भगवान शिव के प्रमुख 7 पुत्रों के बारे में /About the main 7 sons of Lord Shiva

  भगवान शिव के प्रमुख 7 पुत्रों के बारे में ;-

 शिव ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की कन्या सती से विवाह किया था, लेकिन सती तो दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर भस्म हो गई थी। उनका तो कोई पुत्र या पुत्री नहीं थी। तब कैसे जन्मे शिव के पुत्र?
सती के आत्मदाह करने के बाद सती ने अपने दूसरे जन्म में पर्वतराज हिमालय के यहां उमा के रूप में जन्म लिया यह उमा ही बाद में पार्वती के नाम से विख्‍यात हुईं। सती या उमा ही मां दुर्गा के रूप हैं।
शिव और पार्वती के ‍मिलन के बाद शिवजी का गृहस्थ जीवन शुरू हुआ और उनके जीवन में अनेक प्रकार ‍की घटनाओं की शुरुआत हुई। पार्वती के साथ रहते हुए शिवजी के कई पुत्र हुए। उनमें ही प्रमुख 7 पुत्रों के बारे में 

उनमें ही प्रमुख 7 पुत्रों के बारे में जानिए-

1.गणेश:- पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। इन गणेश की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के उबटन मिश्रण से की थी।
गणेश 
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार माता पार्वती स्नान करने जाने वाली थी, लेकिन द्वार पर पहरा देने के लिए कोई नहीं था तो उन्होंने चन्दन के मिश्रण से बालक की उत्पत्ति की और द्वार पर पहरा देने के लिए कहा, इसी बीच जब भगवान शंकर वहां आये तो बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया. क्रोधित होकर शिव जी ने बालक का मस्तक धड़ से अलग कर दिया. ये बात जब माता पार्वती को पता लगी तो वे क्रोधित हो गई और उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने एक हाथी का सिर बालक के धड़ पर जोड़ दिया इस प्रकार भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई.
2.कार्तिकेय:- कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
कार्तिकेय
शिवपुराण में एक प्रसंग के अनुसार माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव ने कठोर तपस्या शुरू कर दी. उस समय पृथ्वी पर राक्षस तारकासुर का अत्याचार बढ़ने लगा था तारकासुर के अत्याचारों से परेशान देवता ब्रह्मा जी के पास गए और तारकासुर से मुक्ति के बारे में पूछा. ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र, तारकासुर का अंत करेगा. इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ और प्रथम पुत्र के रूप में भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ और राक्षस तारकासुर का अंत हुआ.
 
3.सुकेश- शिव का एक तीसरा पुत्र था जिसका नाम था सुकेश। दो राक्षस भाई थे- 'हेति' और 'प्रहेति'। प्रहेति धर्मात्मा हो गया और हेति ने राजपाट संभालकर अपने साम्राज्य विस्तार हेतु 'काल' की पुत्री 'भया' से विवाह किया। भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। विद्युत्केश का विवाह संध्या की पुत्री 'सालकटंकटा' से हुआ। माना जाता है कि 'सालकटंकटा' व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की। इसका नाम उन्होंने सुकेश रखा। इस सुकेश से ही राक्षसों का कुल चला।
सुकेश
भगवान शिव और माता पार्वती के तीसरे पुत्र हैं सुकेश. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि राक्षस राज हैती का विवाह भया नामक युवती से हुआ. इन दोनों से विद्युतकेश नाम का पुत्र प्राप्त हुआ. विद्युतकेश ने संध्या की पुत्री संदकंटका से विवाह किया लेकिन संदकंटका बुरी स्त्री थी. इसी वजह से जब उनके पुत्र का जन्म हुआ तो उन्होंने उसे संसार में बेघर छोड़ दिया. भगवान शिव और माता पार्वती ने बलाक की रक्षा की और उन्हें अपना पुत्र बनाया.
 
4.जलंधर :- शिवजी का एक चौथा पुत्र था जिसका नाम था जलंधर। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई थी। तब विष्णु ने वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित कर दिया। वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।
जालंधर
भागवत पुराण के अनुसार भगवान शिव ने एक बार अपना तीसरा नेत्र समुद्र में फेंक दिया और उससे जालंधर की उत्पत्ति हुई. जालंधर भगवान शिव से नफरत करता था. एक बार जालंधर ने माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के लिए भगवान शंकर से युद्ध शुरू किया, लेकिन इस युद्ध में जालंधर मारा गया.
 
5.अयप्पा :- भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है। भारतीय राज्य केरल में शबरीमलई में अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां विश्‍वभर से लोग शिव के इस पुत्र के मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं।
अयप्पा
भगवान अयप्पा को शिव के चौथे पुत्र के रूप में जाना जाता है. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर शिव मोहित हो गए. मोहिनी और शिव के मिलन से भगवान अयप्पा का जन्म हुआ.
 
6.भूमा :- एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाये बैठे थे, उस समय उनके ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसके चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था। इस पुत्र को पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया।
भौमा;. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि एक बार भगवान शिव का पसीना जमीन पर गिरा और इसी पसीने से पृथ्वी को एक पुत्र प्राप्त हुआ. इस पुत्र की चार भुजाएं थी और यह रक्त के रंग का था. पृथ्वी ने इस पुत्र का पालन पोषण किया पृथ्वी के पुत्र होने के कारण वे भौमा कहलाये.
7.अंधक;-पुराणों में भगवान शिव के सातवें पुत्र के बारे में उल्लेख मिलता है कि एक बार माता पार्वती ने पीछे से आकर भगवान शिव की आंखें बंद कर ली इससे पूरी दुनिया में अंधेरा छा गया, फिर भगवान शिव ने अन्धकार दूर करने के लिए अपनी तीसरी आंख खोली, तीसरे नेत्र के प्रकाश से माता पार्वती को पसीना आ गया और उनके पसीने की बूंदों से एक पुत्र का जन्म हुआ. यह पुत्र अंधेरे में पैदा हुआ था इसलिए इसका नाम अंधक पड़ा. यह बालक जन्म से अंधा था.

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