प्रणव मंत्र' का माहात्म्य तथा 'शिव' की भक्ति-पूजा का विधान | pranav mantr ka maahaatmy tatha shiv kee bhakti-pooja ka vidhaan
'प्रणव मंत्र' का माहात्म्य तथा 'शिव' की भक्ति-पूजा का विधान
प्रणव मंत्र' का माहात्म्य
ऋषि बोले - महामुनि! आप हमें 'प्रणव मंत्र' का माहात्म्य तथा 'शिव' की भक्ति-पूजा का विधान सुनाइए।
सूत जी ने कहा - महर्षियो! आप लोग तपस्या के धनी हैं तथा आपने मनुष्यों की भलाई के लिए बहुत ही सुंदर प्रश्न किया है। मैं आपको इसका उत्तर सरल भाषा में दे रहा हूं। 'प्र' प्रकृति से उत्पन्न संसार रूपी महा सागर का नाम है। प्रणव इससे पार करने के लिए नौका स्वरूप है। इसलिए ओंकार को प्रणव की संज्ञा दी गई है।
प्रणव की संज्ञा
'प्र' - प्रपंच, 'न' – नहीं है, 'वः' - तुम्हारे लिए। इसलिए ‘ओम्' को प्रणव नाम से जाना जाता है अर्थात प्रणव वह शक्ति है, जिसमें जीव के लिए किसी प्रकार का भी प्रपंच अथवा धोखा नहीं है। यह प्रणव मंत्र सभी भक्तों को मोक्ष देता है। मंत्र का जाप तथा इसकी पूजा करने वाले उपासकों को यह नूतन ज्ञान देता है।
माया रहित महेश्वर को भी नव अर्थात नूतन कहते हैं। वे परमात्मा के शुद्ध स्वरूप हैं। प्रणव साधक को नया अर्थात शिवस्वरूप देता है। इसलिए विद्वान इसे प्रणव नाम से जानते हैं, क्योंकि यह नव दिव्य परमात्म ज्ञान प्रकट करता है।
प्रणव के दो भेद - ‘स्थूल' और 'सूक्ष्म'
'ॐ' सूक्ष्म प्रणव है।
'नमः शिवाय' यह पंचाक्षर मंत्र स्थूल प्रणव है।
जीवन मुक्त पुरुष के लिए सूक्ष्म प्रणव के जाप का विधान है क्योंकि यह सभी साधनों का सार है। इस मंत्र का छत्तीस करोड़ बार जाप करने से मनुष्य योगी हो जाता है।
यह अकार, उकार, मकार, बिंदु और नाद सहित अर्थात 'अ', 'ऊ', 'म' तीन दीर्घ अक्षरों और मात्राओं सहित 'प्रणव' होता है, जो योगियों के हृदय में निवास करता है। यही सब पापों का नाश करने वाला है।
'अ' शिव है
'उ' शक्ति
'म' इनकी एकता है।
जपयोग का वर्णन
ऋषियों! अब मैं तुमसे जपयोग का वर्णन करता हूं। सर्वप्रथम, मनुष्य को अपने मन को शुद्ध कर पंचाक्षर मंत्र 'नमः शिवाय' का जाप करना चाहिए। यह मंत्र संपूर्ण सिद्धियां प्रदान करता है।
जपविधि:
गुरु के मुख से पंचाक्षर मंत्र का उपदेश पाकर कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तक साधक रोज एक बार परिमित भोजन करे।
मौन रहे, इंद्रियों को वश में रखे, माता-पिता की सेवा करे।
नियम से एक सहस्र पंचाक्षर मंत्र का जाप करे तभी उसका जपयोग शुद्ध होता है।
भगवान शिव का निरंतर चिंतन करते हुए पंचाक्षर मंत्र का पांच लाख जाप करे।
जपकाल में शिवजी के कल्याणमय स्वरूप का ध्यान करे।
कर्म माया और ज्ञान माया का तात्पर्य
'मां' का अर्थ है लक्ष्मी जिससे कर्मभोग प्राप्त होता है। इसलिए यह माया अथवा कर्म माया कहलाती है। इसी से ज्ञान-भोग की प्राप्ति होती है। इसलिए उसे माया या ज्ञानमाया भी कहा गया है।
शिवलोक के वैभव का वर्णन
जो मनुष्य सत्य अहिंसा से भगवान शिव की पूजा में तत्पर रहते हैं, कालचक्र को पार कर जाते हैं।
कालचक्रेश्वर की सीमा तक महेश्वर लोक है।
उससे ऊपर वृषभ के आकार में धर्म की स्थिति है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आयु को दिन कहते हैं।
सबसे ऊपर पांच आवरणों से युक्त ज्ञानमय कैलाश है, जहां आदि शक्ति से संयुक्त आदिलिंग स्थित है।
निष्कर्ष
नित्य कर्मों द्वारा देवताओं की पूजा करने से शिव-तत्व का साक्षात्कार होता है। जिन पर शिव की कृपादृष्टि पड़ चुकी है, वे सब मुक्त हो जाते हैं। अपनी आत्मा में आनंद का अनुभव करना ही मुक्ति का साधन है।
प्रणव मंत्र के लाभ
इस मंत्र के जाप से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
इसे निरंतर जपने से आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
यह आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।
यह सभी पापों का नाश करता है।
साधक को शिवस्वरूप बनाने में सहायक है।
इससे मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
इस मंत्र के प्रभाव से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं।
निष्कर्ष
प्रणव मंत्र 'ॐ' तथा पंचाक्षर मंत्र 'नमः शिवाय' दोनों ही अत्यंत शक्तिशाली मंत्र हैं, जिनका निरंतर जाप करने से साधक शिव-स्वरूप को प्राप्त करता है और समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। अतः हर व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना चाहिए और अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।
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