विष्णु भगवान को भोग लगाएं और श्री विष्णु चालीसा
विष्णु भगवान को भोग लगाएं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मनवांछित फल देते हैं। पहनें पीले वस्त्र गुरुवार व्रत के दिन व्रत करने वालों को भी पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. बृहस्पतिवार को पीले रंग की चीजें दान करनी चाहिए
नमक न खाएं
गुरुवार व्रत के दिन व्रत करने वालों को नमक नहीं खाना चाहिए. इस दिन पीले रंग का आहार ग्रहण करना चाहिए भगवान विष्णु के भोग में तुलसी का उपयोग करें=विष्णु भगवान को तुलसी अति प्रिय है। भगवान विष्णु को भोग लगाते समय तुलसी का का उपयोग करना न भूलें। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु तुलसी के बिना भोग ग्रहण नही करते हैं।
सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं=भगवान के भोग में प्याज लहसुन का उपयोग नहीं करना चाहिए। प्याज लहसुन सात्विक आहार में नहीं आता है और भगवान को केवल सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है।
विष्णु भगवान का महामंत्र=ॐ नमोः नारायणाय नमः। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः
भोग का एक हिस्सा गाय को खिलाएं=भगवान को भोग लगे हुए भोजन का थोड़ा सा हिस्सा निकालकर गाय को खिलाना चाहिए, उसके बाद ही उस भोग को प्रसाद के तौर पर बांटना चाहिए। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार गाय को माता का दर्जा दिया जाता है और गाय को भोजन खिलाने से पितृ दोषों से मुक्ति मिलती हैभोग को कुछ देर पूजा स्थल में ही रखें भगवान को भोग लगाने के बाद भोग को कुछ देर पूजा स्थल में ही रखें।
भोग लगाने के बाद भगवान को प्रणाम कर थोड़ी देर के लिए वहां से हट जाना चाहिए। भगवान के भोग के साथ एक लोटा जल भी रखना चाहिए।भगवान विष्णु को सादा भोग लगाया जाता है=भगवान विष्णु के भोग में तीखी चीजों के इस्तेमाल से बचना चाहिए भगवान को सादा भोग लगाने की पंरपरा है। भगवान विष्णु के भोग में मीठे पकवान रखना न भूलें। खीर और हल्वा विष्णु भगवान को प्रिय होता है।
पीली वस्तुओं से लगाएं भोग=भगवान विष्णु को पीला रंग अत्यंत प्रिय है. पीला रंग धारण करने के कारण उन्हें पीतांबर भी कहते हैं. उन्हें पीले रंग के फूल व फलों का भोग लगाना चाहिए. पीले रंग के चना दाल और गुड़ को मिलाकर भी चढ़ाएं
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः
श्री विष्णु चालीसा
श्री विष्णु चालीसा – धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए चालीसा । बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु की इस चालीसा को सुनें या पढ़े विष्णु जी आपकी सभी संकट व विपत्तियों से रक्षा करें ।
भगवान विष्णु को दया और प्रेम का सागर माना जाता है। विष्णु जी अपनी पत्नी देवी माता लक्ष्मी के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। सच्चे मन से आराधना करने पर वह व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
॥ दोहा ॥
विष्णु सुनिए विनय,सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूँ,दीजै ज्ञान बताय॥
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी।कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥सुन्दर रूप मनोहर सूरत।सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥तन पर पीताम्बर अति सोहत।बैजन्ती माला मन मोहत॥शंख चक्र कर गदा बिराजे।देखत दैत्य असुर दल भाजे॥सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।दोष मिटाय करत जन सज्जन॥पाप काट भव सिन्धु उतारण।कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥करत अनेक रूप प्रभु धारण।केवल आप भक्ति के कारण॥धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।तब तुम रूप राम का धारा॥भार उतार असुर दल मारा।रावण आदिक को संहारा॥आप वाराह रूप बनाया।हिरण्याक्ष को मार गिराया॥धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।चौदह रतनन को निकलाया॥अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।रूप मोहनी आप दिखाया॥देवन को अमृत पान कराया।असुरन को छबि से बहलाया॥कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।भस्मासुर को रूप दिखाया॥वेदन को जब असुर डुबाया।कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥मोहित बनकर खलहि नचाया।उसही कर से भस्म कराया॥असुर जलंधर अति बलदाई।शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥हार पार शिव सकल बनाई।कीन सती से छल खल जाई॥सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।बतलाई सब विपत कहानी॥तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥देखत तीन दनुज शैतानी।वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।हना असुर उर शिव शैतानी॥तुमने धुरू प्रहलाद उबारे।हिरणाकुश आदिक खल मारे॥गणिका और अजामिल तारे।बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥हरहु सकल संताप हमारे।कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥देखहुँ मैं निज दरश तुम्हारे।दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥हत आपका सेवक दर्शन।करहु दया अपनी मधुसूदन॥जानूं नहीं योग्य जप पूजन।होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥शीलदया सन्तोष सुलक्षण।विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥करहुँ आपका किस विधि पूजन।कुमति विलोक होत दुख भीषण॥करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरण।कौन भांति मैं करहुँ समर्पण॥सुर मुनि करत सदा सिवकाई।हर्षित रहत परम गति पाई॥दीन दुखिन पर सदा सहाई।निज जन जान लेव अपनाई॥पाप दोष संताप नशाओ।भव बन्धन से मुक्त कराओ॥सुत सम्पति दे सुख उपजाओ।निज चरनन का दास बनाओ॥निगम सदा ये विनय सुनावै।पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
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