ये कुमारीदेवीकी सखी मानी जाती हैं। वस्तुतः कन्याकुमारी ५१ शक्तिपीठोंमेंसे एक पौठ है। यहाँ देवी सतीका पृष्ठभाग (मतान्तरसे ऊर्ध्वदन्त) गिरा था। यहाँकी देवी' नारायणी' तथा भैरव 'स्थाणु' (मतान्तरसे 'संहार') हैं।
मन्दिर में और भी अनेक देवविग्रह हैं। मन्दिरसे थोड़ी दूरपर पापविनाशनम् पुष्करिणी है। यहाँ समुद्रतटपर ही एक बावली है जिसका जल मीठा है। यात्री इस बावलीके जलसे भी खान करते हैं। इसे 'मण्डूकतीर्थ' भी कहते हैं। यहाँ समुद्रतटपर लाल तथा काली बारीक रेत मिलती है और बेत मोटी रेत भी मिलती है। जिसके दाने चावल-सरीखे लगते हैं। समुद्रमें शङ्ख, सीपी आदि भी बहुतायतमें पाये जाते हैं। देवीके मन्दिरके दर्शनके पश्चात् नावद्वारा लोग विवेकानन्दशिलापर स्थित विवेकानन्दजीकी प्रतिमाके दर्शनहेतु भी जाते हैं। यह शिला समुद्रमें मन्दिरसे थोड़ी दूर ही है। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानन्दजी इस शिलापर बैठकर चिन्तन-मनन करते थे। शुचीन्द्रम् क्षेत्रको 'ज्ञानवनक्षेत्रम्' भी कहते हैं। महर्षि गौतम के शापसे इन्द्रको यहीं मुक्ति मिली और वे शुचि (पवित्र) हो गये, इसलिये इस स्थानका नाम 'शुचीन्द्रम्' पड़ा।
कन्याश्रम शक्तिपीठ - (Kanyashram Shakti Peeth)
शारीरिक अंग – रीढ़यह प्रसिद्ध मंदिर कन्याकुमारी, तमिलनाडु में स्थित है। यहाँ देवी शक्ति श्रावणी के रूप में हैं।बालाम्बिका कन्याश्रम (कन्याकुमारी शक्तिपीठ) परिचय
बालाम्बिका कन्याश्रम, जिसे कन्या आश्रम भी कहा जाता है, तमिलनाडु के कन्याकुमारी में स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ है। इसे भारत के 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है, जहां माता सती की रीढ़ की हड्डी गिरी थी। यहाँ की देवी को "कन्या देवी" और "कन्याकुमारी" के नामों से भी जाना जाता है।
इतिहास
मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। भगवान परशुराम ने देवी कन्या कुमारी की मूर्ति स्थापित की थी, और यह कहा जाता है कि मंदिर की वास्तुकला लगभग 3000 साल पुरानी है। वर्तमान मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों द्वारा किया गया था।
वास्तुकला
कन्याकुमारी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जिसमें काले पत्थरों के स्तंभों पर जटिल नक्काशी की गई है। मंदिर में कई गुंबद हैं जिनमें गणेश, सूर्यदेव, अय्यपा स्वामी, काल भैरव, विजय सुंदरी और बाला सुंदरी आदि देवताओं की मूर्तियाँ हैं। मंदिर परिसर में एक कुआँ है जिसे मूल-गंगातीर्थम कहा जाता है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर था, लेकिन अब प्रवेश उत्तरी द्वार से किया जाता है। पूर्वी द्वार साल में केवल पाँच बार अनोखे त्योहारों के अवसर पर खुलता है।
मंदिर के बारे में
मंदिर के अंदर मंदिर से जुड़े 11 तीर्थ स्थल हैं। भीतरी परिसर में तीन गर्भगृह, गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप हैं। फिर भी इन्हें पूरी तरह समझ पाना या रुककर देखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अंदर से मंदिर की संरचना भूलभुलैया जैसी है। मंदिर के गर्भगृह की चमक मन को मोहित कर लेती है और आंखों को चौंधिया देती है। गर्भगृह में दक्षिणी शैली के अनेक बत्तियों वाले लटकते हुए दीपक जलाए जाते हैं; देवी का श्रृंगार भी दक्षिणी शैली का है। मूर्ति को लंबे हार, नथ और चमकीले किनारे वाली साड़ी से सजाया गया है; देवी देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
दंतकथा
कन्याकुमारी मंदिर की पौराणिक कथा में बाणासुर नामक राक्षस की कहानी है। बाणासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल एक कुंवारी लड़की ही मार सकती है। देवी भगवती ने कन्या रूप में जन्म लिया और बाणासुर का वध किया। इस कारण से उन्हें कन्याकुमारी कहा जाता है।त्यौहार
- चित्रा पूर्णिमा: मई माह में मनाया जाने वाला पूर्णिमा का त्यौहार।
- नवरात्रि: सितंबर-अक्टूबर में मनाया जाने वाला नौ दिवसीय त्योहार।
- वैशाख महोत्सव: मई-जून में मनाया जाने वाला दस दिवसीय महोत्सव।
- कलाभम महोत्सव: जुलाई-अगस्त में मनाया जाता है, जिसमें मूर्तियों पर चंदन का लेप लगाया जाता है।
मंदिर का महत्व
देवी की शक्ति मन की कठोरता को दूर करने में सक्षम मानी जाती है। भक्त जब भक्ति और चिंतन के साथ प्रार्थना करते हैं, तो देवी उनकी सभी इच्छाएँ पूरी करती हैं।आसपास के दर्शनीय स्थल
- थोलावलाई मंदिर
- वटकोटाई किला
- पद्मनाभपुरम पैलेस
- ओलकारुवी जलप्रपात
- भगवान सुब्रह्मण्यम मंदिर
- विवेकानंद रॉक मेमोरियल
- थानुमालयन मंदिर
- तिरुवल्लुवर प्रतिमा
- मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक खुला रहता है।
यात्रा का सर्वोत्तम समय
कन्याकुमारी यात्रा का सर्वोत्तम समय दिसंबर से फरवरी के बीच है।कन्याश्रम शक्तिपीठ पहुंचने का तरीका:
- कन्याकुमारी शहर से करीब 87 किलोमीटर दूर तिरुवनंतपुरम यहां का नज़दीकी हवाई अड्डा है.
- कन्याकुमारी और नागरकोइल यहां के नज़दीकी रेलवे स्टेशन हैं.
- चेन्नई, बेंगलुरु, मदुरै, पुडुचेरि, तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों से बस या कार से भी कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है.
- कन्याकुमारी शहर से कन्याश्रम स्थल के लिए बड़ी संख्या में टूरिस्ट टैक्सी और ऑटो रिक्शा मिलते हैं
कन्याकुमारी में कन्याश्रम स्थल पर एक शक्तिपीठ है, जिसे कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. यह शक्तिपीठ एक टापू पर है, जो चारों ओर से जल से घिरा हुआ है. मान्यता है कि यहां माता सती का पीठ गिरा था और कुछ विद्वानों का मानना है कि यहां माता का ऊर्ध्व दांत भी गिरा था. इस शक्तिपीठ की शक्ति सर्वाणि और शिव का निमिष बताई जाती है. ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन करने से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं
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