संस्कृति में सूर्य पूजा का पूराना इतिहास /Old history of sun worship in culture

 कटारमल सूर्य मन्दिर, अल्मोड़ा(उत्तराखंड)

कटारमल मंदिर एक शानदार सूर्य मंदिर है जिसे बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।कटारमल अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है और यह 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करने के लिए लगभग तीन किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है। कटारमल मंदिर को कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है।

 सनातन संस्कृति में सूर्य पूजा का पूराना इतिहास सनातन धर्म और सनातन संस्कृति में सूर्य पूजा का पूराना इतिहास है। तभी तो सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी है। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है।

 देवभूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भगवान सूर्य देव से संबंधित प्राचीन मंदिर ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’ स्थित है। 

यह मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है।9 वीं शताब्दी का कटारमल सूर्य मंदिर 2116 मीटर की ऊंचाई पर 9 वीं शताब्दी का कटारमल सूर्य मंदिर, जो खंडहर में है, अभी भी हमारे पूर्वजों के कृत्रिम और शिल्पकला के चमत्कार को प्रदर्शित करता है।

 मुख्य मन्दिर के आस-पास ही भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नरसिंह, भगवान कार्तिकेय के साथ ही अन्य देवी-देवताओं से संबंधित 45 के करीब छोटे-बड़े मन्दिर बने हुए हैं। 

katarmal sun Temple यह  मंदिर समस्त कुमाऊ में  विशाल  मंदिरों में गिना  जाता है। कटारमल के सूर्य मंदिर को कोर्णाक सूर्य मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। कटारमल मंदिर कोर्णाक के सूर्य मंदिर से लगभग 200 वर्ष पुराना माना जाता है।

कटारमल का सूर्य मंदिर अपनी विशेष वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। कटारमल के सूर्यमंदिर का लोकप्रिय नाम बारादित्य है। कटारमल के मंदिर के बारे मेें कहा जाता है,कि  कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण कत्यूरी वंश के राजा कटारमल देव ने कराया  था। इसीलिये इस मंदिर का नाम राजा कटारमल के नाम से कटारमल का सूर्य मंदिर भी कहा जाता है।

यहाँ छोटे छोटे 45 मंदिरों का समूह है। इतिहासकारों के अनुसार मुख्य मंदिर का निर्माण अलग अलग समय माना जाता है। वास्तुकला और शिलालेखों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 13 वी शताब्दी में माना जाता है।
अल्मोड़ा सूर्य मंदिर की दीवार पर तीन लाइन लिखा एक शिलालेख भी है। जिसके अनुसार प्रसिद्ध लेखक राहुल सांकृत्यायन 10वी या 11 वी शताब्दी का माना है। राहुल सांकृत्यायन ने भी इस मंदिर की मूर्तियां को कत्यूरी काल की माना है। इन मंदिरों में भगवान सूर्य की 2 मूर्तियां और विष्णु शिव गणेश भगवान की मूर्तियां है। पुरातत्वविद  डॉ डिमरी जी के अनुसार यह मंदिर 11वी शताब्दी का माना जा सकता है। इस मंदिर के लकड़ी के गुम्बद के हिसाब से यह 8 वी या 9 वी शताब्दी का लगता है।

इस मंदिर में सुंदर अष्टधातु की मूर्ति थी , जिसे चोरों ने चुरा लिया था, जो अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे हैं। मंदिर का ऊँचा शिखर अब खंडित हो गया है। इसकी शिखर की ऊँचाई से इसकी उचाई का अनुमान लगाया जा सकता है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। कटारमल मंदिर का प्रवेश द्वार जो अनुपम काष्ट कला का नमूना था, तस्करों की चोरी की वारदात के बाद। इन दरवाजों को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रख दिया गया।

( कटारमल सूर्य मंदिर का इतिहास )

कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण भारतीय राजा कटारमल जी के द्वारा किया गया था, जिन्होंने बिकानेर राज्य के राजा थे। इस मंदिर का निर्माण 1979 में शुरू हुआ था और उसका उद्घाटन 2 सितंबर 1988 को किया गया था।

राजा कटारमल बिकानेर के राजा थे और उन्होंने इस मंदिर का निर्माण सूर्य देव के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक के रूप में किया था। उनकी इच्छा थी कि वह एक ऐसा स्थल बनाएं जो सूर्य की प्रकृति की सुन्दरता और ऊर्जा को प्रकट करे।

इस मंदिर का मुख्य निर्माण सौर ऊर्जा के प्रयोग के साथ किया गया है। मंदिर में खासकर अंधेरे समय में सूर्य की प्रकटि को संकेतित करने के लिए सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिनका उपयोग पूजा आरती और आलोकिक अवसरों में किया जाता है।

इस मंदिर की ऊँचाई लगभग २३ मीटर (७५ फीट) है और इसकी आकृति भूमि पर उभरते हुए सूर्य को प्रतिस्थानित करने की है। यह मंदिर एक आध्यात्मिक स्थल के रूप में भी परिचित है, जहां लोग शांति और आत्म-साक्षात्कार की खोज करते हैं।

कटारमल सूर्य मंदिर एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बन चुका है। यह बिकानेर शहर के पास स्थित है और यहाँ पर्यटक आकर्षित होते हैं ताकि वे इसकी शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण में आत्म-साक्षात्कार का अनुभव कर सकें।

कटारमल के मंदिर की विशेषता –

katarmal sun temple की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ,यहाँ भगवान सूर्य की मूर्ति किसी ,धातु या पत्थर से निर्मित नही है, बल्कि बड़ की लकडी अर्थात बरगद की लकड़ी से बनी है। जो अदभुत और अनोखी है। यहाँ के सूर्य भगवान की मूर्ति बड़ की लकड़ी से बने होने के कारण ऐसे बड़ादित्य या बड़आदित्य मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान सूर्य देव की मूर्ति पद्मासन में स्थित है। इस मंदिर में सूर्य देव की 2 मूर्तियां है।

कटारमल सूर्य मंदिर की कहानी | Story of Katarmal sun temple

कटारमल सूर्य मंदिर राजस्थान, भारत में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जिसका नाम सोलर सेंट्रल मंदिर भी है। यह सूर्य देव को समर्पित है और यह भारत के पहले सौर ऊर्जा बेस्ड मंदिरों में से एक है। इसकी कहानी निम्नलिखित है:

कटारमल सूर्य मंदिर की नींव उदयपुर के राजा कटारमल द्वारा 1979 में रखी गई थी। यह उनकी ऊर्जा और उद्यमिता की प्रतीक रचना थी। उदयपुर राजघराने का नाम प्राप्त कर चुके थे, लेकिन वे समर्पित और निष्कलंक भावना रखने वाले राजा थे।

मंदिर का निर्माण सूर्य ऊर्जा का प्रयोग करते हुए किया गया था। यह मंदिर सौर ऊर्जा के प्रयोग के साथ चलने वाले भारत के पहले सोलर सेंट्रल मंदिरों में से एक था।

मंदिर का निर्माण कटारमल राजा की मातृभूमि, बिकानेर के निकट समर स्थित गोतमी गांव में हुआ था। इस मंदिर का मुख्य उद्देश्य सूर्य ऊर्जा का प्रयोग करके पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देना था।

यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है और इसकी ऊँचाई २३ मीटर (७५ फीट) से अधिक है। इसकी ऊँचाई के कारण यह मंदिर दूरबीन के माध्यम से देखा जा सकता है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है।

इस रूपरेखा में, कटारमल सूर्य मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यावरणीय स्थल है, जिसमें ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्ण संदेश दिए जाते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन युगों से उत्तराखंड देवभूमि रही है। यहाँ पहाड़ो पर ऋषि मुनि अपनी जप तप करते थे। एक बार द्रोणागिरी , कक्षयपर्वत और कंजार पर्वत पर ऋषि मुनि अपना जप तप कर रहे थे। तभी उनको वहाँ एक असुर परेशान करने लगा। ऋषियों ने वहाँ से भाग कर , कौशिकी नदी ( कोसी नदी ) के तट पर शरण ली। वहाँ उन्होंने भगवान सूर्य देव की आराधना की । तब भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर अपने  तेज को एक वटशिला मे स्थापित कर दिया । जैसा कि विदित है, ऊर्जा और तेज के सामने नकारात्मक शक्तियां नही टिक सकती हैं
वटशिला के तेज के सामने असुर परास्त हो गया ,और ऋषियों ने निर्बिघ्न अपनी पूजा आराधना,जप तप किया। बाद में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल देव ने इसी वटशिला पर भगवान सूर्यदेव के भव्य मंदिर का निर्माण कराया।

ऊँ सूर्याय नमः
ऊँ घृणि सूर्याय नमः
ऊँ हूं सूर्याय नमः
ऊँ भानवे नमः
जय सूर्य देव भगवान की, 

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