माँ चंद्रघंटा की कथा: कैसे बनीं माँ दुर्गा का यह महाशक्तिशाली रूप | Story of Maa Chandraghanta: kaise baneen maan durga ka yah mahaashaktishaalee roop
माँ चंद्रघंटा की कथा: कैसे बनीं माँ दुर्गा का यह महाशक्तिशाली रूप?
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जो माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक हैं। उनकी कथा के अनुसार, जब असुरों का आतंक बढ़ा, तब देवताओं ने त्रिदेव से मदद मांगी। त्रिदेव के क्रोध से उत्पन्न ऊर्जा से देवी चंद्रघंटा का अवतरण हुआ।
माँ चंद्रघंटा के स्वरूप की विशेषताएँ:
चंद्रघंटा नाम: उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
स्वर्ण वर्ण: उनका शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है।
दस भुजाएँ: उनके दस हाथ हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं।
सिंह सवारी: उनकी सवारी सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
माँ चंद्रघंटा की कथा:
एक समय की बात है, पृथ्वी पर महिषासुर नामक दानव का आतंक था। ‘महि’ का अर्थ ‘भैंसा’ होता है, और ‘महिषासुर’ का अर्थ भैंसे के रूप वाला असुर। वह बहुत शक्तिशाली और बलवान था।
असुरगुरु शुक्राचार्य के परामर्श से महिषासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे मनोवांछित वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने अजय और अमर होने का वर मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने समझाया कि पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित होती है। तब महिषासुर ने यह वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से न हो, क्योंकि वह स्त्री को कमजोर समझता था।
वरदान प्राप्त होते ही महिषासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया। उसने पाताल और पृथ्वी लोक पर अपना अधिकार कर लिया और फिर स्वर्गलोक पर आक्रमण कर सभी देवताओं को पराजित कर दिया। वरदान के कारण त्रिदेव भी उसे मारने में असमर्थ थे।
त्राहि-त्राहि मचने पर सभी देवता त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के पास पहुंचे और समाधान की प्रार्थना की। देवताओं की व्यथा सुनकर त्रिदेव अत्यंत क्रोधित हुए, और उनके मुख से एक तीव्र ऊर्जा प्रकट हुई। उस ऊर्जा से एक देवी का अवतरण हुआ, जिनकी दस भुजाएँ थीं और मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित था।
देवताओं ने देवी को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए:
महादेव ने अपना त्रिशूल दिया।
भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया।
इंद्रदेव ने अपना वज्र प्रदान किया।
सूर्य देव ने उन्हें अपना तेज प्रदान किया।
देवी चंद्रघंटा ने विकराल रूप धारण कर महिषासुर के साथ युद्ध किया। युद्ध बहुत भयंकर था, जिसमें असुरों की सेना का संहार हो गया। अंततः माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर दिया।
माँ चंद्रघंटा का महत्व:
माँ चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को साहस, शक्ति और निर्भयता प्राप्त होती है। उनकी कृपा से साधक की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और जीवन में शांति एवं समृद्धि का वास होता है।
नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिससे मन और आत्मा की शुद्धि होती है और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
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