उत्तर मुखी हनुमान जी का एक प्रसिद्ध कथा -A famous story of North faced Hanuman ji

उत्तर मुखी हनुमान जी का एक प्रसिद्ध कथा 

जो हनुमानाष्टक  में वर्णित है

कहत है ज्ञान विज्ञान को, रामकथा अध्यात्म सब ग्रंथों को।
यज्ञ में श्रुति गीता वेद, पुराणानां तथा सभी विधि विधान को।।

उत्तरामुखी हनुमान जी- उत्तर दिशा की तरफ मुख वाले हनुमान जी की पूजा शूकर के रूप में होती है। एक बात और वह यह कि उत्तर दिशा यानी ईशान कोण देवताओं की दिश होती है। यानी शुभ और मंगलकारी। इस दिशा में स्थापित बजरंगबली की पूजा से इंसान की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इस ओर मुख किए भगवान की पूजा आपको धन-दौलत,ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु के साथ ही रोग मुक्त बनाती है।

॥ हनुमानाष्टक ॥

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥

इस हनुमानाष्टक में, भगवान हनुमान की वीरता, भक्ति, और भक्तों के प्रति कृपा का वर्णन किया गया है। उत्तर मुखी हनुमान जी की कथा में उनके प्रभु राम के भक्ति और सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका है। भक्तों के संकटों को दूर करने, सुख-दुख के समय साथ खड़े होने, और सभी धर्मार्थ के कार्यों में सहायता करने में हनुमान जी विशेष महत्वपूर्ण हैं। उनके भजन और स्मरण से भक्तों को आत्मानंद और शांति की प्राप्ति होती है।

 उत्तर मुखी हनुमान जी की कुछ मुख्य विशेषताएँ

  1. चालीसा में वर्णित: उत्तर मुखी हनुमान जी की विशेषता हनुमान चालीसा में वर्णित है। चालीसा के अंतर्गत एक श्लोक में कहा गया है, "जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥ उत्तर मुखि समरे तजि दशकंधरे। बंधूँ मारे नासै रोग हरे॥" यहां उत्तर मुखी हनुमान जी को उनके वीरता और चमत्कारी शक्तियों के लिए स्तुति किया गया है।
  2. देवी सीता के साथ युद्ध: उत्तर मुखी हनुमान जी के रूप में, हनुमान जी ने लंका में देवी सीता के साथ युद्ध किया था। देवी सीता को अशोक वन से बाहर लाने का दुर्लभ काम उन्होंने उत्तर मुखी रूप में किया था।
  3. आदित्यवार व्रत: उत्तर मुखी हनुमान जी का विशेष व्रत आदित्यवार (रविवार) को किया जाता है। इस दिन उनके भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें विशेष भोग और आरती चढ़ाते हैं।
  4. युद्ध में प्रदर्शन: उत्तर मुखी हनुमान जी युद्ध में वीरता और साहस के प्रतीक हैं। उन्होंने देवी सीता को लंका से उधार करने में अपनी वीरता और सेवा भाव का प्रदर्शन किया था।
  5. सद्भावना: उत्तर मुखी हनुमान जी भक्तों की सद्भावना को प्रदर्शित करते हैं और उनके दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  6. स्थानीय प्रसिद्धि: उत्तर मुखी हनुमान जी के मंदिर विभिन्न भारतीय राज्यों में प्रसिद्ध हैं। विशेष रूप से वराणसी (काशी) में उनके मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं।
  7. वीरता और साहस: उत्तर मुखी हनुमान जी युद्ध में अपनी वीरता और साहस के कारण प्रसिद्ध हैं।
  8. सुंदरकांड में प्रस्तुति: उत्तर मुखी हनुमान जी को "सुंदरकांड" अध्याय में भी वर्णित किया गया है।
  9. देवी सीता के साथ युद्ध: उत्तर मुखी हनुमान जी के रूप में, हनुमान जी ने लंका में देवी सीता के साथ युद्ध किया था। देवी सीता को अशोक वन से बाहर लाने का दुर्लभ काम उन्होंने उत्तर मुखी रूप में किया था।
  10. सद्भावना: उत्तर मुखी हनुमान जी भक्तों की सद्भावना को प्रदर्शित करते हैं और उनके दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  11. आदित्यवार व्रत: उत्तर मुखी हनुमान जी का विशेष व्रत आदित्यवार (रविवार) को किया जाता है। इस दिन उनके भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें विशेष भोग और आरती चढ़ाते हैं। उत्तर मुखी हनुमान जी की कुछ विशेषताएँ। उनके भजन और पूजा से भक्ति भाव से भर जाने में हमें आनंद मिलता है और हमारी दिनचर्या में उन्हें शामिल करने से हमारे जीवन में आनंद और शांति की प्राप्ति होती है।

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