लिङ्ग पुराण का परिचय तथा उसके पाठ, श्रवण एवं दान का फल,Ling Puraan Ka Parichay Tatha Usake Paath, Shravan Evan Daan Ka Phal

लिङ्ग पुराण का परिचय तथा उसके पाठ, श्रवण एवं दान का फल

  • लिङ्ग पुराण का अर्थ क्या है?
लिंग पुराण अठारह महापुराणों में से एक है, और हिंदू धर्म का एक शैव ग्रन्थ है। ग्रन्थ का शीर्षक लिंग शिव के प्रतीकात्मक प्रतीक को संदर्भित करता है। लिंग पुराण के लेखक और तिथि अज्ञात हैं, और अनुमान है कि मूल पाठ 5वीं-10वीं शताब्दी ई. के बीच रचा गया था।


लिङ्ग पुराण का परिचय तथा उसके पाठ, श्रवण एवं दान का फल

ब्रह्माजी कहते हैं-बेटा! सुनो, अब मैं लिङ्गपुराणका वर्णन करता हूँ, जो पढ़ने तथा सुननेवालोंको भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। भगवान् शङ्करने अग्निलिङ्गमें स्थित होकर अग्नि-कल्पकी कथाका आश्रय ले धर्म आदिकी सिद्धिके लिये मुझे जिस लिङ्गपुराणका उपदेश किया था, उसीको व्यासदेवने दो भागोंमें बाँटकर कहा है। अनेक प्रकारके उपाख्यानोंसे विचित्र प्रतीत होनेवाला यह लिङ्गपुराण ग्यारह हजार श्लोकोंसे युक्त है और भगवान् शिवकी महिमाका सूचक है। यह सब पुराणोंमें श्रेष्ठ तथा त्रिलोकीका सारभूत है। पुराणके आरम्भमें पहले प्रश्न है। फिर संक्षेपसे सृष्टिका वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् योगाख्यान और कल्पाख्यानका वर्णन है। इसके बाद लिङ्गके प्रादुर्भाव और उसकी पूजाकी विधि बतायी गयी है। फिर सनत्कुमार और शैल आदिका पवित्र संवाद है। तदनन्तर दाधिचि-चरित्र, युगधर्मनिरूपण, भुवन-कोश- वर्णन तथा सूर्यवंश और चन्द्रवंशका परिचय है। तत्पश्चात् विस्तारपूर्वक सृष्टिवर्णन, त्रिपुरकी कथा, लिङ्गप्रतिष्ठा तथा पशुपाश-विमोक्षका प्रसङ्ग है। भगवान् शिवके व्रत, सदाचार-निरूपण, प्रायश्चित्त, अरिष्ट, काशी तथा श्रीशैलका वर्णन है।

फिर अन्धकासुरकी कथा, वाराह चरित्र, नृसिंह-चरित्र और जलन्धर-वधकी कथा है। तदनन्तर शिवसहस्त्रनाम, दक्ष-यज्ञ-विध्वंस, मदन दहन और पार्वतीके पाणिग्रहणकी कथा है। तत्पश्चात् विनायककी कथा, भगवान् शिवके ताण्डव नृत्य-प्रसङ्ग तथा उपमन्युकी कथा है। ये सब विषय लिङ्गपुराणके पूर्वभागमें कहे गये हैं। मुने! इसके बाद विष्णुके माहात्म्यका कथन, अम्बरीषकी कथा तथा सनत्कुमार और नन्दीश्वरका संवाद है। फिर शिव-माहात्म्यके साथ स्नान, याग आदिका वर्णन, सूर्यपूजाकी विधि तथा मुक्तिदायिनी शिवपूजाका वर्णन है। तदनन्तर अनेक प्रकारके दान कहे गये हैं। फिर श्राद्ध- प्रकरण और प्रतिष्ठातन्त्रका वर्णन है। तत्पश्चात् अघोरकीर्तन, व्रजेश्वरी महाविद्या, गायत्री-महिमा, त्र्यम्बक माहात्म्य और पुराणश्रवणके फलका वर्णन है। इस प्रकार मैंने तुम्हें व्यासरचित लिङ्गपुराणके उत्तरभागका परिचय दिया है। यह भगवान् रुद्रके माहात्म्यका सूचक है। जो इस पुराणको लिखकर फाल्गुनकी पूर्णिमाको तिलधेनुके साथ ब्राह्मणको भक्तिपूर्वक इसका दान करता है। वह जरा-मृत्युरहित शिवसायुज्य प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य पापनाशक लिङ्गपुराणका पाठ या श्रवण करता है, वह इस लोकमें उत्तम भोग भोगकर अन्तमें शिवलोकको चला जाता है। वे दोनों भगवान् शिवके भक्त हैं और गिरिजावल्लभ शिवके प्रसादसे इष्ठलोक और परलोकका यथावत् उपभोग करते हैं, इसमें तनिक भी संशय नहीं है।

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