शनि देव भगवान की चालीसा हिंदी में निम्नलिखित है / Following is the Chalisa of Lord Shani Dev in Hindi

शनि देव भगवान की चालीसा हिंदी में निम्नलिखित है

जय शनि देव दयालु, सदा करे संकटों का नाश।
जय हो, दयालु शनि देव! आप हमेशा हमारे संकटों का नाश करें।
मंगल करन की सेवा, सबकी करे मंगलाश।
आप सभी की मंगल की सेवा करें, सभी को मंगल दें।
॥दोहा॥
नीलांजन समाभासम, रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम॥।
॥चालीसा॥
॥विघ्नहरण मंगलकरण, जय जय शनि देव॥
विघ्नों का नाश करने वाले, मंगल करने वाले, जय हो शनि देव!
सौराष्ट्रे संस्थितं तोयम्, यमाग्राजं प्रणमाम्यहम्।
तम नमामि यम सुतं, शनैश्चरम्॥१॥
सौराष्ट्र नामक नगर में स्थित होने वाले, यमराज के भगवान शनि को नमस्कार करता हूँ। आप ही यमराज के पुत्र शनैश्चर हैं।
कन्याकुब्जे मध्ये तोयम्, भानुपुत्रं प्रणमाम्यहम्।
तम नमामि रवि पुत्रं, शनैश्चरम्॥२॥
कन्याकुब्जा नगर में स्थित होने वाले, भानुपुत्र शनि को नमस्कार करता हूँ। आप ही रवि के पुत्र शनैश्चर हैं।
मन्दाकिनि महादेवी, मणिपूरे मंगलं तथा।
तम नमामि सुरेश्वर, शनैश्चरम्॥३॥
मन्दाकिनी नदी के किनारे स्थित, मणिपुर नामक नगर में रहने वाली, सुरेश्वर शनि को नमस्कार करता हूँ।
हिमाचले महाबोधि, कश्मीरे तु कम्बरके।
तम नमामि शचीपुत्रं, शनैश्चरम्॥४॥
हिमाचल प्रदेश में स्थित महाबोधि पर्वत के नीचे और कश्मीर के नगर कम्बरक में रहने वाले, शचीपुत्र शनि को नमस्कार करता हूँ।
शन्या यामि रणे चित्रे, श्रियां वासं च रोगहृत्।
तम नमामि वरारोह, शनैश्चरम्॥५॥
शनिदेव को शनिवार के दिन रणभूमि में और श्रीयां नगर में, रोगों के नाश करने वाले, वाहन शनैश्चर को नमस्कार करता हूँ।
धनुर्बाणे च विक्रान्ते, सैन्यपाशे च वाहने।
शनैश्चर करे धर्म, शुभदं धान्यमेव च॥६॥
धनुष और बाण को धारण करने वाले, विक्रांति पुर्वक चलने वाले, सैन्यपाश वाहन पर बैठे हुए, धर्म की रक्षा करने वाले, शुभदान और धान्य की वृद्धि करने वाले, वाहन शनैश्चर को नमस्कार करता हूँ।
बृहस्पते वृषा रूढः, पञ्चमे चांगुली स्थिते।
तम नमामि वरारोह, शनैश्चरम्॥७॥
बृहस्पति के वाहन गाय पर सवार, पंचम नगर में स्थित होने वाले, वाहन शनैश्चर को नमस्कार करता हूँ।
नीलांजन समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥८॥
नीलांजन के समान प्रकाशमान, रवि के पुत्र, यमराज के भगवान शनि को नमस्कार करता हूँ। आप छाया (ग्रह) और मार्तण्ड (सूर्य) के द्वारा प्रकट हुए हैं।
वदानार्थं सुरासुराः, स्थावराः चराचराः नृपाः।
संततं शिरसा नमन्ति, शनैश्चरमुपासते॥९॥
सुर, असुर, स्थावर और चराचर सभी राजा आपके दर्शन के लिए सदा शिरस्से नमस्कार करते हैं और आपकी उपासना करते हैं।
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः, शूद्रा वन्ध्याः पुरेतराः।
स्त्रियो वर्णाश्रमाः सर्वे, शनैश्चरमुपासते॥१०॥
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, वन्ध्य और अन्य सभी वर्ण और आश्रम की स्त्रियाँ सभी शनैश्चर की उपासना करती हैं।
विद्यार्थिनः सर्वे लोके, दारिद्र्याः नाशमाप्नुयुः।
पुत्रपौत्रादि सम्पन्ना, धन धान्यसमन्विताः॥११॥
समस्त लोक में विद्यार्थी, दारिद्र्य का नाश प्राप्त करते हैं। उन्हें पुत्र-पौत्रादि समृद्धि, धन और धान्य सम्पन्नता प्राप्त होती है।
अर्धसूर्यादि सङ्काशं, त्रिनेत्रं रविभास्करम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥१२॥
अर्धसूर्य के समान प्रकाशमान, त्रिनेत्र और रवि भास्कर (सूर्य) के पुत्र, छाया और मार्तण्ड से प्रकट होने वाले शनि को नमस्कार करता हूँ
अस्य श्रीशनैश्चर स्तोत्रस्य भगवान् महादेवः।
छन्दः क्रौं उष्णिक् बीजं, सकारात्मकं शक्तिकम्।
क्रौञ्चः कीलकमित्यादि देवता।
शं बीजं, प्रें शक्तिः, क्रौं कीलकम्, इति बीजम्॥
यह श्रीशनैश्चर स्तोत्र महादेव द्वारा रचित है। इसका छन्द ऋषि क्रौञ्च है, बीज क्रौं है, शक्ति प्रें है और कीलक (विन्हु) अनुस्वार है।
शनिदेव के चालीसा के द्वारा उनकी आराधना करने से समस्त भक्तों को संकटों के नाश, मंगलकारी भावना, सुख, समृद्धि, और ज्ञान-विद्या की प्राप्ति होती है। इसलिए भगवान शनि के चालीसा का नियमित पाठ करना उनकी कृपा को प्राप्त करने में सहायक होता है।

शनिदेव भगवान का चालीसा हिंदी भाषा में निम्नलिखित रूप में है:

जय शनि देव दयालु, सदा करे संकटों का नाश।
मंगल करन की सेवा, सबकी करे मंगलाश॥
॥दोहा॥
नीलांजन समाभासम, रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम॥।
॥चालीसा॥
॥विघ्नहरण मंगलकरण, जय जय शनि देव॥
सौराष्ट्रे संस्थितं तोयम्, यमाग्राजं प्रणमाम्यहम्।
तम नमामि यम सुतं, शनैश्चरम्॥१॥
कन्याकुब्जे मध्ये तोयम्, भानुपुत्रं प्रणमाम्यहम्।
तम नमामि रवि पुत्रं, शनैश्चरम्॥२॥
मन्दाकिनि महादेवी, मणिपूरे मंगलं तथा।
तम नमामि सुरेश्वर, शनैश्चरम्॥३॥
हिमाचले महाबोधि, कश्मीरे तु कम्बरके।
तम नमामि शचीपुत्रं, शनैश्चरम्॥४॥
शन्या यामि रणे चित्रे, श्रियां वासं च रोगहृत्।
तम नमामि वरारोह, शनैश्चरम्॥५॥
धनुर्बाणे च विक्रान्ते, सैन्यपाशे च वाहने।
शनैश्चर करे धर्म, शुभदं धान्यमेव च॥६॥
बृहस्पते वृषा रूढः, पञ्चमे चांगुली स्थिते।
तम नमामि वरारोह, शनैश्चरम्॥७॥
नीलांजन समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥८॥
वदानार्थं सुरासुराः, स्थावराः चराचराः नृपाः।
संततं शिरसा नमन्ति, शनैश्चरमुपासते॥९॥
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः, शूद्रा वन्ध्याः पुरेतराः।
स्त्रियो वर्णाश्रमाः सर्वे, शनैश्चरमुपासते॥१०॥
विद्यार्थिनः सर्वे लोके, दारिद्र्याः नाशमाप्नुयुः।
पुत्रपौत्रादि सम्पन्ना, धन धान्यसमन्विताः॥११॥
अर्धसूर्यादि सङ्काशं, त्रिनेत्रं रविभास्करम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥१२॥
अस्य श्रीशनैश्चर स्तोत्रस्य भगवान् महादेवः।
छन्दः क्रौं उष्णिक् बीजं, सकारात्मकं शक्तिकम्।
क्रौञ्चः कीलकमित्यादि देवता।
शं बीजं, प्रें शक्तिः, क्रौं कीलकम्, इति बीजम्

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