भगवान शिव का जलाभिषेक क्यों किया जाता है /Why is Jalabhishek performed for Lord Shiva?

 भगवान शिव का जलाभिषेक क्यों किया जाता है

 और इसका क्या धार्मिक महत्व है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत की चाहत में देवताओं और दानवों के बीच द्वन्द छिड़ गया, फिर समुद्र मंथन का फैसला लिया गया। कहा जाता है कि जिस माह में समुन्द्र मंथन किया गया थास वो सावन का ही महीना था। समुद्र मंथन के दौरान विष निकला, जिससे पृथ्वी पर भूचाल आ गया, वातावरण दूषित होने लगा और पशु पक्षी मरने लगे। ये विष इतना प्रभावशाली था कि इससे सृष्टि को खतरा पैदा होने लगा। फिर क्या था, महादेव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को अपने कंठ में ग्रहण कर लिया, इसके बाद से ही इन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।

1 पौराणिक तथ्य

जब भगवान शिव ने विष को अपने गले में ग्रहण किया तो विष के प्रभाव से उनके पूरे शरीर में गर्मी बढ़ने लगी। महादेव के पूरा शरीर लाल पड़ने लगा। ऐसे देख देवताओं ने भगवान शिव पर जल वृष्टि करा दी, कई देवताओं ने उनके शरीर को ठंडा करने के लिए उनके उपर जलाभिषेक किया। कहते ही तब से ही महादेव के उपर जलाभिषेक की परंपा शुरु हुई।

2 पौराणिक तथ्य 

शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं ही जल का रूप है, इसलिए भगवान शिव को जल से अभिषेक करना बहुत ही अच्छा और फलदाई माना जाता है।

सावन मास का विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस पवित्र महीने में जो भी श्रद्धालु महादेव की पूजा पूरे विधि विधान और श्रद्धा के साथ करता है तो इसका फल उसे अवश्य मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन का महीना वो महीना होता है जब देवों के देव महादेव पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। ये वो समय होता है जब पृथ्वी का वातावरण शिव शक्ति और शिव की भक्ति से ओत प्रोत रहता है। कहते हैं कि ये वो पवित्र महीना होता है, जब शिव थोड़ी ही भक्ति में प्रसन्न हो जाते हैं और हमारे दुखों का निवारण करते हैं। पूरे महीने शिवालयों में भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। इस पूरे महीने भगवान शिव पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है।
सावन महीने की शुरुआत के साथ साथ कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत हो जाती है। सड़कों पर कांवड़ियों का रैला दिखने लगता है। कांवड़िया कई किलोमीटर दूर से गंगा जल या फिर पवित्र नदियों का जल लेकर आते हैं और अपने प्रमुख शिवालयों में जाकर महादेव के उपर जल अर्पित कर सुखी जीवन की कामना करते हैं।
ॐ तत्पुरुषाय नम:

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