नर्मदा-कावेरी-संगमका माहात्म्य | narmada-kaaveree-sangamaka maahaatmy

मत्स्य पुराण एक सौ नवासीवाँ अध्याय

मत्स्य पुराण नर्मदा-कावेरी-संगमका माहात्म्य

सूत उवाच

पृच्छन्ति ते महात्मानो मार्कण्डेयं महामुनिम् । 
युधिष्ठिरपुरोगास्ते ऋषयश्च तपोधनाः ॥ १

आख्याहि भगवंस्तथ्यं कावेरीसंगमो महान्। 
लोकानां च हितार्थाय अस्माकं च विवृद्धये ॥ २

सदा पापरता ये च नरा दुष्कृतकारिणः। 
मुच्यन्ते सर्वपापेभ्यो गच्छन्ति परमं पदम् । 
एतदिच्छाम विज्ञातुं भगवन् वक्तुमर्हसि ॥ ३

सूतजी कहते हैं-ऋऋषियो। युधिष्ठिरको आगे कर वे तपोधन महात्मा-ऋऋषिगण महामुनि मार्कण्डेयसे पूछने लगे' भगवन्! आप हमलोगोंके अभ्युदय और लोकके कल्याणके लिये उस नर्मदा और कावेरीके संगमका माहात्म्य भलीभाँति वर्णन कीजिये। भगवन्! जिसके प्रभावसे सदा पापमें रत एवं दुराचारमें प्रवृत्त रहनेवाले मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो जाते हैं और परमपदको प्राप्त करते हैं, उसे हमलोग जानना चाहते हैं, आप बतानेकी कृपा करें ॥१-३॥

मार्कण्डेय उवाच

शृण्वन्त्ववहिताः सर्वे युधिष्ठिरपुरोगमाः । 
अस्ति बीरो महायक्षः कुबेरः सत्यविक्रमः ॥ ४

इदं तीर्थमनुप्राप्य राजा यक्षाधिपोऽभवत्। 
सिद्धिं प्राप्तो महाराज तन्मे निगदतः शृणु ॥ ५

कावेरी नर्मदा यत्र सङ्गमो लोकविश्रुतः । 
तत्र स्नात्वा शुचिर्भूत्वा कुबेरः सत्यविक्रमः ॥ ६

तपोऽतप्यत यक्षेन्द्रो दिव्यं वर्षशतं महत्। 
तस्य तुष्टो महादेवः प्रादाद् वरमनुत्तमम् ॥ ७

भो भो यक्ष महासत्त्व वरं ब्रूहि यथेप्सितम् ।
ब्रूहि कार्य यथेष्टंट तु यत्ते मनसि वर्तते ॥ ८

मार्कण्डेयजीने कहा- युधिष्ठिरसहित ऋषिगण ! आपलोग सावधान होकर सुनिये। सत्य पराक्रमी एवं शूरवीर महायक्ष कुबेरने इस तीर्थमें आकर सिद्धि प्राप्त की और वे यक्षोंके अधीश्वर बने। महाराज! मैं उनका वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये। किसी समय सत्यपराक्रमी यक्षपति कुबेरने जहाँ कावेरी और नर्मदाका लोकप्रसिद्ध संगम है, वहाँ स्नानकर पवित्र हो सी दिव्य वाँतक घोर तपस्या की। तब संतुष्ट होकर महादेवजीने उन्हें उत्तम वर प्रदान करते हुए कहा- 'महाबलशाली यक्ष ! तुम अपना अभीष्ट वर माँग लो। तुम्हारे मनमें जो यथेष्ट कार्य वर्तमान है, उसे बतलाओ ' ॥ ४-८ ॥

कुबेर उवाच

यदि तुष्टोऽसि मे देव यदि देयो वरो मम।
अद्यप्रभृति सर्वेषां यक्षाणामधिपो भवे ॥ ९

कुबेरस्य वचः श्रुत्वा परितुष्टो महेश्वरः ।
एवमस्तु ततो देवस्तत्रैवान्तरधीयत ।॥ १०

सोऽपि लब्धवरो यक्षः शीघ्रं लब्धफलोदयः ।
पूजितः स तु यक्षैश्च हाभिषिक्तस्तु पार्थिव ।। १९

कावेरीसङ्गमं तत्र सर्वपापप्रणाशनम् ।
ये नरा नाभिजानन्ति वञ्चितास्ते न संशयः ॥ १२

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन तत्र स्नायीत मानवः।
कावेरी च महापुण्या नर्मदा च महानदी ॥ १३

तत्र स्त्रात्वा तु राजेन्द्र हार्चयेद् वृषभध्वजम्।
अश्वमेधफलं प्राप्य रुद्रलोके महीयते ॥ १४

अग्निप्रवेशं यः कुर्याद् यश्च कुर्यादनाशकम्। 
अनिवर्त्या गतिस्तस्य यथा में शंकरोऽब्रवीत् ॥ १५

सेव्यमानो वरस्त्रीभिः क्रीडते दिवि रुद्रवत् ।
षष्टिर्वर्षसहस्त्राणि षष्टिकोट्धस्तथापराः ॥ १६

मोदते रुद्रलोकस्थो यत्र तत्रैव गच्छति।
पुण्यक्षवात् परिभ्रष्टो राजा भवति धार्मिकः ।। १७

भोगवान् दानशीलश्च महाकुलसमुद्भवः ।
तत्र पीत्वा जलं सम्यक् चान्द्रायणफलं लभेत् ॥ १८

स्वर्गं गच्छन्ति ते मर्त्यां ये पिबन्ति शुर्भ जलम् ।
गङ्गायमुनयोर्मध्ये यत्फलं प्राप्नुयान्नरः ।
कावेरीसंगमे स्नात्वा तत्फलं तस्य जायते ॥ १९

एवमादि तु राजेन्द्र कावेरीसंगमे महत्।
पुण्यं महत्फलं तत्र सर्वपापप्रणाशनम् ॥ २० 

कुबेर बोले-देव! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो मैं आजसे सभी यक्षोंका अधीश्वर हो जाऊँ। कुबेरका बचन सुनकर महेश्वर परम प्रसन्न हुए और 'ऐसा ही हो'- यों कहकर वे देवाधिदेव वहीं अन्तर्धान हो गये। राजन्। इस प्रकार उस यक्षने वर प्राप्त कर शीघ्र ही फलको भी प्राप्त किया। वह यक्षींद्वारा पूजित होकर राजाके पदपर अभिषिक्त किया गया। वहीं सभी पापोंको नाश करनेवाला कावेरी-संगम है जो मनुष्य उसे नहीं जानते, वे निःसंदेह ठगे गये। इसलिये मनुष्यको सब तरहसे प्रयत्न करके वहाँ स्नान करना चाहिये। राजेन्द्र। कावेरी और नर्मदा-ये दोनों अतिशय पुण्यशालिनी महानदी हैं। उसमें स्नानकर जो मनुष्य वृषभध्वज शिवकी पूजा करता है, बह अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करके रुद्रलोकमें पूक्ति होता है। 

जो मनुष्य वहाँ अग्निमें प्रवेश करता है या जो उपवासपूर्वक निवास करता है, उसे पुनरावृत्तिरहित गति प्राप्त होती है-ऐसा शंकरजीने मुझे बतलाया था। वह पुरुष स्वर्गलोकमें सुन्दरी स्त्रियोंद्वारा सेवित होकर रुद्रके समान साठ करोड़ साठ हजार वर्षांतक क्रीड़ा करता है एवं रुद्रलोकमें स्थित होकर आनन्दका भोग करता है तथा जहाँ चाहता है वहाँ चला जाता है। पुनः पुण्य क्षीण होनेपर वह भ्रष्ट होकर उत्तम कुलमें उत्पम, भोगवाद, दानशील और धार्मिक राजा होता है। इस संगममें जलका सम्यक् पानकर मनुष्य चान्द्रायण व्रतका फस प्राप्त करता है। जो मानव इसके पवित्र जलको पीते हैं, वे स्वर्गको चले जाते हैं। गङ्गा और यमुनाके संगममें स्नान करनेसे मनुष्यको जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल उसे कावेरीके संगममें स्नान करनेसे मिलता है। राजेन्द्र। इस तरह कावेरी और नर्मदाके संगममें स्नान करनेसे सभी पापोंका नाश करनेवाला अतिशय पुण्य और महान् फल प्राप्त होता है॥ ९-२०॥

इति श्रीमात्त्ये महापुराणे नर्मदामाहात्म्ये एकोननवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १८९ ॥

इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणमें नर्मदाका माहात्म्यवर्णन नामक एक सी नवासौवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ ॥ १८९॥ 

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