भगवान गणेश की गजानन सिर की कहानी"
"गजानन का सिर" हिंदी भाषा में "एक हाथी जिसका सिर" का अर्थ होता है। यह वाक्य प्राचीन भारतीय साहित्य में उपयोग होता है और धार्मिक अथवा वेदांतिक अर्थों में प्रयुक्त होता है।
धार्मिक संस्कृति में, गणेश को विघ्नहर्ता, शुभकारक, ज्ञान के प्रतीक और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। वह एक सिरवाला देवता है जिसका एक हाथी की तरह सिर होता है, जिसका अर्थ "गजानन" है। इसके आलावा, गजानन का यह नाम उनके बड़े और विशालकाय स्वरूप को भी दर्शाता है।
गणेश भगवान को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है और हर नाम उनके विभिन्न गुणों और अस्तित्व के पहलुओं को दर्शाता है। "गजानन" भी एक ऐसा नाम है जो भगवान गणेश के स्वरूप को व्यक्त करता है और उनके शक्ति और महत्त्व का परिचय करता है।
धार्मिक संस्कृति में, गणेश को विघ्नहर्ता, शुभकारक, ज्ञान के प्रतीक और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। वह एक सिरवाला देवता है जिसका एक हाथी की तरह सिर होता है, जिसका अर्थ "गजानन" है। इसके आलावा, गजानन का यह नाम उनके बड़े और विशालकाय स्वरूप को भी दर्शाता है।
गणेश भगवान को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है और हर नाम उनके विभिन्न गुणों और अस्तित्व के पहलुओं को दर्शाता है। "गजानन" भी एक ऐसा नाम है जो भगवान गणेश के स्वरूप को व्यक्त करता है और उनके शक्ति और महत्त्व का परिचय करता है।
"गजानन का सिर: कथा"
हिंदी भाषा में "गजानन के सिर की कहानी" का अनुवाद है। यहां मैं आपको गणेश भगवान के गजानन स्वरूप के एक प्रसिद्ध कथा का संक्षेप में वर्णन करता हूं:
कथा:
कहते हैं, एक बार पुरातन समय में, पर्वती देवी ने गणेश को भगवान शिव के दरबार में बुलवाया। उस दिन देवी पर्वती ने विभिन्न प्रकार की सौंदर्य सामग्री से एक सुन्दर मूर्ति बनवाई थी और उसे जीवन में प्राणप्रतिष्ठा करने का संकल्प किया था।
गणेश जब देवी पर्वती के पास पहुंचे, तो देखा कि वह मूर्ति प्राणवान होने के बावजूद चल नहीं रही थी। देवी पर्वती अत्यंत विचलित हो गईं और उन्होंने गणेश से कहा, "हे पुत्र! तुम्हारी मूर्ति तो प्राणसंपन्न है, फिर भी क्यों वह जीवन नहीं आ रही है?"
गणेश ने प्राकृतिक रूप से हंसते हुए जवाब दिया, "माता, मैं तो आपके दरबार में प्रवेश करने से पहले अपने पिता भगवान शिव के आशीर्वाद के बिना कुछ नहीं कर सकता। आपकी कृपा से मैं अपने पिता के आशीर्वाद से वंचित हूं।"
गणेश के शब्दों से प्रेरित होकर, पर्वती देवी ने भगवान शिव को आवाहन किया और बताया कि उनकी पुत्री मूर्ति जीवनहीन है। शिव ने अपने पुत्र को प्यार से देखा और उन्हें जीवनदान देने का संकल्प किया।
भगवान शिव ने अपने तेजस्वी त्रिशूल से मूर्ति के शिरे पर एक चोटी मारी और उन्हें जीवन प्रदान किया। इस आश्चर्यजनक घटना से गणेश का सिर एक हाथी के सिर की भांति दिखने लगा। इसलिए उन्हें "गजानन" भी कहा लगने लगा।
गजानन के इस नए स्वरूप को देखकर पर्वती देवी अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने गणेश की मूर्ति को अपने मंदिर में स्थापित किया। इसके बाद से ही गजानन के नाम से भी गणेश को पुकारा जाने लगा। उन्हें विघ्नहर्ता के रूप में भी पूजा जाने लगा है, क्योंकि उन्हें सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की शक्ति प्राप्त है।
यह थी "गजानन का सिर" कथा का संक्षेपित वर्णन। गणेश की कई और
कथाएं भी हैं, जो उनके भक्तों को उनके महत्वपूर्ण गुणों और लीलाओं के बारे में बताती हैं।
कथा:
कहते हैं, एक बार पुरातन समय में, पर्वती देवी ने गणेश को भगवान शिव के दरबार में बुलवाया। उस दिन देवी पर्वती ने विभिन्न प्रकार की सौंदर्य सामग्री से एक सुन्दर मूर्ति बनवाई थी और उसे जीवन में प्राणप्रतिष्ठा करने का संकल्प किया था।
गणेश जब देवी पर्वती के पास पहुंचे, तो देखा कि वह मूर्ति प्राणवान होने के बावजूद चल नहीं रही थी। देवी पर्वती अत्यंत विचलित हो गईं और उन्होंने गणेश से कहा, "हे पुत्र! तुम्हारी मूर्ति तो प्राणसंपन्न है, फिर भी क्यों वह जीवन नहीं आ रही है?"
गणेश ने प्राकृतिक रूप से हंसते हुए जवाब दिया, "माता, मैं तो आपके दरबार में प्रवेश करने से पहले अपने पिता भगवान शिव के आशीर्वाद के बिना कुछ नहीं कर सकता। आपकी कृपा से मैं अपने पिता के आशीर्वाद से वंचित हूं।"
गणेश के शब्दों से प्रेरित होकर, पर्वती देवी ने भगवान शिव को आवाहन किया और बताया कि उनकी पुत्री मूर्ति जीवनहीन है। शिव ने अपने पुत्र को प्यार से देखा और उन्हें जीवनदान देने का संकल्प किया।
भगवान शिव ने अपने तेजस्वी त्रिशूल से मूर्ति के शिरे पर एक चोटी मारी और उन्हें जीवन प्रदान किया। इस आश्चर्यजनक घटना से गणेश का सिर एक हाथी के सिर की भांति दिखने लगा। इसलिए उन्हें "गजानन" भी कहा लगने लगा।
गजानन के इस नए स्वरूप को देखकर पर्वती देवी अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने गणेश की मूर्ति को अपने मंदिर में स्थापित किया। इसके बाद से ही गजानन के नाम से भी गणेश को पुकारा जाने लगा। उन्हें विघ्नहर्ता के रूप में भी पूजा जाने लगा है, क्योंकि उन्हें सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की शक्ति प्राप्त है।
यह थी "गजानन का सिर" कथा का संक्षेपित वर्णन। गणेश की कई और
कथाएं भी हैं, जो उनके भक्तों को उनके महत्वपूर्ण गुणों और लीलाओं के बारे में बताती हैं।
गणेश भगवान को पूजा के आदि में आवाहन करने के लिए विशेष मंत्र का जाप किया जाता है।
यहां गणेश भगवान का प्रसिद्ध आवाहन मंत्र है:
ॐ गं गणपतये नमः।
(ॐ गं गणपतये नमः।)
इस मंत्र का अर्थ है, "भगवान गणपति को नमस्कार।" यह मंत्र भगवान गणेश को पूजा के शुरुआती अवसर पर आवाहन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र के जाप से भगवान गणेश की कृपा मिलती है और उन्हें पूजा की यात्रा में सहायता मिलती है।
गणेश भगवान की पूजा करते समय, इस आवाहन मंत्र को शुद्ध बुद्धि और भक्ति भाव से जाप किया जाना चाहिए। इसके अलावा, भगवान गणेश की विधिवत पूजा के लिए आप पंचोपचार पूजा विधि अनुसरण कर सकते हैं, जिसमें स्नान, वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि शामिल होते हैं।
ॐ गं गणपतये नमः।
(ॐ गं गणपतये नमः।)
इस मंत्र का अर्थ है, "भगवान गणपति को नमस्कार।" यह मंत्र भगवान गणेश को पूजा के शुरुआती अवसर पर आवाहन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र के जाप से भगवान गणेश की कृपा मिलती है और उन्हें पूजा की यात्रा में सहायता मिलती है।
गणेश भगवान की पूजा करते समय, इस आवाहन मंत्र को शुद्ध बुद्धि और भक्ति भाव से जाप किया जाना चाहिए। इसके अलावा, भगवान गणेश की विधिवत पूजा के लिए आप पंचोपचार पूजा विधि अनुसरण कर सकते हैं, जिसमें स्नान, वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि शामिल होते हैं।
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