रामचरितमानस में दोहे राम के महिमा की सत्य, शुद्धता, पुराना बेद {227-235}

रामचरितमानस में दोहे राम के महिमा की सत्य, शुद्धता, पुराना बेद Couplets in Ramcharitmanas about the truth, purity, old Veda of the glory of Ram

असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥227

यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"असुर, नाग, खग, नर, मुनि, और देवताएं, सब आकर श्रीरामचंद्रजी की सेवा करते हैं। उन्होंने सुजान जनों के लिए जन्मोत्सव मनाया और उन्होंने राम की कीर्ति और गुणगान किया।"
इस दोहे में कहा गया है कि असुर, नाग, खग, नर, मुनि, और देवताएं सब मिलकर श्रीरामचंद्रजी की सेवा करते हैं। उन्होंने समझदार लोगों के लिए जन्मोत्सव मनाया और राम की कीर्ति और गुणगान किया।

दो0-मज्जहि सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥228

यह दोहा गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"साधु-संगति में समाहित होकर, सरयू नदी के पावन जल में रोमांचित होकर, श्रीरामचंद्रजी का जप और ध्यान करते हुए, मन में सुंदर स्याम रूप को धारण किया जाता है।"
इस दोहे में कहा गया है कि साधु-संगति में रहकर, पावन सरयू नदी के जल में रोमांचित होकर, भगवान श्रीरामचंद्रजी का जप और ध्यान करते समय, मन में सुंदर स्याम रूप को स्मरण किया जाता है।

दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमलमति॥229

यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"भगवान के दर्शन, परस्पर सेवा और संस्कार से मनुष्य पापों को भी भूल जाता है। नदी की पवित्रता और असीम महिमा को बताने में मेरी बुद्धि भी समर्थ नहीं है।"
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान के दर्शन, परस्पर सेवा और संस्कार से मनुष्य पापों को भूल जाता है। नदी की पवित्रता और उसकी असीम महिमा को व्यक्त करने में मेरी बुद्धि समर्थ नहीं है।

राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजे तनु नहि संसारा॥230

यह दोहा गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"श्रीरामचंद्रजी का निवासस्थान, अयोध्या, बहुत सुहावना है और सम्पूर्ण लोक उसे अत्यंत पवित्र मानते हैं। चारों दिशाओं में जब जीवित प्राणी विचरण करते हैं, तो संसारी शरीर को छोड़कर अवधपुरी को नहीं छोड़ सकते।"
इस दोहे में कहा गया है कि श्रीरामचंद्रजी का निवासस्थान अयोध्या बहुत सुंदर है और सम्पूर्ण लोक उसे बहुत ही पवित्र मानते हैं। जब लोग इस संसारी शरीर को छोड़कर चारों दिशाओं में विचरण करते हैं, तो वे अवधपुरी को नहीं छोड़ सकते।
सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥231

यह दोहा गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"जैसे सभी प्रकार की श्रेष्ठता वाली अयोध्या को मनोहर माना जाता है, उसी प्रकार श्रीरामचरितमानस कथा सब सिद्धियों को प्रदान करने वाली और सब मंगलों की खानी है। इस शुद्ध कथा को सुनते समय काम, मद, और अहंकार नष्ट हो जाते हैं।"
इस दोहे में कहा गया है कि जैसे सभी प्रकार की श्रेष्ठता वाली अयोध्या को मनोहर माना जाता है, उसी प्रकार श्रीरामचरितमानस कथा सब सिद्धियों को प्रदान करने वाली और सब मंगलों की खानी है। इस पवित्र कथा को सुनते समय काम, मद, और अहंकार का नाश हो जाता है।

रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई॥232

यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामचरितमानस का यह नाम सुनते ही श्रवण (सुनने) में सुख मिलता है और मन शांति पाता है। मन अग्नि की भाँति विषयों में जलता है, यद्यपि इसमें सुख माना जाता हो।"
इस दोहे में कहा गया है कि रामचरितमानस का यह नाम सुनते ही श्रवण (सुनने) में सुख मिलता है और मन को शांति मिलती है। मन विषयों की ओर जाकर जलता है, भले ही वहाँ सुख का अनुभव किया जाए।

रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥233

यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामचरितमानस मुनियों की भावना है, जिससे संभु (शिवजी) भी संतुष्ट होते हैं। यह कविता तीन प्रकार के दोषों, दुःखों, और दारिद्र्य को नष्ट करती है और कलियुग के दोषों को धो डालती है।"
इस दोहे में कहा गया है कि रामचरितमानस मुनियों की भावना है जिससे संभु (शिवजी) भी संतुष्ट होते हैं। यह कविता तीन प्रकार के दोषों, दुःखों और दारिद्र्य को नष्ट करती है और कलियुग के दोषों को भी मिटा देती है।

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥234

यह दोहा कहता है कि जो कथा सुखद और सुहावी है, उसे सादरता से सुनिए, सुजनों, और मन में धारण कीजिए। इससे आपको आनंद मिलेगा और मन को शांति मिलेगी।

दो0-जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥235

यह दोहा गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"जो व्यक्ति जिस तरीके से जगत् में प्रसार करता है, उस हेतु के अनुसार उसका भय होता है। अब मैं वही सम्बन्धी कथा सब सुमिरन करता हूँ, जिससे उमा के पति महादेव को स्मरण होता है।"
यहां कहा गया है कि जो व्यक्ति जगत् में अपने कार्य को कैसे प्रसारित करता है, उसका उसी प्रसार के हेतु से भय होता है। अब मैं उसी सम्बन्धी कथा का स्मरण करता हूँ, जिससे भगवान शिव को स्मरण होता है।

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