भगवान शिव क्यों कहलाते है त्रिपुरारी /Why Lord Shiva is called Tripurari

 भगवान शिव क्यों कहलाते है त्रिपुरारी ?

कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था। त्रिपुरों का नाश करने के कारण ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी प्रसिद्ध है। भगवान शिव ने कैसे किया त्रिपुरों का नाश, ये पूरी कथा इस प्रकार है –

 'त्रिपुरारी'नाम के पीछे  एक महत्वपूर्ण कथा 

भगवान शिव को 'त्रिपुरारी' कहा जाता है क्योंकि इस नाम के पीछे एक महत्वपूर्ण कथा है। त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस ने त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) के ब्रह्मास्त्र के बारे में श्रद्धा न रखते हुए तीनों लोकों की आधिपत्य प्राप्त कर ली थी। इससे देवताओं को बहुत पीड़ा हुई और वे भगवान शिव की सहायता लेने गए।भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के खिलाफ लड़ने का निर्णय किया और उन्होंने त्रिपुरासुर को नष्ट करने के लिए त्रिशूल और ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। युद्ध में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर को मार दिया और इससे वह त्रिपुरारी के नाम से पुकारे जाने लगे।
इस प्रकार, त्रिपुरारी का अर्थ होता है 'त्रिपुरासुर का वध करने वाला' या 'त्रिपुरासुर को नष्ट करने वाला'। भगवान शिव की यह एक प्रमुख गुणवत्ता है जो उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है।सही है, त्रिपुरारी नाम के पीछे एक महत्वपूर्ण कथा है। यह कथा वेद पुराणों में प्रमुखतः "शिव पुराण" में उल्लेखित है।
कथा के अनुसार, एक समय पर्वतराज हिमालय और मेनाका की पुत्री कामदेवी द्वारा जगत्पुरी नामक नगर में एक यज्ञ का आयोजन हुआ था। इस यज्ञ का उद्देश्य दुष्ट त्रिपुरासुर का वध करना था, जो तापस्या और तपस्वियों को पीड़ित कर रहा था। त्रिपुरासुर ने वर प्राप्त करके अपनी अद्भुत शक्ति के बल पर तीन नगरों का निर्माण किया था।
त्रिपुरासुर का वध करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव की सहायता मांगी। उन्होंने देवताओं को मारने के लिए त्रिपुरारी (त्रिपुरासुर का वध करने वाला) नामक एक तेज़ीदार त्रिशूल ब्रह्मास्त्र बनाया। भगवान शिव ने त्रिपुरारी तेज़ त्रिशूल के माध्यम से त्रिपुरासुर को मार दिया और तीनों नगरों को नष्ट कर दिया। इस प्रक्रिया में भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में पुकारा जाने लगा।यह कथा त्रिपुरासुर के वध और देवताओं की रक्षा के माध्यम से भगवान शिव की महानता और शक्ति का प्रतीक है। त्रिपुरारी नाम भगवान शिव की महिमा और उनके दिव्य शक्ति को संकेतित करता है।

ब्रह्माजी ने दिया था ये अनोखा वरदान

शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

मयदानव ने किया था त्रिपुरों का निर्माण

ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।

अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

ऐसे हुआ त्रिपुरों का नाश

चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।
अतिरिक्त रूप से, 'त्रिपुरारी' शब्द का दूसरा अर्थ भी होता है। इसका अर्थ होता है 'तीन नगरों के स्वामी' या 'तीन नगरों का धारक'। यह तीन नगरों की संक्षिप्त रूप में प्रतिष्ठित होता है, जिन्हें त्रिपुरासुर ने अपने शक्तिशाली वर के प्रभाव से बनाए थे।

 इन तीन नगरों का नाम हैं:

1. त्रिपुरा: यह नगर भूलोक (भूमि) के नाम से जाना जाता है।
2. त्रिपुरस: यह नगर अंतरिक्ष (स्वर्ग) के नाम से जाना जाता है।
3. त्रिपुरत: यह नगर पाताल (पाताल लोक) के नाम से जाना जाता है।
त्रिपुरासुर ने इन तीन नगरों की शक्ति का उपयोग करके देवताओं का अत्याचार किया था। इस प्रकार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर को नष्ट करके तीनों नगरों की रक्षा की और उन्हें त्रिपुरारी के रूप में पुकारा जाता है।

नीचे दिए गए हैं 'त्रिपुरारी' के बारे में 20 महत्वपूर्ण तथ्य:

1. 'त्रिपुरारी' शब्द संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'त्रिपुरासुर को नष्ट करने वाला'।
2. भगवान शिव को 'त्रिपुरारी' कहलाने का प्रमुख कारण है उनके त्रिपुरासुर के वध के कार्य में प्रमुख योगदान।
3. त्रिपुरासुर ने अपनी अद्भुत शक्ति के बल पर तीन नगरों की सृष्टि की थी। इन नगरों के नाम हैं: त्रिपुरा, त्रिपुरस, और त्रिपुरत।
4. त्रिपुरारी नाम भगवान शिव के महानता, शक्ति, और प्रभुत्व को दर्शाता है।
5. त्रिपुरारी नाम शिव पूजा में अधिक उपयोग होता है और भक्तों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
6. त्रिपुरारी शब्द का उपयोग शिव त्रिदेव की महिमा और शक्ति को गान करने के लिए किया जाता है।
7. त्रिपुरारी एक प्रमुख नाम है जिसे शिवभक्त और शिवानुयायी अधिकांशतः पसंद करते हैं।
8. त्रिपुरारी शब्द के द्वारा भगवान शिव की प्रभावशाली शक्तियों को दर्शाने का प्रयास किया जाता है।
9. त्रिपुरारी शब्द भगवान शिव के जीवन, तपस्या, और अद्भुत शक्तियों को सार्थकता देता है।
10. त्रिपुरारी नाम शिव जी के नामों में से एक है जो उनकी महानता को दर्शाता है।
11. 'त्रिपुरारी त्रिशूल' भगवान शिव की प्रमुख पहचानों में से एक है, जो उनकी शक्ति, संहार और सृष्टि का प्रतीक है।
12. भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम से पुकारने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और दुःखों का नाश होता है।
13. त्रिपुरारी शब्द भगवान शिव के अद्भुत लीलाओं, शक्तिशाली वरदानों और महादेवी पार्वती के साथ उनके सम्बन्ध को दर्शाता है।
14. त्रिपुरारी नाम शिव पूजा और ध्यान के लिए उपयोगी है और उनके भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति देने का ध्यान दिलाता है।
15. त्रिपुरारी नाम भगवान शिव की शक्तिशाली विनाशकारी रूप को प्रतिष्ठित करता है।
16. त्रिपुरारी नाम शिव के संसार में धर्म, न्याय, और न्याय की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी प्रयोग होता है।
17. त्रिपुरारी शब्द का प्रयोग भक्तिभाव से भगवान शिव की आराधना और भजन में किया जाता है।
18. त्रिपुरारी शब्द के माध्यम से शिवभक्तों को शक्ति, समृद्धि, और आनंद की अनुभूति होती है।
19. 'त्रिपुरारी' नाम शिव भक्ति के साथ-साथ संसार की माया से मुक्ति की दिशा में भी प्रेरित करता है।
20. त्रिपुरारी नाम शिव की महानता, दया, और प्रेम को दर्शाता है और उनके भक्तों को सत्य और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है।
ये थे कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जो 'त्रिपुरारी' के बारे में ज्ञात हैं। इस नाम का प्रयोग शिव भक्ति, पूजा, और आराधना में भक्तों द्वारा किया जाता है।

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