प्रवर कीर्तन में धर्म के वंश का वर्णन | pravar keertan mein dharm ke vansh ka varnan

मत्स्य पुराण दो सौ तीनवाँ अध्याय

प्रवर कीर्तन में धर्म के वंश का वर्णन

मत्स्य उवाच

अस्मिन् वैवस्वते प्राप्ते शृणु धर्मस्य पार्थिव।
दाक्षायणीभ्यः सकलं वंशं दैवतमुत्तमम् ॥ १

मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। इस वैवस्वत मन्वन्तरके प्राप्त होनेपर धर्मने दक्षकी कन्याओंके गर्भसे जिस उत्तम देव वंश का विस्तार किया, उसका वर्णन सुनिये। १

पर्वतादिमहादुर्गशरीराणि नराधिप।
अरुन्धत्याः प्रसूतानि धर्माद् वैवस्वतेऽन्तरे ॥ २

अष्टौ च वसवः पुत्राः सोमपाश्च विभोस्तथा। 
धरो ध्रुवश्च सोमश्च आपश्चैवानलानिलौ ॥ ३

प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः । 
धरस्य पुत्रो द्रविणः कालः पुत्रो ध्रुवस्य तु ॥ ४

कालस्यावयवानां तु शरीराणि नराधिप। 
मूर्तिमन्ति च कालाद्धि सम्प्रसूतान्यशेषतः ॥ ५

सोमस्य भगवान् वर्चाः श्रीमांश्चापस्य कीर्त्यते । 
अनेकजन्मजननः कुमारस्त्वनलस्य तु ॥ ६

पुरोजवाश्चानिलस्य प्रत्यूषस्य तु देवलः । 
विश्वकर्मा प्रभासस्य त्रिदशानां स वर्धकिः ॥ ७

नरेश्वर! इस वैवस्वत मन्वन्तरमें धर्मके द्वारा अरुन्धतीके गर्भसे पर्वत आदि एवं महादुर्गक समान विशालकाय संतान उत्पन्न हुए तथा उन्हीं सर्वव्यापी धर्मसे आठ सोमपायी पुत्र उत्पन्न हुए, जो वसु कहलाते हैं। उनके नाम हैं-धर, ध्रुव, सोम, आप, अनल, अनिल, प्रत्यूष और प्रभास ये आठ वसु कहे गये हैं। धरका पुत्र द्रविण और ध्रुवका पुत्र काल हुआ। नरेश ! कालके अवयवोंके जितने मूर्तिमान् शरीर हैं, वे सभी कालसे ही उत्पन हुए हैं। सोमके प्रभावशाली पुत्रको वर्चा और आपके पुत्रको श्रीमान् कहा जाता है। अनेक जन्म धारण करनेवाला कुमार अनलका पुत्र हुआ। अनिलका पुत्र पुरोजव और प्रत्यूषका पुत्र देवल हुआ। प्रभासका पुत्र विश्वकर्मा हुआ जो देवताओंका बढ़ई है॥ २-७॥

समीहितकराः प्रोक्ता नागवीध्यादयो नव।
लम्बापुत्रः स्मृतो घोषो भानोः पुत्राश्च भानवः ॥ ८

ग्रहक्षणां च सर्वेषामन्येषां चामितौजसाम्। 
मरुत्वत्यां मरुत्वन्तः सर्वे पुत्राः प्रकीर्तिताः ॥ ९

संकल्पायाश्च संकल्पस्तथा पुत्रः प्रकीर्तितः । 
मुहूर्ताश्च मुहूर्तायाः साध्याः साध्यासुताः स्मृताः ॥ १०

मनो मनुश्च प्राणश्च नरोषा नोच वीर्यवान्। 
चित्तहार्योऽयनश्चैव हंसो नारायणस्तथा ॥ ११

विभुश्चापि प्रभुश्चैव साध्या द्वादश कीर्तिताः । 
विश्वायाश्च तथा पुत्रा विश्वेदेवाः प्रकीर्तिताः ॥ १२

क्रतुर्दक्षो वसुः सत्यः कालकामो मुनिस्तथा। 
कुरजो मनुजो वीजो रोचमानश्च ते दश ॥ १३

एतावदुक्तस्तव धर्मवंशः संक्षेपतः पार्थिववंशमुख्य ।
व्यासेन वक्तुं न हि शक्यमस्ति राजन् विना वर्षशतैरनेकैः ॥ १४

नागवीथी आदि नव सन्तति अभीष्टको पूर्ण करनेवाली है। लम्बाका पुत्र घोष और भानुके पुत्र भानव (बारह आदित्य) कहे गये हैं, जो ग्रहों, नक्षत्रों एवं अन्य सभी अमित ओजस्वियोंमें बढ़-चढ़‌कर हैं। सभी मरुद्रण मरुत्वतीके पुत्र हैं तथा संकल्पाका पुत्र संकल्प कहा जाता है। मुहूर्ताके पुत्र मुहूर्त और साध्याके पुत्र साध्यगण कहे गये हैं। मन, मनु, प्राण, नरोषा, नौच, वीर्यवान्, चित्तहार्य, अयन, हंस, नारायण, विभु और प्रभु ये बारह साध्य कहे गये हैं। विश्वाके पुत्र विश्वेदेव कहे जाते हैं। क्रतु, दक्ष, वसु, सत्य, कालकाम, मुनि, कुरज, मनुज, बीज और रोचमान- ये दस विश्वेदेव हैं। राजवंशश्रेष्ठ! मैंने आपसे यहाँतक धर्मके वंशका संक्षेपसे वर्णन कर दिया। राजन् ! अनेक सैकड़ों वर्षोंके बिना इसका विस्तारसे वर्णन करना सम्भव नहीं है॥८-१४॥

इति श्रीमात्स्ये महापुराणे धर्मवंशवर्णने धर्मप्रवरानुकीर्तनं नाम त्र्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २०३॥

इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणके धर्मवंशवर्णनमें धर्म-प्रवरानुकीर्तन नामक दो सौ तीनवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ॥ २०३॥

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