लिंग पुराण : भगवान् शिव तथा देवी पार्वतीकी विभूतियोंका वर्णन एवं लिङ्गपूजनका माहात्म्य | Linga Purana: Description of the personalities of Lord Shiva and Goddess Parvati and the importance of Linga worship

श्री लिङ्गमहा पुराण [ उत्तरभाग ] ग्यारहवाँ अध्याय

भगवान् शिव तथा देवी पार्वती की विभूतियों का वर्णन एवं लिङ्गपूजन का माहात्म्य

सनत्कुमार उवाच

विभूतीः शिवयोर्मह्यमाचक्ष्व त्वं गणाधिप। 
परापरविदां श्रेष्ठ परमेश्वरभावित ॥ १

सनत्कुमार बोले- परापरवेत्ताओंमें श्रेष्ठ तथा परमेश्वर शिवको प्राप्त कर लेनेवाले हे गणाधिप! अब आप मुझसे शिव तथा पार्वतीकी विभूतियोंका वर्णन करें ॥ १ ॥

नन्दिकेश्वर उवाच

हन्त ते कथयिष्यामि विभूतीः शिवयोरहम् । 
सनत्कुमार योगीन्द्र ब्रह्मणस्तनयोत्तम ॥ २

नन्दिकेश्वर बोले- ब्रह्माके पुत्रोंमें श्रेष्ठ तथा योगिप्रवर हे सनत्कुमार! मैं शिव तथा पार्वतीकी विभूतियोंको आपको अवश्य बताऊँगा [वे इस प्रकार हैं-] ॥२॥

परमात्मा शिवः प्रोक्तः शिवा सा च प्रकीर्तिता। 
शिवमेवेश्वरं प्राहुर्मायां गौरीं विदुर्बुधाः ॥ ३

पुरुषं शङ्करं प्राहुगौरीं च प्रकृतिं द्विजाः । 
अर्थः शम्भुः शिवा वाणी दिवसोऽजः शिवा निशा ॥ ४

सप्ततन्तुर्महादेवो रुद्राणी दक्षिणा स्मृता। 
आकाशं शङ्करो देवः पृथिवी शङ्करप्रिया ॥ ५

समुद्रो भगवान् रुद्रो वेला शैलेन्द्रकन्यका। 
वृक्षः शूलायुधो देवः शूलपाणिप्रिया लता ॥ ६

वे परमात्मा शिव (कल्याणरूप) कहे गये हैं तथा वे पार्वती शिवा (कल्याणरूपिणी) कही गयी हैं। विद्वानोंने शिवको ही ईश्वर कहा है तथा पार्वतीको माया कहा है। द्विजोंने शंकरको पुरुष तथा गौरीको प्रकृति बताया है। शिव अर्थस्वरूप हैं तो पार्वती वाणी हैं और शिव दिन हैं तो पार्वती रात हैं। महादेव सप्ततन्तुरूप यज्ञ हैं और रुद्राणीको दक्षिणा कहा गया है। भगवान् शंकर आकाश हैं तथा शंकरप्रिया पार्वती पृथ्वी हैं। भगवान् रुद्र समुद्र हैं और गिरिराजकुमारी उसकी लहरें हैं। शूलको आयुधरूपमें धारण करनेवाले भगवान् शिव वृक्ष हैं तो हाथमें शूल धारण करनेवाले शिवकी प्रिया पार्वती उसकी लता हैं॥ ३-६॥

ब्रह्मा हरोऽपि सावित्री शङ्करार्धशरीरिणी। 
विष्णुर्महेश्वरो लक्ष्मीर्भवानी परमेश्वरी ॥ ७

वज्रपाणिर्महादेवः शची शैलेन्द्रकन्यका। 
जातवेदाः स्वयं रुद्रः स्वाहा शर्वार्धकायिनी ॥ ८

यमस्त्रियम्बको देवस्तत्प्रिया गिरिकन्यका। 
वरुणो भवगान् रुद्रो गौरी सर्वार्थदायिनी ॥ ९

बालेन्दुशेखरो वायुः शिवा शिवमनोरमा। 
चन्द्रार्धमौलिर्यक्षेन्द्रः स्वयमृद्धिः शिवा स्मृता ॥ १०

चन्द्रार्धशेखरश्चन्द्रो रोहिणी रुद्रवल्लभा। 
सप्तसप्तिः शिवः कान्ता उमादेवी सुवर्चला ॥ ११

शिव ब्रह्मा हैं तो शंकरकी अर्धांगिनी पार्वती सावित्री हैं। महेश्वर शिव विष्णु हैं तो परमेश्वरी भवानी लक्ष्मी हैं। महादेव हाथमें वज्र धारण करनेवाले इन्द्र हैं तो पर्वतराज की पुत्री उमा शची हैं। स्वयं रुद्र ही अग्नि हैं तो शिवकी अर्धांगिनी पार्वती स्वाहा हैं। त्रिनेत्र शिव यम हैं तो गिरिपुत्री पार्वती उनकी प्रिया हैं। भगवान् रुद्र वरुण हैं तो समस्त अभीष्ट प्रदान करनेवाली पार्वती उनकी भार्या हैं। बालचन्द्रको मस्तकपर धारण करनेवाले शिव वायु हैं तो शिववल्लभा पार्वती उनकी भार्या हैं। मस्तकपर अर्धचन्द्रसे सुशोभित होनेवाले शिव कुबेर हैं तो साक्षात् शिवा कुबेरपत्नी ऋद्धि कही गयी हैं। अर्धचन्द्रसे सुशोभित मस्तकवाले शिव चन्द्रमा हैं तो रुद्रप्रिया शिवा रोहिणी हैं। भगवान् शिव सूर्यदेव हैं तो उनकी प्रिया भगवती उमा [सूर्यपत्नी] सुवर्चला है॥ ७-११॥

षण्मुखस्त्रिपुरध्वंसी देवसेना हरप्रिया। 
उमा प्रसूतिर्वै ज्ञेया दक्षो देवो महेश्वरः ॥ १२

पुरुषाख्यो मनुः शम्भुः शतरूपा शिवप्रिया। 
विदुर्भवानीमाकूर्ति रुचिं च परमेश्वरम् ॥ १३

भृगुर्भगाक्षिहा देवः ख्यातिस्त्रिनयनप्रिया। 
मरीचिर्भगवान् रुद्रः सम्भूतिर्वल्लभा विभोः ॥ १४

विदुर्भवानीं रुचिरां कविं च परमेश्वरम्। 
गङ्गाधरोऽङ्गिरा ज्ञेयः स्मृतिः साक्षादुमा स्मृता ॥ १५

पुलस्त्यः शशभृन्मौलिः प्रीतिः कान्ता पिनाकिनः । 
पुलहस्त्रिपुरध्वंसी दया कालरिपुप्रिया ।। १६

क्रतुर्दक्षक्रतुध्वंसी सन्नतिर्दयिता विभोः । 
त्रिनेत्रोऽत्रिरुमा साक्षादनुसूया स्मृता बुधैः ॥ १७

ऊर्जामाहुरुमां वृद्धां वसिष्ठं च महेश्वरम् । 
शङ्करः पुरुषाः सर्वे स्त्रियः सर्वा महेश्वरी ॥ १८

त्रिपुरका नाश करनेवाले शिव कार्तिकेय हैं तो शिवप्रिया पार्वती [कार्तिकेयभार्या] देवसेना हैं। भगवान् महेश्वर दक्षप्रजा पति हैं तो उमाको प्रसूति जानना चाहिये। शम्भु पुरुष नामक मनु हैं तो शिवप्रिया पार्वती शतरूपा हैं। परमेश्वर शिवको रुचिप्रजापति तथा भवानीको आकूति कहा गया है। भगके नेत्रको विनष्ट करनेवाले शिव भृगु हैं तो त्रिनेत्र शिवकी प्रिया पार्वती ख्याति हैं। भगवान् रुद्र मरीचि हैं तो प्रभु शिवकी प्रिया पार्वती सम्भूति हैं। परमेश्वरको कवि (शुक्र) तथा भवानीको रुचिरा कहा गया है। गंगाधर शिवको अंगिराके रूपमें जानना चाहिये और साक्षात् उमाको स्मृतिके रूपमें समझना चाहिये। चन्द्रशेखर शंकरजी पुलस्त्य हैं तो पिनाकधारी शिवकी प्रिया पार्वती प्रीति हैं। त्रिपुरका विध्वंस करनेवाले शिव ऋषि पुलह हैं तो कालरिपु शिवकी प्रिया उमा दया है। दक्षके यज्ञको नष्ट करनेवाले शिव क्रतु हैं तो सर्वव्यापी शिवकी भार्या पार्वती सन्नति हैं। विद्वानोंने तीन नेत्रोंवाले शिवको अत्रि तथा साक्षात् उमाको अनसूया कहा है। महेश्वर शिवको वसिष्ठ तथा श्रेष्ठ उमाको ऊर्जा कहा गया है। [संसारके] सभी पुरुष शिवरूप हैं और सभी स्त्रियाँ महेश्वरी पार्वतीरूपा हैं ॥ १२-१८ ॥ 

पुल्लिङ्गशब्दवाच्या ये ते च रुद्राः प्रकीर्तिताः । 
स्त्रीलिङ्गशब्दवाच्या याः सर्वा गौर्या विभूतयः ॥ १९

सर्वे स्त्रीपुरुषाः प्रोक्तास्तयोरेव विभूतयः । 
पदार्थशक्तयो या यास्ता गौरीति विदुर्बुधाः ॥ २०

सा सा विश्वेश्वरी देवी स च सर्वो महेश्वरः । 
शक्तिमन्तः पदार्था ये स च सर्वो महेश्वरः ॥ २१

अष्टौ प्रकृतयो देव्या मूर्तयः परिकीर्तिताः । 
तथा विकृतयस्तस्या देहबद्धविभूतयः ।। २२

विस्फुलिङ्गा यथा तावदग्नौ च बहुधा स्मृताः । 
जीवाः सर्वे तथा शर्वो द्वन्द्वसत्त्वमुपागतः ॥ २३

गौरीरूपाणि सर्वाणि शरीराणि शरीरिणाम्। 
शरीरिणस्तथा सर्वे शङ्करांशा व्यवस्थिताः ।। २४

श्रव्यं सर्वमुमारूपं श्रोता देवो महेश्वरः । 
विषयित्वं विभुर्धत्ते विषयात्मकतामुमा ॥ २५

स्वष्टव्यं वस्तुजातं तु धत्ते शङ्करवल्लभा। 
स्रष्टा स एव विश्वात्मा बालचन्द्रार्धशेखरः ॥ २६

दृश्यवस्तु प्रजारूपं बिभर्ति भुवनेश्वरी। 
द्रष्टा विश्वेश्वरो देवः शशिखण्डशिखामणिः ॥ २७

पुल्लिंगशब्दवाची जो भी पदार्थ हैं, वे सब रुद्र कहे गये हैं; स्त्रीलिङ्गशब्दवाची जो भी हैं, वे सब गौरीकी विभूतियाँ हैं। सभी स्त्री-पुरुष उन्हीं दोनोंकी ही विभूतियाँ कही गयी हैं। पदार्थोंकी जो-जो शक्तियाँ हैं, वे सब गौरी  हैं-ऐसा विद्वानोंने कहा है। वह शक्ति विश्वेश्वरी देवी उमा ही हैं और वह समस्त पदार्थ भगवान् महेश्वर ही हैं। शक्तिसे युक्त जो भी पदार्थ हैं, वे सब महेश्वर शिवरूप है। आठों प्रकृतियाँ देवीकी मूर्तियाँ हैं और सभी विकृतियाँ उनकी देहबद्ध विभूतियाँ कही गयी हैं। जैसे अग्निमें अनेक विस्फुलिङ्ग बताये गये हैं, वैसे ही द्वन्द्वसत्त्वको प्राप्त शिवमें सभी जीव स्थित है। जीवकि समस्त शरीर गौरीरूप हैं और समस्त जीव शंकरके अंशरूपसे उनमें व्यवस्थित हैं। श्रवणके योग्य सब कुछ उमाका रूप है और उसके श्रोता भगवान् महेश्वर हैं। शिव विषयका आस्वादकत्व धारण करते हैं और पार्वती विषयात्मकता धारण करती हैं। शंकरप्रिया पार्वती सृजन करनेयोग्य सभी वस्तुओंको धारण करती हैं और अर्धबालचन्द्रको मस्तकपर धारण करनेवाले वे विश्वात्मा ही उनके स्रष्टा हैं। भुवनेश्वरी उमा समस्त प्रजारूप दृश्य वस्तुओंको धारण करती हैं और चन्द्रखण्डको सिरपर धारण करनेवाले भगवान् विश्वेश्वर उनके द्रष्टा हैं॥ १९-२७॥

रसजातमुमारूपं घेयजातं च सर्वशः। 
देवो रसयिता शम्भुर्धाता च भुवनेश्वरः ॥ २८

मन्तव्यवस्तुतां धत्ते महादेवी महेश्वरी। 
मन्ता स एव विश्वात्मा महादेवो महेश्वरः ॥ २९

बोद्धव्यं वस्तुरूपं च विभर्ति भववल्लभा। 
देवः स एव भगवान् बोद्धा बालेन्दुशेखरः ॥ ३०

पीठाकृतिरुमा देवी लिङ्गरूपश्च शङ्करः।
प्रतिष्ठाप्य प्रयत्नेन पूजयन्ति सुरासुराः ॥ ३१

ये ये पदार्था लिङ्गाङ्कास्ते ते शर्वविभूतयः । 
अर्था भगाङ्किता ये ये ते ते गौर्या विभूतयः ।। ३२

स्वर्गपाताललोकान्तब्रह्माण्डावरणाष्टकम् । 
ज्ञेयं सर्वमुमारूपं ज्ञाता देवो महेश्वरः ॥ ३३

बिभर्ति क्षेत्रतां देवी त्रिपुरान्तकवल्लभा। 
क्षेत्रज्ञत्वमथो धत्ते भगवानन्धकान्तकः ॥ ३४

सम्पूर्ण रस उमारूप है और शम्भु रस ग्रहण करनेवाले हैं सूँघनेयोग्य वस्तुसमूह उमारूप है और शिव उसके प्राता हैं। महादेवी महेश्वरी माननेयोग्य वस्तुता (भाव) को धारण करती हैं और वे विश्वात्मा महादेव महेश्वर उसका मनन करनेवाले हैं। शिवप्रिया पार्वती बोध करनेयोग्य वस्तुओंको धारण करती हैं और बालचन्द्रको मस्तकपर धारण करनेवाले वे भगवान् शिव उनके बोद्धा हैं। उमा पीठाकृति (जलहरी) हैं और शिव [उसमें स्थित] लिङ्गरूप हैं। देवता तथा दानव लिङ्ग तथा वेदीके रूपमें स्थापित करके प्रयत्नपूर्वक उनकी पूजा करते हैं। जो-जो पदार्थ पुरुषचिह्नोंवाले हैं, वे शिवकी विभूतियाँ हैं और जो-जो पदार्थ स्त्रीचिह्नोंवाले हैं, वे गौरीकी विभूतियाँ हैं। स्वर्गसे पाताललोकपर्यन्त आठ आवरणोंवाले ब्रह्माण्डमें जो भी जाननेयोग्य है, वह सब उमारूप है और उसके ज्ञाता भगवान् महेश्वर हैं। त्रिपुरका नाश करनेवाले शिवकी प्रिया देवी [पार्वती] क्षेत्रता (लिङ्गशरीररूपता) को धारण करती हैं और अन्धकका संहार करनेवाले भगवान् [शिव] क्षेत्रज्ञत्व (जीवरूपत्व) को धारण करते हैं॥ २८-३४॥

शिवलिडु समुत्सृज्य यजन्ते चान्यदेवता:। 
स नृपः सह देशेन रौरवं नरक ब्रजेत्‌॥३५

शिवभक्तो न यो राजा भक्तो-न्येषु सुरेषु यः। 
स्वपतिं युवतिस्त्यक्त्वा यथा जारेषु राजते॥ ३६

ब्रह्मादयः सुराः सर्वे राजानश्च महर्द्धिका: । 
मानवा मुनयश्चेव सर्वे लिड़ं यजन्ति च॥ ३७

विष्णुना रावणं हत्वा ससैन्यं ब्रह्मण: सुतम्‌। 
स्थापितं विधिवद्धक्त्या लिड् तीरे नदीपते:॥ ३८

[ जिस राजाके राज्यमें] लोग शिवलिड्रको छोड़कर अन्य देवताओंका पूजन करते हैं, वह राजा अपने देशसहित रौरव नरकमें जाता है। जो राजा शिवभक्त नहीं है और अन्य देवताओंके प्रति भक्तिपरायण रहता है, वह वैसे ही है, जैसे कोई युवती अपने पतिको छोड़कर परपुरुषोंमें आसक्ति रखती है। ब्रह्मा आदि सभी देवता, बड़े-बड़े ऐश्वर्यशाली राजा, मनुष्य तथा मुनिगण शिवलिड्रकी पूजा करते हैं। भगवान्‌ विष्णुने [रामावतारमें] सेनासहित ब्राह्मणपुत्र रावणका संहार करके समुद्रके तटपर विधिपूर्व शिवलिड्रको स्थापना की थी॥ ३५--३८॥

कृत्वा पापसहस्त्राणि हत्वा विप्रशतं तथा। 
भावात्समाभ्रितो रुद्रं मुच्यते नात्र संशय:॥ ३९

सर्वे लिड्रमया लोकाः सर्वे लिड़े प्रतिष्ठिता: । 
तस्मादभ्यर्चयेल्लिड्रं यदीच्छेच्छाश्वतं पदम्‌॥ ४०

सर्वाकारौ स्थितावेतौ नरै: श्रेयोडर्थिभि: शिवो।
पूजनीयौ नमस्कार्यों चिन्तनीयौँ च सर्वदा॥ ४१ 

हजारों पाप करके तथा सैकड़ों विप्रोंका वध करके भी जो भक्ति पूर्वक रुद्रका आश्रय ग्रहण करता है, वह मुक्त हो जाता है; इसमें सन्देह नहीं है। समस्त लोक लिड्रमय है और सभी लिछ़में ही स्थित हैं; अत: यदि कोई शाश्वत पदकी इच्छा रखता हो, तो उसे शिवलिड्रका पूजन अवश्य करना चाहिये। अपने कल्याणकी कामना करनेवाले मनुष्योंको सर्वरूपमें स्थित इन दोनों (शिव-पार्वती)-का सर्वदा पूजन नमस्कार और चिन्तन करना चाहिये॥ ३९--४१॥

॥  इति श्रीलिड्रमहापुराणे उत्तरभागे शिवविभूतिमहिमवर्णन॑ नामैकादशोउध्याय: ॥ ११ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिड्न्‍जमहापुराणके अन्तर्गत उत्तभागमें 'शिवविभूतिमहिमावर्णन ' नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ११ ॥ 

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