भगवान श्री कल्कि का विवाह: एक दिव्य उत्सव
कल्कि अवतार के बारे में हम अक्सर सुनते आए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अवतार का एक विशेष अध्याय रमा जी के साथ विवाह से जुड़ा हुआ है, जो न केवल शास्त्रों में बल्कि धार्मिक ग्रंथों में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है? यह कथा हमें भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, कल्कि के जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ से अवगत कराती है, जब उन्होंने अपनी शक्ति, भक्ति, और प्रेम से न केवल धरती के लोगों को मोक्ष दिलवाया, बल्कि एक परम यज्ञ के रूप में रमा जी से विवाह कर संसार को एक आदर्श संबंध की ओर मार्गदर्शन किया।
सुशान्ता का विनय गीत और भगवान कल्कि की कृपा
कथा की शुरुआत होती है सुशान्ता के विनय गीत से, जिसमें वह भगवान कल्कि से प्रार्थना करती हैं कि उनके मोह के आवरण को हटा दें और भगवान के चरणों में ध्यान लगाएं। सुशान्ता की यह विनती न केवल उनकी भक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि भगवान का नाम और कृपा हमारे जीवन के सभी पापों और बुराईयों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं।
सुशान्ता भगवान कल्कि से कहती हैं कि वह संसार के कल्याण के लिए एक आदर्श बने हैं, जिनका चेहरा चंद्रमा जैसा सुंदर और उनके वचन अमृत के समान मीठे होते हैं। वह भगवान से यह भी प्रार्थना करती हैं कि यदि उनके पतिदेव ने किसी कारण से भगवान को नाराज किया है तो वह कृपा करके उसे माफ कर दें, क्योंकि भगवान का दर्शन ही जीवन का सर्वोत्तम सुख है।
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \दशवाँ अध्याय |
कल्कि जी का उत्तर और शशिध्वज का संघर्ष
भगवान कल्कि ने सुशान्ता के विनय गीत से संतुष्ट होकर जवाब दिया और पूछा कि वह कौन हैं और किस कारण से उनकी सेवा कर रही हैं। भगवान कल्कि ने यह भी सवाल उठाया कि शत्रु की स्त्रियाँ उनके सामने क्यों आती हैं, और उन्हें शत्रु का रूप क्यों नहीं दिखता। इस पर सुशान्ता ने भगवान कल्कि को बताया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पृथ्वी पर हो या स्वर्ग में, उनका भक्त बनने से बच नहीं सकता। वह भगवान के चरणों में शरणागत हो चुकी हैं, और भगवान कल्कि के सामने किसी शत्रु का अस्तित्व नहीं रह सकता।
शशिध्वज का पश्चाताप और रमा का विवाह
राजा शशिध्वज ने युद्ध के दौरान भगवान कल्कि के साथ दुश्मनी की थी, लेकिन अब वह पश्चाताप कर रहे थे। उन्होंने अपने पापों के लिए भगवान से क्षमा मांगी और स्वीकार किया कि वह भगवान के भक्त हैं। इसके बाद, राजा शशिध्वज ने अपनी कन्या रमा का विवाह भगवान कल्कि से तय कर दिया। इस विवाह का आयोजन बहुत ही धूमधाम से हुआ, जिसमें राजाओं, ब्राह्मणों और समस्त प्रजा ने भगवान कल्कि और रमा के विवाह को देखा। विवाह का समारोह अत्यंत सुंदर और शुभकारी रहा, जिसमें शंख, मृदंग, और अन्य बाजों की ध्वनि के साथ नाच-गाने का आयोजन हुआ।
निष्कर्ष
यह कथा न केवल भगवान कल्कि के प्रेम और भक्तों के प्रति उनकी करुणा को दर्शाती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि परमात्मा के चरणों में सच्ची भक्ति और प्रेम से जुड़ने से जीवन के सभी संकटों का समाधान होता है। भगवान का नाम ही हमारे पापों का नाश करता है और हमें मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करता है। कल्कि अवतार और रमा के विवाह का यह प्रसंग हमें जीवन में प्रेम, भक्ति, और सच्चे धार्मिक आचरण की महत्ता को समझाने के लिए एक प्रेरणा प्रदान करता है।
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