शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका रुद्राभिषेक ,रुद्राभिषेक क्या है

शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका रुद्राभिषेक ,रुद्राभिषेक क्या है

आइये रुद्राभिषेक से जुड़े कुछ अहम बातो को जाने

रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है ।रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना । जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। 
रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं । रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है

कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है 

आइये रुद्राभिषेक से जुड़े कुछ अहम बातो को जाने

रुद्राभिषेक क्या है ?

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान (Bath) करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।

रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक एक पौराणिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम है जो हिन्दू धर्म में प्रथित है। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की पूजा, आराधना और श्रद्धा को व्यक्त करना है। यह प्रथा विशेष अवसरों पर, जैसे महाशिवरात्रि, सोमवार और शिवरात्रि आदि पर की जाती है।

रुद्राभिषेक में प्रमुख तत्वों में से एक है शिवलिंग पर जल, धूप, दीप, फूल और अन्य पूजा सामग्री का अभिषेक करना। इसके साथ ही, वेद मंत्रों का पाठ, मन्त्र जाप, शंख और तांबे के पात्रों में प्रदान किया जाने वाला दूध, तेल, घी, दही, शर्करा, शहद आदि का अभिषेक भी किया जाता है। इसके द्वारा श्रद्धालु भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

रुद्राभिषेक को धार्मिक, आध्यात्मिक और आंतरिक शांति और आनंद प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसे शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने और उनके आत्मिक गुणों को आदर्श बनाने का एक माध्यम माना जाता है। भक्ति और समर्पण के माध्यम से रुद्राभिषेक का आयोजन करने से श्रद्धालु का मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास होता है।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?

प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

 रुद्राभिषेक का आरम्भ एक कथा केअनुसार 

एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक विशेष रूप से हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा प्रक्रिया है, जिसे भगवान शिव की आराधना के लिए किया जाता है। यह पूजा प्रक्रिया शिवरात्रि, महाशिवरात्रि, श्रावण मास, और अन्य विशेष अवसरों पर की जाती है।

रुद्राभिषेक का आरम्भ मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीके से होता है:

  1. संकल्प: पूजा का आरम्भ संकल्प (संकल्पना) के रूप में होता है, जिसमें पूजा कर्ता अपने इच्छित संकल्प को प्रकट करता है। इसमें वह पूजा का उद्देश्य, संकल्पना का काल, तिथि, और उद्देश्य आदि का उल्लेख करता है।
  2. शुद्धि कर्म: पूजा कर्ता अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए अंगस्नान (स्नान का एक विशेष प्रकार) और पवित्र वस्त्र पहनता है। यह उसे निर्मल भाव में लाने का एक पवित्र रितुअल है।
  3. देवता आवाहन: पूजा कर्ता विशेष मंत्रों की मदद से भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को आमंत्रित करता है। इसके लिए उन्हें यथावत प्रकार से अभिवादन किया जाता है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अर्पण किया जाता है।
  4. रुद्राभिषेक: इसके बाद पूजा कर्ता रुद्राभिषेक के लिए शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, तिल, धातु, फूल, चंदन, जता, बेलपत्र, पुष्प, रक्त, गंध आदि का अभिषेक करता है। इसके साथ-साथ मंत्रों, स्तोत्रों, और शिव भजनों का पाठ भी किया जाता है।
  5. आरती और प्रसाद: रुद्राभिषेक के बाद पूजा कर्ता अपने ईश्वर की पूजा को समाप्त करते हैं और आरती द्वारा उन्हें सम्मानित करते हैं। अन्त में पूजा का प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे भक्तों को बांटा जाता है।
यहीं तरीके से रुद्राभिषेक की पूजा प्रक्रिया आरम्भ होती है। इसे विधिवत और श्रद्धापूर्वक करना शिव भक्ति का महत्वपूर्ण अंग है।

रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि 

इसमें में रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंच्यामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।

  1. गौरी-गणेश की पूजा: पूजा की शुरुआत गौरी-गणेश की पूजा से होती है। गौरी-गणेश को जल से स्नान कराएं और उन्हें फूल, चावल, कुंकुम, रोली आदि से सजाएं।
  2. शिवलिंग की पूजा: शिवलिंग को गंगाजल से स्नान करें और पानी से धूप दें। फिर शिवलिंग को दूध, दही, घी, शहद, तिल आदि से स्नान कराएं। उसके बाद, शिवलिंग को फूलों से सजाएं और बेलपत्र रखें।
  3. मंत्रोच्चारण: रुद्राभिषेक के दौरान, महामृत्युंजय मंत्र और शिव अष्टोत्तर शतनामावली जैसे मंत्रों का जाप करें।
  4. अर्चना: पूजा के बाद, आप शिवलिंग को फूलों, धूप, दीप, कुंकुम, रोली, चावल आदि से अर्चना कर सकते हैं।
  5. प्रसाद: पूजा के अंत में, प्रसाद के रूप में फल, पानी, चॉकलेट, नट्स आदि चीजें शिवलिंग को अर्पित करें और इसे भक्तों को बांटें।

रुद्राभिषेक से लाभ

शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
Rudrabhishek अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं ।
रुद्राभिषेक कैसे करे
1) जल से अभिषेक
  • हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें
  • अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें 
  • ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  • शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

2) दूध से अभिषेक
  • शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  • पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  • अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें
  • शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
3) फलों का रस
  • अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  • अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
  • शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
4) सरसों के तेल से अभिषेक
  • ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  • अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
  • शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
5) चने की दाल
  • किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  • अभिषेक करेत हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें
  • शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
6) काले तिल से अभिषेक
  • तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  • अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें
  • शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
7) शहद मिश्रित गंगा जल
  • संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
  • अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें
  • शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
8) घी व शहद
  • रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
  • ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  • अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें
  • शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
9 ) कुमकुम केसर हल्दी
  • आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें
  • भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
  • ताम्बे के पात्र में ‘कुमकुम केसर हल्दी और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
  • पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
  • पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’
  • फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
  • अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’
  • शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार ●

किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर, नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।
"परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महा विपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है।"

रुद्राभिषेक करने की तिथियां

कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
  1. महाशिवरात्रि: यह तिथि हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह शिवभक्तों द्वारा विशेष आदर और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
  2. कार्तिक पूर्णिमा: इस तिथि को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। इस दिन भी भगवान शिव की पूजा एवं रुद्राभिषेक की जाती है।
  3. माघ मास में पूर्णिमा: यह तिथि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन भी भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करने का प्रचलन होता है।
  4. प्रतिमा स्थापना तिथियां: रुद्राभिषेक का आयोजन भगवान शिव की मूर्ति या प्रतिमा की स्थापना के अवसर पर भी किया जा सकता है। इसकी तिथियां प्रतिवर्ष बदलती रहती हैं, क्योंकि इसे हिन्दू पंचांग के अनुसार मनाया जाता है।

 किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है
रुद्राभिषेक शिव भक्ति का एक प्रमुख आयोजन है जिसमें भक्त भगवान शिव की पूजा-अर्चना और मंत्रों के जाप के माध्यम से उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने का अर्थ है कि भक्त, पूजा के दौरान मन में शिव भगवान को अपने वासस्थल के रूप में स्थापित करता है, अर्थात् उनकी उपस्थिति को दिल में महसूस करता है। यह भावना भक्ति की गहराई और प्रभाव को बढ़ाती है।

अगर रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है, तो इसका कारण दो अहम तत्व हो सकते हैं।

पहला, भक्ति और निष्ठा: रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने वाले भक्त की निष्ठा और श्रद्धा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यदि भक्त विश्वास और समर्पण के साथ रुद्राभिषेक का आयोजन करता है, तो यह उनकी भक्ति को मजबूत करता है और परिणामस्वरूप वे मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरा, मानसिक एकाग्रता: रुद्राभिषेक के दौरान शिव-वास का विचार करने से भक्त का मन मानसिक एकाग्रता की अवस्था में रहता है। यह मानसिक एकाग्रता उन्हें अपने अंतर्मन के साथ भगवान के साथ संवाद करने और उनकी कृपा को अनुभव करने की क्षमता प्रदान करती है। इस प्रकार की मानसिक एकाग्रता और संवाद में रखे गए मनोवांछित फल को प्राप्त करने में सहायक होती है।

यदि रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने से अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है, तो यह भक्ति, निष्ठा, मानसिक एकाग्रता और भगवान के प्रति श्रद्धा के परिणामस्वरूप हो सकता है। यह एक साधारण नियम नहीं है, और यह हर भक्त के लिए अलग-अलग हो सकता है। भक्त की आस्था, निष्ठा और पूजा के साधनों का संयोग भगवान की कृपा को प्राप्त करने में सहायता करता है

रुद्राभिषेक मंत्र;-सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।।

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