रावण की शिव भक्ति के बारे में जानिए
रावण को हिंदू परंपरा में भगवान शिव का भक्त माना जाता है। रावण एक विद्यावान और बहुत ही बड़े तपस्वी थे। वे अपनी उच्च तापस्या के बाद भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहे थे। उन्होंने संसार की सभी ओर विजय प्राप्त करने की इच्छा रखी थी और इसके लिए उन्होंने बहुत सारे वरदान भी मांगे थे।विभिन्न पुराणों और कथाओं में बताया जाता है कि रावण को भगवान शिव ने उनकी तपस्या की महत्त्वाकांक्षा को देखकर वरदान दिया था। भगवान शिव ने उन्हें अजेय शक्ति और अमरत्व का वरदान दिया था। यह वरदान रावण की बल प्राप्ति और अद्वितीय शक्तिसंपन्नता की वजह से उन्हें लंका का सम्राट बनने में मदद करता है।परंपरागत कथाओं में रावण का भगवान शिव के प्रति विशेष आदर और भक्ति का वर्णन किया गया है। रावण शिवलिंग के प्रति अत्यंत भक्ति और पूजा करते थे और अपनी राजसी शक्तियों को भगवान शिव के आदेश पर उपयोग करते थे।
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इस प्रकार, रावण को उसके भक्ति और तपस्या के कारण भगवान शिव का भक्त माना जाता है, लेकिन उनके अहंकार और दुराचारी व्यवहार ने उन्हें अपराधी बना दिया। इस तरह, रावण की कथा एक विरोधाभासी संघर्ष को दर्शाती है, जहां उनकी भक्ति और तपस्या उनके अन्तकरण में अच्छे गुणों को प्रगट करती है, परंतु उनके दुष्ट गुणों ने उन्हें नष्ट कर दिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
प्राचीन काल में एक बार रावण ने शिव शंकर की घोर तपस्या की और हवन कर अपना सिर काटकर चढ़ाने लगा। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है रावण को वरदान में 10 सिर प्राप्त थे। जब वह हवन में रावण अपना दसवां सिर चढ़ाने लगा तो शिव जी उसके समक्ष प्रकट हो गए और उसका हाथ पकड़कर उसके समस्त सिर वापिस स्थापित कर उसे वर मांगने को कहा। जिस पर रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। शिव जी ने रावण को अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह दिए और कहा कि इन्हें भूमि पर मत रखना अन्यथा ये वहीं स्थापित हो जाएंगे। लेकर रावण लंका की ओर जाने लगा, तब रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र के दौरान एक जगह उसे लघुशंका लगी तो उसने बैजु नाम के एक गड़रिये को दोनों शिवलिंग पकड़ने को कहा और हिदायत दी कि इसे किसी भी हालत में जमीन पर मत रखना।
कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी माया से उन दोनों का वजन बढ़ा दिया था, जिस कारण गड़रिये ने शिवलिंग नीचे रख दिए और वहां से चला गया था। जिस कारण दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। माना जाता है जिस मंजूषा में रावण के दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि इस के बाद रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गई और वह बहुत क्रोधित हुआ। क्रोध के आवेश में आकर उसने अपने अंगूठे से एक शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। बता दें वर्तमान समय में हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा बैजनाथ धाम में वहीं यही शिवलिंग स्थापित है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र नामक जगह पर हुआ था। कथाओं के अनुसार यहां त्रेतायुग में लंकाधिपति रावण और उसके पुत्र मेघनाद ने शिवजी की तपस्या करके अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। वर्तमान समय में यहां पर महाकालेश्वर नामक मंदिर स्थित। तो वहीं द्वापर युग में यहीं पर जयद्रथ ने भी तपस्या की थी। एक बार आकाश मार्ग से गुजरते वक्त रावण का विमान डगमगाने लगा था। नीचे शिवलिंग को देखकर रावण रुक गया और शिव जी की तपस्या की। लंबी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने प्रार्थना की कि इस घटना का कोई साक्षी नहीं होना चाहिए। कथाओं के अनुसार उस समय भगवान शिव ने नंदी से अपने से दूर किया हुआ था। यही कारण है आज भी यहां शिवलिंग की पूजा बगैर नंदी के की जाती है।
रावण के सम्बन्ध में कुछ रोचक तथ्यों
- रावण का वास्तविक नाम 'दशानन' था, क्योंकि वे दश शिरों वाले थे।
- रावण को शिव ताण्डव स्तोत्र का गायक कहा जाता है। उन्होंने शिव के समक्ष ताण्डव नृत्य करके भगवान शिव को खुश किया था।
- रावण एक प्रतिभाशाली विद्वान थे और वे नवग्रहों का विशेषज्ञ थे।
- उन्होंने धरती पर शत्रु नहीं छोड़ा था, और उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति की भी थी।
- रावण भगवान ब्रह्मा का बड़ा पराक्रमी और द्वापर युग में कलियुग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट होने वाले कलियुग के विष्णु के अवतार का भी पूर्वांग था।
- रावण के नाम से पहले उन्हें का वास्तविक नाम "दशानन" था, क्योंकि उनके दस मुख थे।
- रावण को तांबे का वजन लेकर उसे अपने दैत्य कार्यों को पूरा करने के लिए जीवनभर की भी काल्पनिक मुद्रा प्रदान की गई थी।
- रावण ने समुद्र के बादलों को भी अपने राज्य में उगाया था।
- रावण के सभी अवतारों में वह एक श्रेष्ठ वैद्य भी थे और चिकित्सा विद्या में निपुणता रखते थे।
- रावण को एक विशेष द्रुमः के नीचे तपस्या करते वक्त उन्होंने एक अजेय रथ प्राप्त किया था, जिसे प्रज्वलित रथ के नाम से भी जाना जाता है।
- रावण को अश्विनी कुमारों ने संजीवनी बूटी देकर जीवित किया था।
- रावण ने सूर्यवंशी राजा हरिष्चंद्र को बहुत ही उच्च सम्मान दिया था और उन्हें अपने समक्ष सर्वोच्च मान्यता प्रदान की थी।
- रावण को विजय प्राप्त होने पर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था, जिसके अनुसार कोई भी जीवित प्राणी उन्हें हरा नहीं सकता था, परंतु यदि कोई भी पुरुष या स्त्री उन्हें हरा देता है तो उन्हें उसे अपनी जय देनी होगी।
- रावण के अंदर विराजमान एक उच्च रचनात्मक दृष्टिकोण था, जिसके चलते वह बहुत सारी काव्य और सं
- गीत की रचनाएँ करते थे।
- रावण के वाहन का नाम 'पुष्पक विमान' था, जिसे उन्होंने वरदान के रूप में प्राप्त किया था।
- रावण को माता सीता की भक्ति में गहरा आदर था और वे सीता के बिना रहने के लिए उत्कट इच्छा रखते थे।
- रावण को भगवान ब्रह्मा द्वारा वरदान मिला था कि वह किसी भी देवता, दानव, यक्ष, नाग और मानव को मारने के लिए अपराधी नहीं होगा, लेकिन वे यह वरदान समय के साथ दुर्भाग्यशाली बना लिया।
- रावण ने कुंभकर्ण को अमरत्व का वरदान दिया था, जिसके कारण कुंभकर्ण रावण का अभिमानी और विशाल सेनापति बन गया।
- रावण को वानर सेना का विशेष मान्यता था और उन्होंने हनुमान को अपने समक्ष सर्वोच्च मान्यता दी थी।
रावण एक महान संतानकारी भी थे और उन्होंने अपने पुत्र मेघनाद (इंद्रजित) को अजेयता के वरदान से प्राप्त किया था।
ये कुछ रोचक तथ्य हैं जो रावण के बारे में ज्ञात हैं। यह दिखाते हैं कि रावण एक विशेष और परिभाषित व्यक्तित्व रखते थे जिसमें उनकी भक्ति, विद्वत्ता, राजनीतिक क्षमता और कला के क्षेत्र में प्रभावशाली योगदान शामिल थे। हालांकि, उनके दुष्ट और अहंकारी गुणों ने उन्हें उनके अन्तिम पराजय की ओर ले जाया।
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