भगवान विष्णु के 7 नामऔर महान कथा का वर्णन

 भगवान विष्णु के 7 नामऔर महान कथा का वर्णन 

  1. अनन्त (Anant)
  2. जगदीश (Jagdish)
  3. पुंडरीकाक्ष (Pundarikaksh)
  4. परमात्मा (Paramatma)
  5. त्रिविक्रम (Trivikram)
  6. कामलनाथ (Kamalnath)
  7. अव्यक्त (Avyakt)

अनन्त (Anant) कथा 

भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण कथा है। यह कथा विष्णु पुराण में प्रमुखता से प्रस्तुत है और इसमें अनन्त नामक एक नाग (सर्प) की कथा वर्णित है। यह कथा सुनने से श्रद्धा और धर्म की महत्ता का बोध होता है।
कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब एक साधू मन्दिर में अतीति साधना कर रहा था। उसे अपनी साधना पूर्ण करने के लिए एक श्राप संबंधी व्रत रखना पड़ता है, जिसमें उसे अनन्त नामक एक सर्प को प्रतिदिन निमंत्रण देना होता है। साधू ने यह व्रत अपनी पत्नी और सभी ग्रामवासियों के सामर्थ्य से पूरा किया।
एक बार, साधू के द्वारा निमंत्रण दिये जाने के बाद, अनन्त नाग रूप में आकर उसे देवराज इंद्र और देवी लक्ष्मी की कथाएं सुनाता है। इसके साथ ही वह धर्म की महत्ता, अनन्यता, सेवा और सर्वदा चितानुदेश की महत्ता को भी समझाता है।
कथा के अंत में, साधू और उसकी पत्नी धर्म के महत्व को समझते हैं और धर्म और सेवा के मार्ग
 पर निरंतर चलने का संकल्प लेते हैं। उन्होंने अनन्त नामक सर्प की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनके ग्रामवासियों के लिए सुख, धन, समृद्धि और समाधान की कामना करते हैं।
अनन्त (Anant) कथा भारतीय संस्कृति में धर्मिकता, निरंतर सेवा के महत्व और विश्वास को प्रदर्शित करती है। यह एक शिक्षाप्रद कथा है जो मनुष्यों को सद्ध्य धर्म के पालन का मार्ग दिखाती है।
जगदीश (Jagdish) कथा आरती एक प्रसिद्ध हिंदी आरती है जो भगवान जगदीश (भगवान विष्णु) को समर्पित है। यह आरती जगदीश की महिमा, प्रेम और आराधना को व्यक्त करती है। यहां जगदीश (विष्णु) के नामों, गुणों और आराधना का वर्णन किया जाता है। यह आरती भक्तों द्वारा प्रतिदिन समर्पित की जाती है और उन्हें जगदीश की कृपा और आशीर्वाद का आनंद देती है।

यहां जगदीश (विष्णु) कथा आरती

यहां जगदीश (विष्णु) कथा आरती के एक उदाहरण दिया गया है:

आरती जगदीश की, जो कलियुग में अवतारी।
हर जनम अविचल रहती, भवबंधन को तारी॥
आरती जगदीश की, जिसका परम स्वरूप निराला।
आप ही शक्ति, आप ही ब्रह्मा, आप ही विष्णुविश्वनाला॥
आरती जगदीश की, जिसके हृदय में वास है।
सब दुःखों का हारी, भवबंधन से मुक्ति का आस है॥
आरती जगदीश की, जग में सुखी राजा जाने।
उनकी आराधना से जीवन, बन जाए सुखसागर माने॥
आरती जगदीश की, जिसका नाम सदा गाते हैं।
मन, वचन, कर्म से उसे यथार्थ में पूजते हैं॥
आरती जगदीश की, सभी दुःख निवारित करती।
पाप भक्ति से मिटाती, शरण में आने वारित करती॥
आरती जगदीश की, जगती रहती अपार।
भक्ति और श्रद्धा से योग्य भक्त बनाती संसार॥
आरती जगदीश की, जो सबके मन को मोहती।
नाम जप, कीर्तन से, भक्तों की वृत्ति संपूजती॥
आरती जगदीश की, जय जगदीश हरे।
स्वामी जगदीश हरे, भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

यहां दिए गए पंक्तियों में जगदीश (विष्णु) की महिमा, आराधना, भक्ति, और उनके नामों की महत्ता व्यक्त की गई है। यह आरती भक्तों द्वारा आदर्शता और श्रद्धा के साथ गाई जाती है।

पुंडरीकाक्ष (Pundarikaksh) कथा

के रूप में एक प्रसिद्ध कथा में बताया जाता है। इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है, काशी नगरी में एक भक्त ब्राह्मण रहता था। वह भक्तिमय और निष्ठावान था और पुंडरीकाक्ष नामक एक विष्णु मूर्ति की पूजा करता था।
एक दिन, उसके यहां देवी लक्ष्मी और नारद मुनि आए। नारद मुनि ने उसे पूछा कि वह किसी दूसरे विष्णु मूर्ति की पूजा क्यों नहीं करता है। तब भक्त ब्राह्मण ने कहा कि वह तभी किसी और मूर्ति की पूजा करेगा जब पुंडरीकाक्ष मूर्ति की पूजा नहीं होगी।
यह सुनकर, नारद मुनि और लक्ष्मी देवी उसे चुनौती देने का निर्णय लिया। उन्होंने उसे कहा कि यदि वह अपनी पूजा में एक फूल लाने में समर्थ होता है, तो उन्होंने उसे एक साल में अनेक धनी और सुखी कर देंगे।
भक्त ब्राह्मण ने चुनौती स्वीकार की और पूजा के लिए तत्पर हो गया। वह नदी के किनारे चढ़ा और वहां अपनी पूजा करने लगा
। उसने विनयपूर्वक पुंडरीकाक्ष मूर्ति की पूजा की और विश्वास और श्रद्धा के साथ एक फूल मांगा।
तभी अचानक, एक कमल फूल नदी के समुद्र से उठा और उसके हाथ में आ गया। भक्त ब्राह्मण ने आनंदित होकर वह फूल लाकर नारद मुनि और लक्ष्मी देवी के सामने रखा।
नारद मुनि और लक्ष्मी देवी ने उसे धन्यवाद दिया और उन्होंने अपने वचन के मुताबिक भक्त ब्राह्मण को धन और सुख प्रदान किया। इस प्रकार, पुंडरीकाक्ष मूर्ति की पूजा ने उसके जीवन को सुख, समृद्धि और धन के साथ पूर्ण किया।
यह कथा भक्ति, निष्ठा और पुंडरीकाक्ष मूर्ति की महिमा को प्रदर्शित करती है। इसके माध्यम से, यह समझाया जाता है कि विश्वास और पूजा के साथ भगवान की उपासना करने से हमें सुख, समृद्धि और आनंद प्राप्त हो सकता है।

परमात्मा (Paramatma) कथा

में एक मनोहारी कथा बताई जाती है जो परमात्मा की अद्वैत और सर्वव्यापक स्वरूप को दर्शाती है। यह कथा ब्रह्मा और विष्णु के बीच हुई एक विवाद पर आधारित है।
कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु एक-दूसरे के सामने यह विचार कर रहे थे कि कौन अधिक महत्त्वपूर्ण है -परमात्मा या जीवात्मा। दोनों देवताओं के बीच तर्क चल रहा था और वे एक-दूसरे को विजयी साबित करने की कोशिश कर रहे थे।
इस विवाद को समाधान करने के लिए, विष्णु ने एक छोटे बालक के रूप में परमात्मा की आवतार ली। वह छोटा सा बालक ब्रह्मा और विष्णु के सामने आया और उनसे पूछा कि क्या वे उसे परमात्मा का दर्शन करना चाहेंगे।
ब्रह्मा और विष्णु ने हां कहा और उन्होंने देखा कि उस बालक की आंखों से प्रकाशमय ज्योति निकल रही है। उस बालक ने अपने मुख से कहा, "मैं परमात्मा हूँ, जीवात्माओं के समूह में व्याप्त हूँ और सबको पालन करता हूँ।
"
इस प्रकार, विष्णु ने ब्रह्मा और विष्णु को प्रमाणित किया कि परमात्मा सबमें व्याप्त है और सबका पालन करता है। वे जीवात्माओं के साथ अद्वैत और सर्वव्यापक रूप में मौजूद होते हैं। इस कथा से यह समझाया जाता है कि हमें अपने सच्चे स्वरूप को पहचानने और परमात्मा की प्रेम और सेवा में लगने की आवश्यकता है।

त्रिविक्रम (Trivikram) कथा 

में एक महान कथा का वर्णन किया जाता है जो हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है। यह कथा महाभारत महाकाव्य के एक अंश से जुड़ी हुई है और इसमें भगवान विष्णु की महिमा और उनके विशेष अवतार त्रिविक्रम के बारे में बताया जाता है।
यह कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार के संबंध में है। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में जन्म लिया। उन्होंने देवताओं की सहायता से दित्ती, बलि की भूमि का विजयपूर्वक अधिकार करने का वचन दिया। वामन रूप में भगवान विष्णु ने दित्ती के यज्ञ की प्रतिष्ठा में त्रिविक्रम (तीन चरणों में छिपे हुए) रूप लेकर अपनी दैवी शक्ति दिखाई।
त्रिविक्रम कथा में विष्णु भगवान के विशेष शक्ति, प्रभुत्व, और न्यायप्रियता का प्रमाण दिया जाता है। उन्होंने दित्ती के साथ वामन अवतार के माध्यम से न्याय और धर्म की रक्षा की और दानशीलता के महत्व को प्रमाणित किया।
यह कथा हमें यह बताती है कि ईश्वर की महिमा अपरिमित है और उनके अवतार अपरिमित रूप से महानतम हैं। भगवान विष्णु के त्रिविक्रम अवतार से हमें न्याय, धर्म, और सत्य की महत्ता का अनुभव होता है और हमें उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति की अपार आवश्यकता होती है।

कामलनाथ (Kamalnath) कथा 

में एक प्रसिद्ध कथा बताई जाती है। यह कथा महाभारत के महानायकों में से एक श्रीकृष्ण के भक्त और आदेशनिष्ठ राजा कामलनाथ के बारे में है।
कथा के अनुसार, कामलनाथ राजा बहुत ही ईमानदार और न्यायप्रिय राजा थे। उन्हें श्रीकृष्ण की भक्ति में गहरी आस्था थी और उन्होंने अपना जीवन उसकी सेवा में समर्पित किया। उन्होंने अपने राज्य में धर्म की रक्षा की और अपने प्रजा के लिए न्याय और समृद्धि की सुनिश्चित की।
एक बार, श्रीकृष्ण अपने विश्राम के लिए कामलनाथ के राज्य आए और वहां उनके दरबार में भेंट दी। कामलनाथ ने भगवान का आदर्श अभिनंदन किया और उन्हें अपने दरबार में स्वागत किया।
कामलनाथ ने श्रीकृष्ण से अपने राज्य के बारे में परामर्श मांगा और उनसे न्यायपूर्वक राजनीति के तत्वों के बारे में सीखा। श्रीकृष्ण ने उन्हें अनुशासनपूर्वक मार्गदर्शन किया और उन्हें धर्म और न्याय के महत्व को समझाया।
कामलनाथ ने इस बात को समझा कि एक सत्यनिष्ठ और धार्मिक राजा के लिए राजनीति और न्याय सर्वोपरि होते हैं। वे अपने राज्य को धर्मप्रियता, न्याय और शांति के माध्यम से प्रबंधित करने के लिए उत्सुक थे।
यह कथा बताती है कि एक सच्चे भक्त के रूप में राजा कामलनाथ ने धर्म, न्याय और सेवा के माध्यम से श्रीकृष्ण की प्रेम और आदेशानुसार जीवन जीता। इससे हमें यह समझ मिलता है कि भक्ति, न्याय और श्रद्धा के साथ अपने धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना हमारे जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से पूर्ण कर सकता है।

अव्यक्त (Avyakt) कथा 

वेदान्त और ध्यान के संबंध में एक महत्वपूर्ण कथा है। इस कथा में अव्यक्त ब्रह्म (अनुपेक्षित ब्रह्म) की महिमा और उसके अतींद्रिय स्वरूप का वर्णन किया जाता है।
अव्यक्त कथा के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता सभी अव्यक्त ब्रह्म के रूप में एक ही सत्ता को प्रतिष्ठित करते हैं। यह अव्यक्त ब्रह्म सभी जीवों के मूल और अटूट स्रोत के रूप में माना जाता है। वह सबके आधार और उपदेशक है, और समस्त जगत की उत्पत्ति और विलय का कारण है।
अव्यक्त कथा बताती है कि सभी विश्वासी भक्त अव्यक्त ब्रह्म के प्रति अपार प्रेम और समर्पण रखते हैं। उन्हें यह ज्ञात होता है कि वास्तविकता में सब कुछ अव्यक्त ब्रह्म में समाहित है, और जगत के विविध रूप और नाम निर्माता के साथ आद्यांत भूत होते हैं।
इस कथा के माध्यम से हमें यह बोध होता है कि सच्ची स्वयंभू शक्ति, परम सत्य और अनंत ज्ञान अव्यक्त ब्रह्म में निहित है। यह हमें आत्मा की अविनाशी और सर्वव्यापी प्रकृति के प्रति जागरूकता प्रदान करती है। यह हमें स्वयं को आत्मसात करने, ध्यान में लगने और सच्चे स्वरूप का अनुभव करने की प्रेरणा देती है।

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