कल्कि अवतार: राक्षसी कुथोदरी और विकऀज का वध | Kalki Avatar: Slaying the demons Kuthodari and Vikāja

कल्कि अवतार: राक्षसी कुथोदरी और विकऀज का वध

बौद्ध और म्लेच्छों पर विजय

भगवान कल्कि जी ने अपने साहस और पराक्रम से बौद्ध और म्लेच्छों को पराजित किया और सेना सहित कीकट पुरी से धन-रत्न प्राप्त कर लौटे। इसके पश्चात, उन्होंने वक्रतीर्थ में स्नान कर विधिपूर्वक पूजा की और अपने भाइयों व प्रियजनों के साथ वहीं निवास करने लगे।

मुनियों का भय और निवेदन

एक दिन, दुःखी और भयभीत मुनि कल्कि जी के पास आए और सहायता की गुहार लगाई। उन्होंने बताया कि एक भयंकर राक्षसी, कुथोदरी, जो कुम्भकर्ण के पुत्र निकुम्भ की पुत्री है, हिमालय पर्वत पर निवास करती है। उसकी ऊंचाई इतनी अधिक है कि उसका सिर हिमालय पर्वत पर और पैर निषधांचल पर्वत पर होते हैं। वह अपनी सांस से मुनियों और जीवों को त्रस्त कर रही है। उसके पुत्र विकऀज का अत्याचार भी असहनीय है।

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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \दूसरा अध्याय |

कुथोदरी की कथा

मुनियों ने बताया कि कुथोदरी अपने पुत्र को अपने विशाल स्तनों से दूध पिलाती है, जिससे हिमालय पर दूध की नदी बहती है। उसकी भयंकरता और शक्ति से सभी प्राणी भयभीत हैं। मुनियों ने भगवान कल्कि से इस राक्षसी के वध की प्रार्थना की।

कल्कि जी का प्रस्थान

कल्कि जी ने मुनियों की बात सुनकर सेना सहित हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में उन्हें दूध की नदी दिखाई दी, जो राक्षसी के स्तनों से बहती थी। इसके बाद वे सेना सहित कुथोदरी के निवास स्थान पहुंचे। उन्होंने देखा कि वह विशालकाय राक्षसी पर्वत की चोटी पर अपने पुत्र को दूध पिला रही है।

कुथोदरी का वध

कल्कि जी ने अपनी सेना को पीछे छोड़कर, बाणों और तलवारों से उस राक्षसी पर आक्रमण किया। राक्षसी ने क्रोधित होकर अपनी भयानक सांसों से कल्कि जी की सेना को निगल लिया। लेकिन भगवान कल्कि ने अपनी तलवार और अग्निबाण से राक्षसी के पेट को चीर दिया और अपनी सेना के साथ बाहर निकल आए। इसके बाद उन्होंने राक्षसी के शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रहार कर उसका अंत कर दिया।

विकऀज का वध

कुथोदरी के पुत्र विकऀज ने अपनी मां की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सेना पर आक्रमण किया। विकऀज, जो केवल पांच वर्ष का था, अपनी विशालता और क्रूरता से सेना का संहार करने लगा। भगवान कल्कि ने परशुराम जी के दिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर विकऀज का वध किया।

देवताओं और मुनियों की स्तुति

कुथोदरी और विकऀज के वध के बाद, देवताओं ने भगवान कल्कि पर पुष्पवर्षा की और मुनियों ने स्तुति की। इसके बाद कल्कि जी ने हरिद्वार स्थित गंगा तट पर डेरा डाला और वहीं निवास किया।

कल्कि जी की महिमा

भगवान कल्कि के इस पराक्रम ने धर्म की रक्षा की और भक्तों को निर्भय बनाया। उन्होंने यह दिखाया कि अधर्म और अत्याचार का अंत अवश्य होता है। उनके इस साहसिक कार्य की गाथा युगों तक गाई जाएगी।

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