भगवान विष्णु के द्वारपाल कौन थे

भगवान विष्णु के द्वारपाल कौन थे

विष्णु भगवान के जय-विजय नामक द्वारपालों के बारे में जय और विजय दोनों ही भगवान विष्णु के विशेष द्वारपाल थे, जो वैकुंठ के प्रवेशद्वार पर रहते थे और भगवान विष्णु की सेवा करते थे। ये द्वारपाल भक्तों को भगवान के सन्देश और आशीर्वाद पहुंचाते थे और उनके द्वारा वैकुंठ के प्रवेश की अनुमति देते थे।
पुराणों के अनुसार, एक बार सनकादि मुनिगण (सनक, सनन्दन, संतना और संतकुमार) भगवान विष्णु के दर्शन करने वैकुंठ गए थे। जब वे वैकुंठ के द्वार पर जा रहे थे, तो जय और विजय ने उन्हें रोक लिया और उन्हें पहचान नहीं पाए। जय और विजय ने मुनिगण से विष्नु के द्वार्पण के लिए विनती की, जिससे सनकादि मुनिगण अपनी प्राकृत रूप में विष्णु के दर्शन कर सकें।भगवान विष्णु ने जय और विजय की भक्ति को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने उन्हें वैकुंठ से कुछ समय के लिए प्रत्याशा किया कि वे तीन जन्मों के लिए मनुष्य लोक में अवतार लेंगे। जय-विजय ने वैकुंठ से उतरने के लिए शर्त स्वीकार की, और उन्होंने तीन जन्मों में भगवान के द्वारा अवतार लेने का अनुभव किया।जय और विजय के तीन जन्मों में वे हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, रावण और कुम्भकर्ण के रूप में प्रत्यक्ष हुए, जिन्हें उन्होंने उनके पापों के कारण वध किया था। इसके बाद जय और विजय फिर से वैकुंठ में वापस आए और वहां अपनी सेवा को जारी रखते हैं।
कथा पुराणों में भगवान विष्णु के जय-विजय नामक द्वारपालों की महत्वपूर्ण कथा में से एक है।

भगवान विष्णु के द्वारपाल कथा:

जय और विजय वैकुंठ के द्वारपाल थे, जो भगवान विष्णु के आदेश पर उसके धर्मस्थलों के द्वार पर खड़े रहते थे। वे उन्हें प्रवेश करने वालों का नियंत्रण करते थे और साथ ही उन्हें भगवान की सेवा करने का अवसर भी प्रदान करते थे।
एक बार सनकादि मुनिगण (सनक, सनन्दन, संतना, और संतकुमार) भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम को पहुंचे और भगवान के दर्शन करने के इच्छुक थे। वे ध्यान योगी होते हैं, जो संसार से मुक्ति प्राप्त करके अनंत आनंद का अनुभव करने के लिए भगवान के दर्शन का इंतजार कर रहे थे।
सनकादि मुनिगण वैकुंठ के द्वार पर पहुंचे, जहां जय और विजय उन्हें रोक लिया। जय और विजय ने उन्हें पहचान नहीं पाया और उन्हें धर्मस्थलों में प्रवेश के लिए अनुमति नहीं दी। इससे सनकादि मुनिगण खुश नहीं थे और वे भगवान विष्णु की आराधना के लिए उनके दर्शन करने के लिए विक्षिप्त हो गए।
जय और विजय उन्हें रोकते हुए हँस रहे थे और उन्हें आपसी विवाद के कारण उन्हें प्रत्याशा दी कि वे तीन जन्मों के लिए मनुष्य लोक में अवतार लेंगे। इससे सनकादि मुनिगण को और भी विक्षिप्त हो गया और उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि वे जल्दी से उन्हें वैकुंठ में वापस ले जाएं।
भगवान विष्णु ने जय और विजय की प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें कहा कि उन्हें तीन जन्मों के लिए मनुष्य लोक में अवतार लेना होगा, परंतु भगवान के आज्ञानुसार उन्हें स्वर्ग में प्रवेश करने का अवसर भी दिया गया।
इसके बाद, जय और विजय तीन जन्मों के लिए मनुष्य लोक में अवतार लेते हैं और भगवान विष्णु के आदेशों के अनुसार हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, रावण और कुम्भकर्ण के रूप में प्रकट होते हैं और अपने पापों के कारण भगवान विष्णु द्वारा वध किए जाते हैं।
जय और विजय के तीन जन्मों के बाद, उन्होंने फिर से वैकुंठ के द्वार पर वापसी की और वहां से वे अपनी पूर्व अवस
्था में वापस आ गए और भगवान विष्णु की सेवा को जारी रखते हैं।
यह कथा पुराणों में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय की महत्वपूर्ण कथाओं में से एक है। इसके माध्यम से भक्तों को भगवान के आदेशों का पालन करने का महत्व और परिणाम समझाया जाता है।

जय और विजय वैकुंठ के द्वारपाल विष्णु भगवान यहां कुछ रोचक तथ्य 

  • द्वारपाल: जय और विजय भगवान विष्णु के मंदिरों के प्रवेशद्वारों के विशेष द्वारपाल थे।
  • देवता का अनुग्रह: जय और विजय ने भगवान विष्णु से प्राप्त किया था कि वे तीन जन्मों के लिए भूलोक में अवतार लेंगे।
  • त्रयोदशी तिथि: जय और विजय की उत्पत्ति त्रयोदशी तिथि को हुई थी, जो हिन्दू पंचांग में अमावस्या और पूर्णिमा के बीच आती है।
  • हिरण्यकशिपु का वध: जय और विजय का पहला अवतार हिरण्यकशिपु के रूप में हुआ था, जिसे नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने मारा था।
  • रावण का वध: दूसरे अवतार में, जय और विजय ने रावण के रूप में प्रकट हुए, जिसे भगवान राम ने वध किया था।
  • दूसरे अवतार में जनकी: जय और विजय का तीसरा अवतार सीता के पिता जनक के रूप में था।
  • तुलसीदास के काव्य में: जय और विजय के अवतार की कथा तुलसीदास के 'रामचरितमानस' में विस्तार से मिलती है।
  • प्रलय के समय: जय और विजय के अवतार के बाद, वे फिर से वैकुंठ के द्वारपाल बने।
  • श्रीमद्भागवत कथा: जय और विजय के अवतार की विस्तृत कथा श्रीमद्भागवत पुराण में मिलती है।
  • शुभ योगी: जय और विजय भगवान के विशेष भक्त होते थे और उनका मुख्य ध्येय भगवान की सेवा करना था।
ये थे कुछ रोचक तथ्य जो जय और विजय के बारे में हैं। उनकी कथा हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों में सम्मानित है और उनके अवतार से भक्तों को भगवान के अद्भुत लीला और धर्म संस्कृति का अनुभव होता है।

टिप्पणियाँ