राजा शशिध्वज और भक्ति की महिमा
राजा शशिध्वज ने अपने राज्य में भक्ति और धर्म की महिमा का प्रचार किया। उनके कार्यों और विचारों ने सभी राजाओं को प्रभावित किया। एक बार, जब अन्य राजाओं ने उनसे पूछा कि वे युद्ध जैसे हिंसात्मक कार्यों में क्यों शामिल हुए, तो उन्होंने अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए भक्ति और धर्म का महत्व बताया।
युद्ध और धर्म का संबंध
राजा शशिध्वज ने बताया कि प्रकृति के तीन गुण - सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण, संसार में द्वैत भाव उत्पन्न करते हैं। यह प्रकृति ही सभी वेदों और तीनों लोकों की उत्पत्ति का कारण है। वेदों के अनुसार, धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना मानव का कर्तव्य है। इसी दृष्टिकोण से राजा शशिध्वज युद्ध में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि:
"वेदों में वर्णित है कि यज्ञ और युद्ध में की गई हत्या को अधर्म नहीं माना जाता।"
उन्होंने यह भी बताया कि युद्ध में आततायियों का नाश करना वेदों की आज्ञा का पालन है और इसे भगवान विष्णु की पूजा के समान माना गया है।
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भक्ति और भगवद् भजन
राजा शशिध्वज ने यह भी समझाया कि तीर्थ और सत्संग के माध्यम से जीव भगवान के दर्शन पाता है। ऐसे सज्जन भक्त विष्णु लोक में जाकर भगवान का भजन करते हैं। उन्होंने कहा:
"जो लोग रजोगुणी होते हैं, वे कर्मों द्वारा भगवान की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, और भगवान के महोत्सवों में शामिल होते हैं।"
भक्तों की विशेषताएँ:
भक्त लोग जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति की प्रार्थना नहीं करते।
वे हरिभाव में तल्लीन रहते हैं।
उनके कार्य और वाणी तीर्थ और क्षेत्र को पवित्र करते हैं।
भक्त की महिमा
राजा शशिध्वज ने भक्त की महिमा बताते हुए कहा कि भक्त भगवान नारायण के रूप होते हैं। उन्होंने निमि और वशिष्ठ जी की कहानियों का उदाहरण देते हुए बताया कि भगवान की माया अद्भुत है और इसे समझना अत्यंत कठिन है। उन्होंने कहा:
"तीर्थ, क्षेत्र और सत्संग के माध्यम से जीव भगवान की कृपा से ईश्वर का दर्शन करता है और उनके भजन में लीन हो जाता है।"
व्यास मुनि का ज्ञान
राजा शशिध्वज ने व्यास मुनि और अन्य ऋषियों के वेद-पुराण मंथन का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि इस मंथन का फल भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम का अद्भुत मक्खन था। उन्होंने कहा:
"इस कृष्ण-प्रेम के माध्यम से संसार के बंधन कट जाते हैं और जीव आनंदमय हो जाता है।"
निष्कर्ष
राजा शशिध्वज के उपदेशों ने यह स्पष्ट किया कि धर्म, भक्ति, और सत्य के मार्ग पर चलने से ही जीवन का उद्धार संभव है। उनकी बातें सुनकर राजाओं ने उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और भक्ति के मार्ग को अपनाने का संकल्प लिया।
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