नारद पुराण की विषय-सूची, इस के पाठ, श्रवण और दानका फल,Naarad Puraan Kee Vishay-Soochee, Is Ke Paath, Shravan Aur Daanaka Phal

नारद पुराण की विषय-सूची, इस के पाठ, श्रवण और दानका फल

ब्रह्माजी कहते हैं- ब्रह्मन् ! सुनो, अब मैं नारदीय पुराणका वर्णन करता हूँ। इसमें पचीस हजार श्लोक हैं। इसमें बृहत्कल्पकी कथाका आश्रय लिया गया है। इसमें पूर्वभागके प्रथम पादमें पहले सूत-शौनक-संवाद है; फिर सृष्टिका संक्षेपसे वर्णन है। फिर महात्मा सनकके द्वारा नाना प्रकारके धर्मोकी पुण्यमयी कथाएँ कही गयी हैं। पहले पादका नाम 'प्रवृत्तिधर्म' है। दूसरा पाद 'मोक्षधर्म 'के नामसे प्रसिद्ध है। उसमें मोक्षके उपायोंका वर्णन है। वेदाङ्गोंका वर्णन और शुकदेवजीकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग विस्तारके साथ आया है। सनन्दनजीने महात्मा नारदको इस द्वितीय पादका उपदेश किया है। तृतीय पादमें सनत्कुमार मुनिने नारदजीको महातन्त्रवर्णित 'पशुपाशविमोक्ष 'का उपदेश दिया है। फिर गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और शक्ति आदिके मन्त्रोंका शोधन, दीक्षा, मन्त्रोद्धार, पूजन, प्रयोग, कवच, सहस्रनाम और स्तोत्रका क्रमशः वर्णन किया है।


तदनन्तर चतुर्थ पादमें सनातन मुनिने नारदजीसे पुराणोंका लक्षण, उनकी श्लोक-संख्या तथा दानका पृथक् पृथक् फल बताया है। साथ ही उन दानोंका अलग-अलग समय भी नियत किया है। इसके बाद चैत्र आदि सब मासोंमें पृथक् पृथक् प्रतिपदा आदि तिथियोंका सर्वपापनाशक व्रत बताया है। यह 'बृहदाख्यान' नामक पूर्वभाग बताया गया है। इसके उत्तर भागमें एकादशी व्रतके सम्बन्धमें किये हुए प्रश्नके उत्तरमें महर्षि वसिष्ठके साथ राजा मान्धाताका संवाद उपस्थित किया गया है। तत्पश्चात् राजा रुक्माङ्गदकी पुण्यमयी कथा, मोहिनीकी उत्पत्ति, उसके कर्म, पुरोहित वसुका मोहिनीके लिये शाप, फिर शापसे उसके उद्धारका कार्य, गङ्गाकी पुण्यतम कथा, गयायात्रावर्णन, काशीका अनुपम माहात्म्य, पुरुषोत्तमक्षेत्रका वर्णन, उस क्षेत्रकी यात्राविधि तत्सम्बन्धी अनेक उपाख्यान, प्रयाग, कुरुक्षेत्र और हरिद्वारका माहात्म्य, कामोदाकी कथा, बदरीतीर्थका माहात्म्य, कामाक्षा और प्रभासक्षेत्रकी महिमा, पुष्करक्षेत्रका माहात्म्य, गौतममुनिका आख्यान, वेदपादस्तोत्र, गोकर्णक्षेत्रका माहात्म्य, लक्ष्मणजीकी कथा, सेतुमाहात्म्यकथन, नर्मदाके तीर्थोंका वर्णन, अवन्तीपुरीकी महिमा, तदनन्तर मथुरा-माहात्म्य, वृन्दावनकी महिमा, वसुका ब्रह्माके निकट जाना, तत्पश्चात् मोहिनीका तीर्थोंमें भ्रमण आदि विषय हैं। इस प्रकार यह सब नारदमहापुराण है। 

जो मनुष्य भक्तिपूर्वक एकाग्रचित्त हो इस पुराणको सुनता अथवा सुनाता है, वह ब्रह्मलोकमें जाता है। जो आश्विनकी पूर्णिमाके दिन सात धेनुओंके साथ इस पुराणका श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको दान करता है, वह निश्चय ही मोक्ष पाता है। जो एकचित्त होकर नारदपुराणकी इस अनुक्रमणिकाका वर्णन अथवा श्रवण करता है, वह भी स्वर्गलोकमें जाता है।

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