शक्ति आराधना का पर्व: चैत्र नवरात्रि | shakti aaraadhana ka parv: chaitr navaraatri

शक्ति आराधना का पर्व: चैत्र नवरात्रि

सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक, सभी कालों में शक्ति की आराधना का क्रम किसी न किसी रूप में समाज में स्थापित रहा है। देवाधिदेवों द्वारा पूजित माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी दुर्गा जी का स्थान सभी शक्तियों में सर्वोपरि माना जाता है। वास्तविक सत्य भी यही है कि इस निखिल ब्रह्माण्ड के अनन्त लोकों के साथ ही हमारी आत्मा की जननी भी माता भगवती आदिशक्ति जगदम्बा ही हैं, जिन्हें हम 'माँ' शब्द से सम्बोधित करते हैं।

‘माँ’ के अनेकों रूपों की हर काल विशेष में पूजा होती रही है। माता भगवती की आराधना, सभी आराधनाओं में सबसे सरल, सुगम व सहज है। वैसे इसके लिए हर पल, क्षण शुभ होते हैं। फिर भी कुछ क्षण, तिथियाँ व पर्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन्हीं महत्त्वपूर्ण पर्वों में शक्ति आराधना के लिए वर्ष में दो नवरात्रियों के पर्व आते हैं – चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। ये पर्व माता भगवती की भक्ति, आराधना, साधना, समर्पण के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन पर्वों में की गई आराधना का फल शत-प्रतिशत प्राप्त होता है।

चैत्र नवरात्रि का महत्व

चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ नव वर्ष की प्रथम तिथि से होता है। इसी दिन से विक्रम सम्वत् का आरम्भ होता है। प्रकृति भी इस समय नवीनता को प्राप्त होती है। पेड़-पौधों में नई कोंपलें फूटने लगती हैं, आम के पेड़ों में बौर आते हैं, और पलाश के वृक्ष खिल उठते हैं। इस समय का सुहावना मौसम तन और मन को शान्ति व आनन्द प्रदान करता है।

नवरात्रि पर्व में साधना-आराधना के साथ व्रत-उपवास रखने का विशेष महत्त्व है। उपवास का तात्पर्य है, ‘माँ’ के निकट रहना। व्रत में उन्हीं फलों को ग्रहण करने की परंपरा है, जो सात्त्विक हों और तमोगुण की वृद्धि न करें।

व्रत और उपवास के सही नियम

वर्तमान समय में मनुष्य की शारीरिक क्षमता इतनी नहीं रह गयी है कि वह पूर्ण निराहार व्रत कर सके। इससे मन की एकाग्रता भी भंग होती है और स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँच सकता है। इसलिए दिन में हल्का आहार, फलाहार, दूध एवं जल आदि का सेवन करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद आरती पूर्ण करने के उपरांत शुद्ध, सात्त्विक एवं सुपाच्य भोजन ग्रहण करना उचित माना गया है। यह संतुलन बनाकर रखने से व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

आत्मचेतना और भक्ति

स्थूल शरीर के अंदर सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर, और आत्मचेतना स्थित होती है। साधक को नवरात्रि में सर्वप्रथम अपने भावपक्ष को प्रबल करना चाहिए और ‘माँ’ के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए। यह समझना आवश्यक है कि माता भगवती हर भक्त को उसके शुभ संकल्पों के अनुसार फल प्रदान करती हैं। इसलिए हमें नवरात्रि के इन पावन दिनों में भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति प्राप्ति की कामना करनी चाहिए।

पूजन विधि

साधक को नवरात्रि में ब्राह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि कर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजन कक्ष में माता की छवि को शुद्ध जल से पोंछकर, कुंकुम का तिलक लगाकर, पुष्प अर्पित करें। कलश स्थापना भी की जा सकती है। इस दौरान माता के मंत्रों का जाप, दुर्गा सप्तशती का पाठ, और माँ की स्तुति करना विशेष फलदायी होता है।

निष्कर्ष

चैत्र नवरात्रि आत्मशुद्धि, साधना और शक्ति उपासना का विशेष पर्व है। यह न केवल आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है, बल्कि साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। जो भी भक्त सच्चे मन से माता भगवती की आराधना करता है, उसे निश्चित रूप से माँ की कृपा प्राप्त होती है।

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