लिंग पुराण : कन्या दान विधि | Linga Purana: Daughter donation method

श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग चालीसवाँ अध्याय

कन्या दान विधि

सनत्कुमार उवाच

कन्यादानं प्रवक्ष्यामि सर्वदानोत्तमोत्तमम् । 
कन्यां लक्षणसम्पन्नां सर्वदोषविवर्जिताम् ॥ १

मातापित्रोस्तु संवादं कृत्वा दत्त्वा धनं महत्। 
आत्मीकृत्याथ संस्नाप्य वस्त्रं दत्त्वा शुभं नवम् ॥ २

सनत्कुमार बोले- अब मैं सभी दानोंमें अतिश्रेष्ठ कन्यादानका वर्णन करूँगा। किसी कन्याके माता- पितासे बात-चीत करके उन्हें अत्यधिक धन देकर समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न तथा सभी दोषोंसे रहित उस कन्याको अपनी पुत्री बना ले। इसके बाद उसे स्नान कराकर सुन्दर तथा नवीन वस्त्र प्रदान करके आभूषणोंसे अलंकृतकर गन्ध, पुष्प आदिसे उसकी पूजा करे ॥ १-२ ॥

भूषणैर्भूषयित्वाथ गन्धमाल्यैरथार्चयेत् । 
निमित्तानि समीक्ष्याथ गोत्रनक्षत्रकादिकान् ॥ ३

उभयोश्चित्तमालोक्य उभौ सम्पूज्य यत्नतः । 
दातव्या श्रोत्रियायैव ब्राह्मणाय तपस्विने ॥ ४

साक्षादधीतवेदाय विधिना ब्रह्मचारिणे। 
दासदासीधनाढ्यं च भूषणानि विशेषतः ॥५

क्षेत्राणि च धनं धान्यं वासांसि च प्रदापयेत् । 
यावन्ति देहे रोमाणि कन्यायाः सन्ततौ पुनः ॥ ६

तावद्वर्षसहस्त्राणि रुद्रलोके महीयते ॥ ७

तत्पश्चात् शकुन, गोत्र, नक्षत्र आदिका सम्यक् विचार करके कन्या तथा वरके अन्तःकरणकी अनुकूलता देखकर उन दोनोंकी प्रयत्नपूर्वक विधिवत् पूजाकर उस श्रोत्रिय, तपस्वी, वैदपारंगत तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मणको विधानपूर्वक वह कन्या अर्पित कर दे। साथ ही दास, दासी, आभूषण, भूमि, धन, धान्य तथा वस्त्र भी प्रदान करे। इस दानको करनेवाला मनुष्य उस कन्याके तथा उसकी संतानोंक शरीरमें जितने रोम होते हैं, उतने हजार वषौतक रुद्रलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ॥ ३-७॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे कन्यादानविधिर्नाम चत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४० ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तर भागमें 'कन्यादानविधि' नामक चालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४० ॥

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