मत्स्य पुराण: प्रथम अध्याय का संक्षिप्त वर्णन | matsy puraan: pratham adhyaay ka sankshipt varnan |

मत्स्य पुराण: प्रथम अध्याय का संक्षिप्त वर्णन

शौनक आदि मुनियों द्वारा सूतजी से पुराण विषयक प्रश्न

नैमिषारण्य में स्थित शौनक आदि मुनियों ने सूतजी से पुराणों की महिमा और उनके विस्तृत विवरण को जानने की जिज्ञासा प्रकट की। उन्होंने सूतजी से भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के कारण, शिवजी के भैरव रूप की उत्पत्ति और उनकी कपालमालाधारी स्थिति के विषय में विस्तार से वर्णन करने का अनुरोध किया।

सूतजी द्वारा मत्स्य पुराण का वर्णन

सूतजी ने बताया कि पूर्वकाल में भगवान गदाधर (विष्णु) ने स्वयं इस मत्स्य पुराण का वर्णन किया था। यह पुराण अत्यंत पुण्यदायक, पवित्र और आयुवर्धक है। सूतजी ने सूर्यवंशी महाराज वैवस्वत मनु की कथा का वर्णन किया, जिन्होंने घोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे प्रलयकाल में समस्त जीवों की रक्षा करने का वरदान प्राप्त किया।

मनु और मत्स्य अवतार

एक दिन जब महाराज मनु पितृ तर्पण कर रहे थे, तब उनकी हथेली पर एक छोटी मछली आ गिरी। मनु ने दया से उसे अपने कमंडलु में रखा, लेकिन वह शीघ्र ही बढ़ने लगी। फिर उन्होंने उसे मिट्टी के घड़े, कुएँ, सरोवर और गंगा नदी में रखा, लेकिन वह लगातार विशाल रूप धारण करती गई। अंत में मनु ने उसे समुद्र में डाल दिया, जहाँ उसने सम्पूर्ण समुद्र को आच्छादित कर लिया।

भगवान विष्णु का रहस्योद्घाटन

मनु भयभीत होकर इस विशाल मत्स्य से प्रश्न करने लगे कि क्या यह कोई असुर है या स्वयं भगवान विष्णु? तब भगवान विष्णु ने अपने मत्स्य रूप का रहस्य प्रकट किया और बताया कि प्रलयकाल में सम्पूर्ण पृथ्वी जल में डूब जाएगी। उस समय देवताओं द्वारा बनाई गई नौका में समस्त जीवों को चढ़ाकर उनकी रक्षा करने का निर्देश उन्होंने मनु को दिया।

भगवान विष्णु ने कहा कि जब नौका प्रलय की भीषण लहरों में डगमगाने लगेगी, तब उसे उनके सींग में बाँध देना। प्रलय समाप्त होने के पश्चात मनु समस्त प्राणियों के प्रजापति होंगे और नए युग के अधिपति बनेंगे।

इस प्रकार श्रीमत्स्य महापुराण के आदिसर्ग में मनु और विष्णु संवाद का प्रथम अध्याय पूर्ण हुआ।

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