लिंग पुराण : भगवान् शिव के वामभाग से शिवा का प्रादुर्भाव तथा शिवा का दक्षपुत्री सती के रूप में पुनः मेनाकी कन्या पार्वतीके रूपमें प्राकट्य | Linga Purana: The emergence of Shiva from the left side of Lord Shiva and the reappearance of Shiva's right daughter Sati in the form of Mena's daughter Parvati

लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] निन्यानबेवाँ अध्याय

भगवान् शिव के वामभाग से शिवा का प्रादुर्भाव तथा शिवा का दक्षपुत्री सती के रूप में पुनः मेनाकी कन्या पार्वती के रूप में प्राकट्य

ऋषय ऊचुः

सम्भवः सूचितो देव्यास्त्वया सूत महामते। 
सविस्तरं वदस्वाद्य सतीत्वे च यथातथम् ॥ १

मेनाजत्वं महादेव्या दक्षयज्ञविमर्दनम् । 
विष्णुना च कथं दत्ता देवदेवाय शम्भवे ॥ २

ऋषिगण बोले- हे सूतजी। हे महामते! आपने देवीकी उत्पत्तिके विषयमें बताया; अब उनके सतीत्वके विषयमें ठीक-ठीक विस्तारपूर्वक बताइये और महादेवीका मेनासे उत्पन्न होने तथा दक्षके यज्ञविध्वंसका भी वर्णन कीजिये; विष्णुने देवदेव शम्भुको उन्हें कैसे प्रदान किया और उन विष्णुका कल्याण किस प्रकार हुआ- यह सब इस समय बतानेकी कृपा कीजिये ॥ १-२॥ 

कल्याणं वा कथं तस्य वक्तुमर्हसि साम्प्रतम् । 
तेषां तद्वचनं श्रुत्वा सूतः पौराणिकोत्तमः ॥ ३

सम्भवं च महादेव्याः प्राह तेषां महात्मनाम्।

सूत उवाच

ब्रह्मणा कथितं पूर्व दण्डिने तत्सुविस्तरम् ॥ ४

युष्माभिर्वै कुमाराय तेन व्यासाय धीमते। 
तस्मादहमुपश्रुत्य प्रवदामि सुविस्तरम् ॥ ५

वचनाद्वो महाभागाः प्रणम्योमां तथा भवम्। 
सा भगाख्या जगद्धात्री लिङ्गमूर्तस्त्रिवेदिका ॥ ६

लिङ्गस्तु भगवान् द्वाभ्यां जगत्सृष्टिर्द्विजोत्तमाः । 
लिङ्गमूर्तिः शिवो ज्योतिस्तमसश्चोपरि स्थितः ॥ ७

लिङ्गवेदिसमायोगादर्धनारीश्वरोऽभवत् । 
ब्रह्माणं विदधे देवमग्रे पुत्रं चतुर्मुखम् ॥ ८

उनका यह वचन सुनकर पौराणिकोंमें श्रेष्ठ सूतबी उन महात्माओंसे महादेवीके जन्मके विषयमें बताने लगे सूतजी बोले- [हे त्रऋषियो!] आपलोगोंने जो पूछा है, उस विषयमें सर्वप्रथम ब्रह्माने दण्डी सनत्कुमारको विस्तारसे बताया था, पुनः उन सनत्कुमारने बुद्धिमान् व्यासजीको बताया और हे महाभागो ! उन [व्यासजी]- से सुन करके मैं आपलोगोंके कहनेपर उमा तथा शिवको प्रणाम करके विस्तारपूर्वक आप लोगोंको बता रहा हूँ वे जगन्माता भग नामवाली और लिङ्गरूप शिवकी त्रिगुणवेदिका प्रकृतिरूपा हैं। लिङ्गरूप शिव सदा भगयुक्त रहते हैं। है उत्तम द्विजी। इन्हीं दोनों [लिङ्ग तथा भग] से ही जगत्‌की सृष्टि होती है। लिङ्गस्वरूप शिव प्रकाशरूप हैं और सदा मायारूपी तम (अन्धकार)- के ऊपर विराजमान हैं। लिङ्ग तथा वेदीके समायोगसे शिव अर्धनारीश्वर हो गये। उन्होंने पहले चतुर्मुख देव ब्रह्माको पुत्ररूपमें उत्पन्न किया ॥ ३-८॥

प्राहिणोति स्म तस्यैव ज्ञानं ज्ञानमयो हरः। 
विश्वाधिकोऽसौ भगवानर्धनारीश्वरो विभुः ॥ ९

हिरण्यगर्भ तं देवो जायमानमपश्यत।
सोऽपि रुद्रं महादेवं ब्रह्मापश्यत शङ्करम् ॥ १०

तं दृष्ट्वा संस्थितं देवमर्थनारीश्वरं प्रभुम् । 
तुष्टाव वाग्भिरिष्टाभिर्वरदं वारिजोद्भवः ॥ ११

विभजस्वेति विश्वेशं विश्वात्मानमजो विभुः ।
ससर्ज देवीं वामाङ्गात्पत्नीं चैवात्मनः समाम् ॥ १२

ज्ञानमय तथा विश्वमें सबसे बढ़कर विधु अर्धनारीश्वर भगवान् हरने उन [ब्रह्मा] को ज्ञान प्रदान किया। शिवजीने उत्पन्न हुए ब्रह्माको देखा और उन ब्रह्माने भी रुद्र शंकर महादेवको देखा। वहाँ स्थित अर्धनारीश्वर प्रभु शिवको देखकर ब्रह्माने अभीष्ट वचनोंसे उन वरदाता [शिव]- की स्तुति की। इसके बाद प्रभु अजने विश्वेश्वर विश्वात्मा [शिव] से प्रार्थना की' अपनेको विभक्त कीजिये।' तब उन्होंने अपने बायें अंगसे पत्नीके रूपमें अपने ही समान देवीका सूजन किया ॥ ९-१२ ॥

श्रद्धा ह्यस्य शुभा पत्नी ततः पुंसः पुरातनी। 
सैवाज्ञया विभोर्देवी दक्षपुत्री बभूव ह ॥ १३

सतीसंज्ञा तदा सा वै रुद्रमेवाश्रिता पतिम् । 
दक्षं विनिन्द्य कालेन देवी मैना ह्यभूत्पुनः ॥ १४

इन [आत्मरूप] पुरुषकी पुरातन शुभा पत्नी श्रद्धा हैं; शिवकी आज्ञासे वे देवी दक्षपुत्रीके रूपमें उत्पन्न हुई। उस समय उनका नाम सती पड़ा और उन्होंने रुद्रको पतिके रूपमें स्वीकार किया। कुछ समयके बाद दक्षकी निन्दा करके वे देवी पुनः मेनाकी पुत्री हुईं ॥ १३-१४ ॥

नारदस्यैव दक्षोऽपि शापादेवं विनिन्द्य च।
अवज्ञादुर्मदो दक्षो देवदेवमुमापतिम् ॥ १५

अनादृत्य कृतिं ज्ञात्वा सती दक्षेण तत्क्षणात् ।
भस्मीकृत्वात्मनो देहं योगमार्गेण सा पुनः ।। १६

बभूव पार्वती देवी तपसा च गिरेः प्रभोः।
ज्ञात्वैतद्भगवान् भर्गो ददाह रुषितः प्रभुः ॥ १७

दक्षस्य विपुलं यज्ञं च्यावनेर्वचनादपि।
च्यवनस्य सुतो धीमान् दधीच इति विश्श्रुतः ॥ १८

विजित्य विष्णुं समरे प्रसादात् त्र्यम्बकस्य च।
विष्णुना लोकपालांश्च शशाप च मुनीश्वरः ॥ १९

रुद्रस्य क्रोधजेनैव वह्निना हविषा सुराः।
विनाशो वै क्षणादेव मायया शङ्करस्य वै ॥ २०

नारदके शापके कारण अवज्ञासे दुर्मद दक्षने भी देवदेव उमापतिकी निन्दा करके यज्ञ किया। तब शिवके प्रति अनादरपूर्ण दक्षकृत्यको जानकर सतीने उसी क्षण अपनी देहको योगमार्गसे भस्म करके पुनः पर्वतराज हिमाचलको तपस्यासे उनकी पुत्री होकर] देवी पार्वतीके रूपमें जन्म लिया। यह जानकर च्यवन के  पुत्रके कहने से भगवान् प्रभु भर्गने कुपित होकर दक्षके विस्तृत यज्ञको जला दिया। च्यवनके बुद्धिमान् पुत्र दधीच नामसे प्रसिद्ध थे। शिवको कृपासे युद्धमें विष्णुको जीतकर उन मुनीश्वरने विष्णुसहित लोकपालोंको यह शाप दे दिया 'हे देवताओ! शंकरको मायाके कारण रुद्रके क्रोधसे उत्पन्न हविष्याग्निके द्वारा क्षणभरमें [आपलोगोंका] विनाश हो जायगा ॥ १५-२० ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे देवीसम्भवो नाम नवनवतितमोऽध्यायः ॥ ९९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें 'देवीकी उत्पत्ति' नामक निन्यानबेवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ९९ ॥

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