सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र -आध्यात्मिक सफलता और
समृद्धि का मार्ग
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने और सभी प्रकार के दुख, दरिद्रता, और जीवन के संकटों से मुक्ति पाने के लिए पाठ किया जाता है। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति को समस्त कार्यों में सिद्धि, जीवन में सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। इस स्तोत्र की विशेषता यह है कि यह स्वयं भगवान ईश्वर और विष्णु के संवाद में रचित है, जिसका उल्लेख ब्रह्मपुराण में है।
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सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करते समय कुछ विशेष विधियों का पालन किया जाता है। यह विधि देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने और समस्त प्रकार के दुखों और कष्टों से मुक्ति के लिए सहायक मानी जाती है। यहाँ इस स्तोत्र के पाठ की विधि दी गई है:
1. स्थान और समय
- स्थान: पूजा के लिए स्वच्छ और शांत स्थान
का चयन करें। घर के मंदिर में, या किसी ऐसे स्थान पर जहाँ कोई व्यवधान न हो, पाठ करना शुभ माना जाता है।
- समय:
- यह स्तोत्र प्रातः, मध्याह्न और संध्या तीनों समय पाठ
किया जा सकता है।
- विशेषकर शुक्रवार को देवी लक्ष्मी
की पूजा और स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है।
2. आवश्यक सामग्री
- आसन: सफेद या लाल कपड़े का आसन लें।
- श्री यंत्र या देवी लक्ष्मी का
चित्र या प्रतिमा।
- दीपक, धूप, अक्षत (चावल), पुष्प, कुमकुम, और नैवेद्य (मिष्ठान्न)।
- एक माला (रुद्राक्ष या स्फटिक) पाठ
के लिए।
3. विनियोग
विनियोग का पाठ
करना बहुत महत्वपूर्ण है। विनियोग पाठ की शुरुआत में इस प्रकार किया जाता है:
ॐ अस्य श्रीसिद्धलक्ष्मीस्तोत्रमन्त्रस्य
हिरण्यगर्भ ऋषिः अनुष्टुप छन्दः
श्री महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताः
श्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं
मम सर्वक्लेशपीड़ापरिहारार्थं
सर्वदुःख-दरिद्रता-नाशनार्थं
सर्वकार्यसिद्ध्यर्थं च श्री
सिद्धलक्ष्मीस्तोत्र पाठे विनियोगः।
4. ऋष्यादिन्यास और करन्यास
- ऋष्यादिन्यास: सिर, मुख, हृदय, आदि पर मंत्रों का उच्चारण करते हुए हाथ रखें।
- करन्यास: दोनों हाथों की उंगलियों पर विशेष
मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्पर्श करें। यह प्रक्रिया स्तोत्र की शक्ति को
जागृत करती है।
5. हृदयादिषडङ्गन्यास
हृदय से लेकर
विभिन्न अंगों पर स्पर्श करते हुए विशेष मंत्रों का उच्चारण करें। इससे देवी की
कृपा का आह्वान किया जाता है।
6. दिग्बन्धन
"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं
सिद्धलक्ष्म्यै नमः" मंत्र का तीन बार उच्चारण कर चारों दिशाओं में तीन ताल
देकर दिग्बन्धन करें। इससे सभी दिशाओं में सुरक्षा होती है।
7. ध्यान
- देवी लक्ष्मी का ध्यान करें। ध्यान
में उन्हें चार भुजाओं वाली, तीन नेत्रों वाली, पीले वस्त्र पहने, और दिव्य आभूषणों से सुशोभित रूप में देखें।
- इस ध्यान के मंत्र का उच्चारण करें:
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां धड्भुजां च
चतुर्मुखीम्।
त्रिनेत्रां खड्गत्रिशूलपद्मचक्रगदा धराम् ।।
8. सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ
ध्यान के बाद
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना आरम्भ करें। पाठ में एकाग्रता बनाए रखें और
मानसिक रूप से देवी लक्ष्मी का ध्यान करते रहें।
9. मंत्र संख्या
- यह स्तोत्र कम से कम 108 बार जप करने का प्रयास करें।
- नियमित 21, 51 या 108 पाठ किए जा सकते हैं। यह भी कहा गया है कि यदि स्तोत्र
का 1 माह से लेकर 6 माह तक नियमित पाठ किया जाए तो
समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
10. आरती और प्रसाद वितरण
पाठ के समापन पर
देवी लक्ष्मी की आरती करें। आरती में "ॐ जय लक्ष्मी माता" या अन्य
लक्ष्मी की आरती का गान करें। फिर नैवेद्य (प्रसाद) को सभी परिजनों में वितरित
करें।
11. पूर्णाहुति और आशीर्वाद
- पूजा के अंत में देवी लक्ष्मी से
आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने संकल्प को सफल करने की प्रार्थना करें।
- यह भी कहा गया है कि यदि संभव हो तो
दान दें, विशेषकर गरीबों की सहायता करें।
इस विधि से सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि, सुख, और सौभाग्य आता है।
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ
सिद्ध लक्ष्मी
स्तोत्र देवी लक्ष्मी की पूजा का एक महत्वपूर्ण पाठ है, जो धन, समृद्धि, और सुख-समृद्धि की
प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ होते हैं:
- धन-संपत्ति में वृद्धि: सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने
से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन की कमी दूर होती है।
- शांति और सुख: यह स्तोत्र मानसिक शांति और संतोष
प्रदान करता है, जिससे जीवन में सुख-शांति बनी रहती
है।
- कष्टों का नाश: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से
विभिन्न प्रकार के कष्टों और समस्याओं का निवारण होता है।
- समृद्धि: देवी लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति को
जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
- परिवार में सुख-शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार
में प्रेम, सद्भावना और सहयोग बढ़ता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: नियमित रूप से सिद्ध लक्ष्मी
स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह ईश्वर के
निकट पहुंचता है।
इस प्रकार, सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ न केवल भौतिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र
- विनियोग :
ॐ अस्य श्रीसिद्धलक्ष्मीस्तोत्रमन्त्रस्य हिरण्यगर्भऋषिः
अनुष्टुप्छन्दः श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो
देवताः श्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं मम सर्वक्लेश पीडापरिहारार्थं
सर्वदुःखदारिद्रयनाशनार्थं सर्व कार्य सिध्यर्थं च श्री सिद्धलक्ष्मीस्तोत्र पाठे
विनियोगः।
- ऋष्यादिन्यास :
ॐ हिरण्यगर्भऋषये नमः शिरसि १।
अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे २।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमो
हृदिः ३।
श्रीं बीजाय नमो गुह्ये ४।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ५।
क्लीं कीलकाय नमो नाभौ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गेषु ।।७।।
इति ऋष्यादिन्यासः ।
- करन्यास :
ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः १।
ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे तर्जनीभ्यां नमः २।
ॐ क्लीं अमुतानन्दायै मध्यमाभ्यां नमः ३।
ॐ श्रीं दैत्यमालिन्यै अनामिकाभ्यां नमः ४।
ॐ ह्रीं तेजःप्रकाशिन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः ५।
ॐ क्लीं ब्राह्मयै वैष्णव्यै रुद्राण्यै
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ६।
इति करन्यासः ।
- हृदयादिषडङ्गन्यास :
ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै हृदयाय नमः १।
ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे शिरसे स्वाहा २।
ॐ क्लीं अमृतानन्दायै शिखायै वषट् ३।
ॐ श्रीं दैत्य मालिन्यै कवचाय हुम् ४।
ॐ ह्री तेजःप्रकाशिन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् ५।
ॐ क्लीं ब्राह्मयै वैष्णव्यै रुद्राण्यै अस्त्राय
फट् ।। ६ ।।
इति हृदयादिषडङ्गन्यासः ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः।
इति मन्त्रेण तालत्रयं दिग्बन्धनं च कुर्यात् ।
"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै
नमः"
इस मन्त्र से तीन ताल द्वारा दिग्बन्धन करें।
- अथ ध्यानम् ।
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां धड्भुजां च
चतुर्मुखीम्।
त्रिनेत्रां
खड्गत्रिशूलपद्मचक्रगदा धराम् ।।१।।
पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कारभूषिताम्।
तेजःपुःअधरीं
श्रेष्ठां ध्यायेद्वाल- कुमारिकाम् ।।२।।
इस प्रकार ध्यान करके स्तोत्र
का पाठ करें।
ॐकारं लक्ष्मीरूपं तु विष्णुं हृदयमव्ययम्
विष्णुमानन्दमव्यक्तं
ह्रींकारं बीजरूपिणीम् ।।१।।
कर्ली अमृतानन्दर्नी भद्रां सदात्यानन्ददायिनीम्।
श्रीं
दैत्यशमनीं शक्तिं मालिनीं शत्रुमर्दिनीम् ।।२।।
तेजःप्रकाशिनीं देवीं वरदां शुभकारिणीम्।
ब्राह्मीं
च वैष्र्णी रोद्रीं कालिकारूपशोभिनीम् ।।३।।
अकारे लक्ष्मीरूपं तु उकारे विष्णुमव्ययम्।
(ध्यायेदितिशेषः ।)
मकारः
पुरुषोऽव्यक्तो देवी प्रणव उच्यते।।४।।
सूर्यकोटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।
तन्मध्ये
निकरं सूक्ष्मं ब्रह्मरूपं व्यवस्थितम् ।।५।।
ॐकारं परमानन्दं सदैव सुखसुन्दरीम्।
सिद्धलक्ष्मि
मोक्षलक्ष्मि आद्यलक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सवार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके
गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।
प्रथमं
त्र्यंबका गौरी द्वितीयं वैष्णवी तथा ।। ७ ।।
तृतीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थ सुन्दरी तथा।
पञ्चमं
विष्णुशक्तिश्च षष्ठं कात्यायनी तथा ।। ८ ।।
वाराहीसप्तमं चैव ह्यष्टमं हरिवल्लभा।
नवमं
खङ्गिनी प्रोक्ता दशमं चैव देविका ।।६।।
एकादशं सिद्धलक्ष्मीर्द्वादशं हंसवाहिनी।
एतत्स्तोत्रवरं
देव्या ये पठन्ति सदा नराः ।।१०।।
सर्वाफल्यो विमुच्यन्ते नात्र कार्या विचारणा।
एकमासं
द्विमासं च त्रिमासं च चतुस्तथा।। ११ ।।
पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः सदा पठेत् ।
ब्राह्मणः
क्लेशितो दुःखी दारिद्रयामय पीडितः ।। १२ ।।
जन्मान्तरसहस्रो त्यैर्मुच्यते सर्वकिल्बिषैः।
दरिद्रो
लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रवान्भवेत् ।। १३ ।।
धन्यो यशस्वी शत्रुघ्नो वह्निचौरभयेषु च।
शाकिनीभूतवेतालसर्पव्याघ्रनिपातने
। । १४ ।।
राजद्वारे सभास्थाने कारागृहनिबन्धने।
ईश्वरेण
कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारकम् ।। १५ ।।
स्तुवन्तु ब्राह्मणा नित्यं दारिद्र्यं न च
बाधते।
सर्वपापहरा
लक्ष्मीः सर्वसिद्धिप्रदायिनी ।। १६ ।।
इति श्रीब्रह्मपुराणे
ईश्वरविष्णुसम्वादे श्रीसिद्धलक्ष्मी मन्त्रस्तोत्रविधानं समाप्तम् ।
उपसंहार
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र के नियमित पाठ से मनुष्य सभी प्रकार
के दुखों से मुक्त होता है और जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि यदि
इस स्तोत्र का एक मास, तीन मास, या छह मास तक नियमित पाठ किया जाए तो देवी लक्ष्मी की कृपा
से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
इस प्रकार यह सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र उन सभी के लिए अत्यंत फलदायी है जो जीवन में समृद्धि और सुख की कामना करते हैं।
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