भगवान विष्णु का नारायण और हरि नाम का रहस्य /The secret of Lord Vishnu's name Narayan and Hari

 

 भगवान विष्णु का नारायण और हरि नाम का रहस्य

भगवान विष्णु

भगवान विष्णु को इस संसार के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। भगवान विष्णु की आराधना से व्यक्ति के जवन में सुख, समृद्धि और शांति स्थापित होती है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के पूजन से व्यक्ति को मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। भगवान विष्णु के अनेकों भक्त हैं और उनके भक्त उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते हैं।कोई उन्हें श्री हरि कहता है तो कोई नारायण। वहीं, कुछ भक्त उन्हें लक्ष्मीपति के नाम से भी पुकारते हैं।

नारायण नाम का रहस्य 

वहीं पानी को नीर या नार कहा जाता है तो वहीं जगतपालक के रहने की जगह यानी अयन क्षीरसागर यानी जल में ही है। इस तरह नार और अयन शब्द मिलकर नारायण नाम बनता है। यानी जल में रहने वाले या जल के देवता। जल को देवता मानने के पीछे यह भी एक वजह है।
पौराणिक प्रसंगों पर गौर भी करें तो भगवान विष्णु के दशावतारों में पहले तीन अवतारों (मत्स्य, कच्छप व वराह) का संबंध भी किसी न किसी रूप में जल से ही रहा। सीलिए भगवान विष्णु को उनके भक्त ‘नारायण’ नाम से बुलाते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु भी जल में ही निवास करते हैं. इसलिए "नर" शब्द से उनका नारायण नाम पड़ा है

हरि नाम का रहस्य

 विष्णु पुराण में लिखित पंक्ति 'हरि हरति पापणि' में इस बात का उल्लेख भी मिलता है। इस पंक्ति का अर्थ है जीवन के सारे पापों और विलापों को हरने वाले हरि यानी कि भगवान विष्णु। भगवान विष्णु भगवान विष्णु के मंत्र का एक नाम हरि भी है। हरि का अर्थ होता है हरने वाला और कुछ विशेष स्थितियों में हरि का अर्थ चुराने वाला भी माना जाता है। भगवान विष्णु पालनकर्ता के साथ साथ दुख हरता भी हैं। भगवान विष्णु की पूर्ण श्रद्धा से गई आराधना उन्हें अपने भक्तों के दुख और कष्ट हरने पर विवश कर देती है।इसी कारण से भगवान विष्णु हरि कहलाते हैं। विष्णु पुराण में लिखित पंक्ति 'हरि हरति पापणि' में इस बात का उल्लेख भी मिलता है। इस पंक्ति का अर्थ है जीवन के सारे पापों और विलापों को हरने वाले हरि यानी कि भगवान विष्णु।

असल में, पौराणिक मान्यता है कि जल, भगवान विष्णु के चरणों से ही पैदा हुआ। गंगा नदी का नाम “विष्णुपादोदकी’ यानी भगवान विष्णु के चरणों से निकली भी इस बात को उजागर करता है।

[[श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।


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