विश्‍व के सबसे बड़े विष्‍णु मंदिर अंकोरवाट के बारे में /About Angkor Wat, the world's largest Vishnu temple

 विश्‍व के सबसे बड़े विष्‍णु मंदिर अंकोरवाट के बारे में

 अंकोरवाट मन्दिर कम्बोडिया में स्थित है और यह वास्तविक रूप से एक विशालकाय और प्रमुख धार्मिक स्मारक है। यह विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल है और 1992 में यूनेस्को द्वारा एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त की गई।
अंकोरवाट में हिन्दू धर्म के मंदिर स्थित हैं, जिन्हें प्राचीन काल में कम्बोडिया के खमेर साम्राज्य के राजाओं ने बनवाया था। इस परिसर में विशेष रूप से अंकोरवाट मुख्य मंदिर (Angkor Wat Temple) अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर खमेर स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का उदाहरण माना जाता है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।
मंदिर परिसर का आकार बड़ा है और उसमें भव्य मंदिर, प्रवेश द्वार, सम्राटों के मार्गदर्शक पथ, स्मारकों, तालाबों और पार्कों का समावेश है। इसे भारतीय वास्तुकला के माध्यम से निर्मित किया गया है और इसकी संरचना में खमेर स्थापत्य कला के प्रमुख तत्वों का प्रयोग किया गया है।
अंकोरवाट मन्दिर का इतिहास, सांस्कृतिक महत्व और भव्यता ने इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बना दिया है, और यह कम्बोडिया का एक प्रमुख पहचान है।

अंकोरवाट कंबोडिया में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जो करीब 162.6 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य में भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। सनातन धर्म को मानने वाले इसे अपना पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।

मंदिर का वैभवशाली स्‍वरूप

अंकोरवाट मन्दिर का स्वरूप विशालकाय और वैभवशाली है। यह खमेर स्थापत्य कला की एक उत्कृष्ट उदाहरण है और उसकी वैश्विक महत्ता है। मंदिर परिसर 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) के आकार को मापता है और इसमें विभिन्न विशाल मंदिर, प्रवेश द्वार, शिखर, खमेर शैली की स्तूप, और पार्क शामिल हैं।
अंकोरवाट मुख्य मंदिर (Angkor Wat Temple) विशेष रूप से प्रसिद्ध है और विश्व भर में प्रसिद्ध भव्यतावादी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह मंदिर मुख्य गोपुरम (प्रमुख प्रवेश द्वार) के साथ एक विशाल मंदिर स्थल है जिसकी ऊँचाई 213 मीटर (699 फीट) है। इसके अंदर संकल्प मंदिर, विभिन्न कक्षाएं, मूर्तियाँ और पूजा स्थल स्थित हैं।
मंदिर की विशेषताएं उसके विस्तृत खमेर आकृति की स्तूप, खमेर शैली में बने ग्रंथगण, विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, और धार्मिक कथाएं के संकेतों के रूप में दिखाई देती हैं। मंदिर की मार्मिकता, विशालता, और विकासशील निर्माण तकनीक ने इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्मारक बनाया है।
अंकोरवाट के मंदिर परिसर में भ्रमण करने पर आप इसके वैभवशाली और सुंदरता से प्रभावित होंगे। यह स्थल भारतीय और खमेर संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीकों का प्रदर्शन करता है और एक अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करता है।

अंकोरवाट के कुछ प्रभावी शिला चित्रों के बारे में 

1. अंकोरवाट मुख्य मंदिर (Angkor Wat Temple): यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर का मुख्य गोपुरम (प्रमुख प्रवेश द्वार) विशेष रूप से प्रभावी है। इस विशाल गोपुरम का शिलाकृत अभिन्न भूखण्ड (शिलापट्ट) और देवताओं की मूर्तियाँ अंकोरवाट के महत्त्वपूर्ण संकेतों में से हैं।
2. बयॉन मंदिर (Bayon Temple): यह मंदिर अंकोरवाट के परिसर में स्थित है और अपने प्रभावी चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर प्रमुखतः खमेर चौखंबा (चरणाबज) और मुस्कानदार मुख की मूर्तियों के लिए पहचाना जाता है। इसमें अनेक मंदिर की शिलाकृत दीवारों पर उकेरे गए व्यापक चित्र देखे जा सकते हैं।
3. ताप्रोहन मंदिर (Ta Prohm Temple): यह मंदिर जंगली पेड़-पौधों की घने झाड़ियों और जड़ी-बूटियों के साथ प्रसिद्ध है। यहां पर काफी पुरानी दीवारें हैं, जिन पर वृक्षों के बांधे हुए जड़ लपेटे हुए हैं। इसका प्रभावी दृश्य उसे अंकोरवाट के खासतौर पर मशहूर बनाता है।
 केवल कुछ उदाहरण हैं और अंकोरवाट के परिसर में और भी कई मंदिर और शिला चित्र हैं। यहां के मंदिर में खमेर स्थापत्य कला के बहुत सुंदर और प्रभावशाली शिलापट्ट देखने को मिलते हैं, जो कार्यकारी दस्तावेज़ीकरण, धार्मिक साहित्य, और प्राकृतिक तत्वों की विस्तृतता को दर्शाते हैं।
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारम्भ किया परन्तु वे इसे पूर्ण नहीं कर सके। मंदिर का कार्य उनके भानजे एवं उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में सम्पूर्ण हुआ। मिश्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दिवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौड़ी खाई है। विद्वानों के अनुसार यह चोल वंश के मन्दिरों से मिलता जुलता है। दक्षिण पश्चिम में स्थित ग्रन्थालय के साथ ही इस मंदिर में तीन वीथियां हैं जिसमें अन्दर वाली अधिक ऊंचाई पर हैं। मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्‍वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहां के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की श्रंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। एक और शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, बाली और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं।

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