शिवलिंग की विशेषता और शिवलिंग स्थापना और पूजन विधि | shivaling kee visheshata aur shivaling sthaapana aur poojan vidhi
शिव पुराण में शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का वर्णन
ऋषियों का प्रश्न
ऋषियों ने पूछा, "सूत जी! शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए तथा उसकी पूजा किस प्रकार, किस काल में एवं किन द्रव्यों द्वारा करनी चाहिए?"
शिवलिंग की विशेषता
सूत जी ने उत्तर दिया, "महर्षियो! मैं इस विषय का वर्णन करता हूं, ध्यानपूर्वक सुनें। अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ, नदी के तट, अथवा ऐसी जगह शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए जहां नियमित रूप से पूजन किया जा सके। पार्थिव, जलमय, अथवा तेजस द्रव्य से पूजन करने पर उपासक को पूर्ण फल प्राप्त होता है। शुभ लक्षणों में किया गया पूजन शीघ्र फलदायक होता है।
चल प्रतिष्ठा के लिए छोटा शिवलिंग श्रेष्ठ माना जाता है, जबकि अचल प्रतिष्ठा हेतु बड़ा शिवलिंग उत्तम होता है। शिवलिंग को पीठ सहित स्थापित करना चाहिए। शिवलिंग की पीठ गोल, चौकोर, त्रिकोण अथवा खाट के पाए की भांति होना चाहिए, जिससे वह महान फल प्रदान करता है। पहले मिट्टी अथवा लोहे से शिवलिंग का निर्माण करें। जिस द्रव्य से लिंग निर्मित हो, उसी से उसका पीठ भी बनाना चाहिए। यही अचल प्रतिष्ठा वाले शिवलिंग की विशेषता है।"
शिवलिंग स्थापना और पूजन विधि
चल प्रतिष्ठा
चल प्रतिष्ठा में लिंग और प्रतिष्ठा एक ही तत्व से बनाई जानी चाहिए। लिंग की लंबाई स्थापना करने वाले व्यक्ति की बारह अंगुल के बराबर होनी चाहिए। इससे कम होने पर फल भी कम प्राप्त होता है, लेकिन यह बारह अंगुल से अधिक हो सकती है। चल लिंग की न्यूनतम लंबाई एक अंगुल होनी चाहिए।
देवालय निर्माण और शिवलिंग प्रतिष्ठा
यजमान को पहले शिल्प शास्त्रानुसार देवालय का निर्माण कराकर सभी देवगणों की मूर्तियाँ स्थापित करनी चाहिए। देवालय का गर्भगृह सुंदर, सुदृढ़ एवं स्वच्छ होना चाहिए। इसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में दो मुख्य द्वार होने चाहिए। शिवलिंग स्थापना स्थान पर एक गड्ढा बनाकर उसमें नीलम, लाल वैदूर्य, मूंगा, मोती, गोमेद, हीरा आदि नौ रत्नों को वैदिक मंत्रों के साथ स्थापित करें।
पांच वैदिक मंत्रों द्वारा पूजन कर अग्नि में आहुति दें। परिवार सहित भगवान शिव की पूजा कर आचार्य को दक्षिणा, भाई-बंधुओं को वस्त्र-धन, और याचकों को सुवर्ण, भूमि तथा गाय प्रदान करें। तत्पश्चात महामंत्र "ॐ" का उच्चारण कर पीठ सहित शिवलिंग की स्थापना करें। साथ ही, परम सुंदर मूर्ति की स्थापना कर, भूमि- संस्कार की विधि के अनुसार पूजन करें। मूर्ति की प्रतिष्ठा पंचाक्षर मंत्र से करें। इस विधि से किया गया पूजन शिवपद प्रदान करने वाला होता है।
शिवलिंग की पूजन विधि
शिवलिंग की पूजा के लिए सोलह उपचार होते हैं:
आवाहन
आसन
अर्घ्य
पाद्य
आचमन
स्नान
वस्त्र
यज्ञोपवीत
गंध
पुष्प
धूप
दीप
नैवेद्य
तांबूल
नीराजन
नमस्कार एवं विसर्जन
इन विधियों से पूजन करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। शिवलिंग की स्थापना के उपरांत, चाहे वह मनुष्य, ऋषि, देवता द्वारा स्थापित हो या स्वयं प्रकट हुआ हो, उपयुक्त विधि से पूजन करने पर ही फल प्राप्त होता है। परिक्रमा एवं नमस्कार करने से भी पुण्य लाभ होता है।
शिवलिंग पूजन से प्राप्त होने वाले फल
शिवलिंग दर्शन, पूजन, और मंत्र जाप से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है।
प्रतिदिन शिवलिंग का पूजन करने से शिवपद की प्राप्ति होती है।
प्रतिदिन 10,000 प्रणव मंत्रों का जाप, अथवा संध्याओं में 1,000 प्रणव मंत्रों का जाप करने से मोक्ष प्राप्ति होती है।
पंचाक्षर मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का पांच करोड़ जाप करने से मनुष्य भगवान शिव के समान हो जाता है।
एक, दो, तीन, अथवा चार करोड़ जाप करने से क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र एवं महेश्वर पद की प्राप्ति होती है।
प्रतिदिन एक सहस्र गायत्री मंत्र का जाप करने से शिवपद प्राप्त होता है।
पुण्य प्राप्ति के विशेष साधन
शिव मंदिर में सफाई एवं सेवा कार्य करने से पुण्य प्राप्त होता है।
काशी में निवास करने से योग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव क्षेत्र में स्नान, दान एवं जप करने से शिवपद की प्राप्ति होती है।
शिव क्षेत्र में मृत संबंधी का श्राद्ध एवं पिंडदान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
निष्काम भाव से शिव पूजन करने से उत्तम फल प्राप्त होता है।
पूजन के विशेष काल
प्रातःकाल - दैनिक कर्म
मध्याह्न - सकाम कर्म
सायंकाल - शांति कर्म
निशीथकाल - सर्वोत्तम पूजा काल (अभीष्ट फल प्रदान करता है)
निष्कर्ष
शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का विधिपूर्वक पालन करने से मनुष्य को अपने कर्मों का पूरा फल प्राप्त होता है। कलियुग में केवल कर्म द्वारा ही फल की सिद्धि संभव है। विधिपूर्वक और समयानुसार भगवान शिव की पूजा करने से भक्त को समस्त अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है और अंततः वह शिवपद को प्राप्त करता है।
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