शिवरात्रि व्रत उद्यापन की विधि
परिचय
शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है, और इसके उद्यापन से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। सूत जी ने इस व्रत की उद्यापन विधि का विस्तार से वर्णन किया है। आइए जानते हैं शिवरात्रि व्रत उद्यापन की संपूर्ण प्रक्रिया।
शिवरात्रि व्रत का नियम
इस व्रत का पालन चौदह वर्षों तक करना चाहिए।
त्रयोदशी के दिन केवल एक बार भोजन करें।
शिव चतुर्दशी के दिन निराहार रहकर व्रत का पालन करें।
शिवरात्रि व्रत उद्यापन की विधि
१. मण्डप की रचना
रात्रि के समय शिवालय में गौरीतिलक मण्डप का निर्माण करें।
मण्डप के बीच में शिवलिंग एवं भद्र मण्डल स्थापित करें।
उसी स्थान पर प्रजापत्य नामक कलशों की स्थापना करें।
२. मूर्तियों की स्थापना
कलश के वाम भाग में माता पार्वती और दक्षिण भाग में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें।
विधिपूर्वक शिव-पार्वती जी की पूजा करें।
३. पूजा एवं जागरण
व्रत करने वाले व्यक्ति को ऋत्विजों एवं आचार्य के साथ मिलकर भगवान शिव का आवाहन करना चाहिए।
पूरी रात्रि विधिपूर्वक शिव पूजन करें।
शिव कीर्तन, भजन एवं नृत्य करते हुए रात व्यतीत करें।
४. हवन एवं ब्राह्मण भोजन
प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर विधिपूर्वक हवन करें।
हवन के पश्चात प्रजापत्य पूजन करें।
ब्राह्मणों को प्रेमपूर्वक भोजन कराएं।
५. दान एवं आचार्य को दक्षिणा
भोजन के पश्चात ऋत्विजों को वस्त्र एवं आभूषण दान करें।
आचार्य को बछड़े सहित गौ का दान करें।
मण्डप की सामग्री भी आचार्य को समर्पित करें।
६. भगवान शिव से प्रार्थना
दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव से प्रार्थना करें – "हे देवाधिदेव! महादेव! देवेश्वर! शरणागतवत्सल! इस शिवरात्रि महाव्रत से प्रसन्न होकर मुझ पर कृपा करें।"
"हे प्रभु! यदि इस व्रत में कोई त्रुटि रह गई हो तो कृपया उसे क्षमा करें और अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें।"
शिवजी से प्रार्थना करने के पश्चात उन्हें साष्टांग प्रणाम करें।
व्रत का फल
जो व्यक्ति इस विधि के अनुसार शिवरात्रि व्रत का उद्यापन करता है, उसे अवश्य ही मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की कृपा से वह समस्त दुखों से मुक्त होकर जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
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