कुछ प्रसिद्ध शनि देव स्तोत्रों का एक संक्षेपित संग्रह / A condensed collection of some famous Shani Dev stotras

कुछ प्रसिद्ध शनि देव स्तोत्रों का एक संक्षेपित संग्रह 

शनि देव स्तोत्र कई भाषाओं में हैं और विभिन्न संस्कृत श्लोकों का समावेश करते हैं, जो शनि देव की महिमा और कृपा का गुणगान करते हैं। नीचे कुछ प्रसिद्ध शनि देव स्तोत्रों का एक संक्षेपित संग्रह दिया गया है:
1. शनि चालीसा:
नमो नमः श्री सुरेश्वराय सौरायांत्रगताय च।
निवृत्तायांतकृतघोराय नीलांबराय च॥
त्र्यम्बकाय त्रिगुणात्मकाय त्रिगुणातिताय च।
त्रिकाग्निकालाय धन्वन्तरयादित्यवर्चसे॥
धौम्याय नमः ककोलाय हंसायादित्यपादिकाय च।
शान्ताय शान्तिदायाय श्रीनिधये तपसे नमः॥


2. शनि महामंत्र:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥
3. श्री शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्:
अनेतानेताय नमः, सौराय नमः, नीलांबराय नमः।
शीताय नमः, कलांकितश्रीवत्सलाय नमः॥
चित्राय नमः, विश्वरूपाय विश्वकर्मार्चिताय नमः।
उद्वेगाय नमः, निशाचरप्रियाय नमः॥
ये श्लोक शनि देव को समर्पित हैं और उनके भक्तों द्वारा प्रातः संध्या काल और शनिवार के दिन उनके पूजन के समय सुनाए जाते हैं। शनि देव को शुभता, समृद्धि, और नष्ट ग्रहों के उपाय करने के लिए श्रद्धा भक्ति से याद किया जाता है।

शनि देव स्तोत्र के अर्थ को इस प्रकार समझा जा सकता है:

1. नमो नमः श्री सुरेश्वराय सौरायांत्रगताय च।
नमस्कार उन श्री सुरेश्वर शनि देवता को, जो सौरमंडल के अन्तर्गत विचरते हैं।
2. निवृत्तायांतकृतघोराय नीलांबराय च॥
जो दुर्वास्ता और कठिनाईयों को समाप्त करते हैं, और नीलांबर (नीले वस्त्रधारी) हैं।
3. त्र्यम्बकाय त्रिगुणात्मकाय त्रिगुणातिताय च।
तीन नेत्र वाले (त्र्यम्बक) हैं, त्रिगुणों के स्वामी हैं और तीन गुणों से अतीत हैं।
4. त्रिकाग्निकालाय धन्वन्तरयादित्यवर्चसे॥
त्रिकाग्नि का स्वामी हैं, धन्वंतरि रूप हैं और आदित्य (सूर्य) की तेजस्वी किरणों से परिपूर्ण हैं।
5. धौम्याय नमः ककोलाय हंसायादित्यपादिकाय च।
धौम्य (धूलिचर) हैं, ककोल (कुकुर) हैं, हंस के आदित्यपुत्र (सूर्यपुत्र) हैं।
6. शान्ताय शान्तिदायाय श्रीनिधये तपसे नमः॥
शान्ति प्रदायक हैं, श्रीनिधि (धन के स्वामी) हैं, और तपस्या (तपस्वियों को) नमस्कार करते हैं।
यह स्तोत्र शनि देव के गुणों का बखान करता है और उनके दयालु स्वरूप का वर्णन करता है। इसे पढ़ने से शनि देवता की कृपा प्राप्ति, अशुभ ग्रहों के दोषों का निवारण और धन, स्वास्थ्य, और शांति की प्राप्ति में सहायता मिलती है। भक्ति भाव से इस स्तोत्र का जाप करने से शनि देव व्यक्ति को उनके समृद्धि और समस्या मुक्त जीवन के मार्ग में मदद करते हैं।

शनि महामंत्र "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः" है। इस मंत्र का अर्थ निम्नलिखित है:

- ॐ: यह ब्रह्मांड की प्रारंभिक ध्वनि को दर्शाता है, और इसे आत्मा और परमात्मा के संबंध को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि "ॐ" का शब्द विशेष ध्यान देना चाहिए।
- प्रां: यह एक विशेष बीजाक्षर है, जिसका शनि देवता से संबंध होता है। इस बीजाक्षर का उच्चारण शनि की उपासना को सकारात्मक बनाता है और उनसे कृपा के बिंदु को आकर्षित करता है।
- प्रीं: यह एक और बीजाक्षर है, जो शनि के साथ उनके दयालु स्वरूप को दर्शाने में मदद करता है। इसके जाप से भक्त को शनि देव की कृपा मिलती है और अशुभ ग्रहों के दोषों का निवारण होता है।
- प्रौं: यह भी एक बीजाक्षर है, जो शनि की शक्ति को प्रतिनिधित्व करता है। इस बीजाक्षर का जाप करने से भक्त को शक्ति, स्थिरता और समृद्धि का अनुभव होता है।
- सः: यह शनि को संकेत करता है, और इसके जरिए भक्त शनि देवता को नमस्कार करता है।
यह मंत्र शनि देवता की उपासना में उपयोग किया जाता है। भक्त इस मंत्र का जाप करके शनि देव की कृपा प्राप्त करते हैं और उनके दोषों का निवारण होता है, जिससे उनके जीवन में समृद्धि, स्थिरता, और शांति का अनुभव होता है।

श्री शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं, जिसका अर्थ निम्नलिखित है, 

शनि देवता के 108 नामों का समर्थन करता है और उनके गुणों और महत्व का वर्णन करता है:
1. अनेतानेताय नमः: शनि देवता जो अनियंत्रित और नियंत्रित हैं।
2. सौराय नमः: वे सौरमंडल के सम्बंध में हैं या उन्हें प्रभावित करते हैं।
3. नीलांबराय नमः: वे नीले वस्त्रधारी हैं और उनके रंग का नीला होता है।
4. शीताय नमः: वे शीतलता युक्त हैं और उनका प्रकोप शीत गुण से है।
5. कलांकितश्रीवत्सलाय नमः: वे भगवान विष्णु के श्रीवत्सल संबंधी शिंशुक चिह्नित हैं।
6. चित्राय नमः: वे चित्रा नक्षत्र के देवता हैं और उनकी सुंदरता चमत्कारिक है।
7. विश्वरूपाय नमः: वे विश्वरूप (विश्व के समस्त रूपों से युक्त) हैं।
8. विश्वकर्मार्चिताय नमः: वे विश्वकर्मा देवता द्वारा पूजित हैं और उन्हें स्वयं विश्वकर्मा कहते हैं।
9. उद्वेगाय नमः: वे उद्वेग (चिंता, परेशानी) का कारण हैं या उन्हें दूर करने वाले हैं।
10. निशाचरप्रियाय नमः: वे निशाचरों (राक्षसों) के प्रिय हैं या उनसे प्रियता रखते हैं।
इसी तरह, श्री शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् में और भी अनेक नामों का वर्णन होता है जो शनि देवता के विभिन्न गुणों, स्वरूप, और सामर्थ्य को प्रकट करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्ति भाव से किया जाता है और शनि देवता की कृपा के लिए उनकी आराधना किया जाता है। यह भक्तों को अशुभ ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है और समृद्धि, सुख, और शांति की प्राप्ति का मार्ग प्रदर्शित करता है।

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