भगवान शिव ने तांडव क्यों किया

भगवान शिव ने तांडव क्यों किया

भगवान शिव के तांडव का विवरण प्राचीन हिंदू पौराणिक ग्रंथों और तांत्रिक साहित्य में मिलता है। तांडव नृत्य शिव के एक अद्भुत और प्रभावशाली नृत्य का रूप है, जिसे उन्होंने विश्व विनाशक या विश्वनाश के भगवान के रूप में किया।इसमें कई विविध रूपों में भगवान शिव के तांडव का वर्णन किया गया है। कुछ स्थलों पर इसे दीर्घकालीन प्रलय का प्रतीक माना जाता है जो ब्रह्मांड के सृष्टि के अंत और नव-सृष्टि के आरंभ के बीच का काल है।तांडव का कारण भगवान शिव की भावनाओं, भावों, आनंद और उनके नायक भाव के साथ जुड़ा हुआ है। इस नृत्य के जरिए वे अपने भक्तों के साथ अभिनय करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में उनके आदर्श अनुयायियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। इसके जरिए, शिव भक्त विश्वास करते हैं कि उनका भगवान उनके साथ हमेशा रहता है और उन्हें समस्याओं से निकालने के लिए उनकी सहायता करता है।
Why Lord Shiva did Tandav
तांडव का एक अन्य विवरण वह है जहां शिव क्रोधित होते हैं और उनकी त्रिनेत्र और अनुयायियों के लिए आपातकालीन भयंकर रूपों में परिवर्तित होते हैं। यह उनकी अपार शक्ति को प्रदर्शित करता है और उनके सामरिक रूप को प्रतिष्ठित करता है।इस प्रकार, भगवान शिव के तांडव का कारण उनकी भावनाओं, उनके भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करना और उनके दिव्य स्वरूप का प्रदर्शन करना है।तांडव नृत्य भगवान शिव का अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध नृत्य है। इसमें भगवान शिव अपनी दिव्य शक्ति, भावनाओं, और उत्साह को प्रकट करते हैं। यहां तक कि तांडव नृत्य को कई ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में "प्रलय का नृत्य" या "महाप्रलय का नृत्य" के रूप में उल्लेख किया गया है। यह नृत्य शिव के विश्वासी और भक्तों के लिए धार्मिक महत्व का प्रतीक है।

तांडव नृत्य के 10 रहस्यों को रूप में व्याख्या किया  

  1.  सृष्टि और प्रलय: तांडव नृत्य शिव के भावों का प्रतीक है जिससे ब्रह्मांड की सृष्टि, संरक्षण और विनाश का क्रम दर्शाया जाता है। यह सृष्टि और प्रलय की अनन्तता को प्रतिष्ठित करता है।
  2.  शक्ति और संयम: तांडव नृत्य शिव की अपार शक्ति और उनके अद्वितीय संयम को प्रदर्शित करता है। यह उनकी पराक्रम, वीरता और सामरिक रूप का प्रतीक है।
  3. नाद और नृत्य: तांडव नृत्य में शिव के नृत्य
  4.  और ध्वनि के एक संगम का प्रदर्शन होता है। यह ध्वनि और नृत्य के मेल का प्रतीक है जो संसार की अनंतता को प्रतिष्ठित करता है।
  5. अर्धनारीश्वर स्वरूप: तांडव नृत्य में भगवान शिव द्वारा अर्धनारीश्वर स्वरूप का प्रदर्शन होता है, जो पुरुष और प्रकृति के मिलन को प्रतिष्ठित करता है। यह पुरुष और प्राकृतिक तत्वों के सामंजस्य का प्रतीक है।
  6. तपस्या: तांडव नृत्य शिव की अत्यंत गहरी ध्यान और तपस्या को प्रतिष्ठित करता है। इसे उनके भक्तों को साधना, समर्पण और सामरिक आदर्शों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
  7. मोक्ष का मार्ग: तांडव नृत्य शिव के अनन्त आनंद, सुख और मोक्ष के मार्ग को प्रतिष्ठित करता है। इसे उनके भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रेरित करने और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करने का प्रतीक माना जाता है।
  8. धर्म और न्याय: तांडव नृत्य शिव के धर्म और न्याय के सिद्धांत को प्रतिष्ठित करता है। यह उनके भक्तों को सत्य, न्याय और धर्म के प्रतीक के रूप में प्रेरित करता है।
  9. भय और विनाश का प्रतीक: तांडव नृत्य शिव के भय और विनाश के अस्तित्व को प्रतिष्ठित करता है। इसे उनके भक्तों को दुर्भाग्य, अवस्था और नाश के जीवनी अनुभव के लिए प्रेरित करने का प्रतीक माना जाता है।
  10. सृजनशीलता: तांडव नृत्य शिव की सृजनशीलता, कला और संस्कृति को प्रतिष्ठित करता है। यह उनके भक्तों को कलात्मक उत्प्रेरणा और सृजनात्मकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
  11. एकता और विभिन्नता: तांडव नृत्य शिव के अनेक आश्रय और अवतारों के मेल को प्रतिष्ठित करता है। यह विभिन्नता को समर्पित करने, एकता को प्रतिष्ठित करने और विविधता को स्वीकार करने का प्रतीक है।
कुछ मुख्य रहस्य जो तांडव नृत्य के पीछे हैं। यह भगवान शिव के विभिन्न आयामों का प्रतिष्ठान करता है और उनके भक्तों को धार्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

तांडव के प्रवर्तक

तांडव के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं रावण, देवी सती और माता पार्वती। यह व्यक्तियाँ तांडव नृत्य को प्रारंभ करने के लिए कहानिक रूप से जानी जाती हैं।
रावण: रावण, लंका के राजा, भगवान शिव का एक बड़ा भक्त था। उन्होंने बहुत तपस्या की और शिव उनकी प्रतीति के प्रशंसक बन गए। एक बार, उन्होंने कैलाश पर्वत को भी हिलाने की कोशिश की, जिससे शिव ने उन्हें दबोच लिया। तब रावण ने तांडव नृत्य का प्रारंभ किया, जिससे शिव ने उन्हें छोड़ा। इसलिए रावण को तांडव के प्रवर्तक के रूप में माना जाता है।
देवी सती: देवी सती, पार्वती देवी का पूर्वजन्म रूप थीं। एक बार, जब उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उन्हें अपमानित किया, तो सती ने अपने शरीर को भस्म कर दिया। इसके बाद शिव ने उनके शरीर को ले लिया और उनका तांडव नृत्य किया। इसलिए देवी सती को तांडव के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।
माता पार्वती: माता पार्वती, भगवान शिव की पत्नी हैं और उन्हें शक्ति और सृष्टि की प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। विभिन्न पौराणिक कथाओं में उन्हें तांडव नृत्य करते हुए देखा गया है, जिससे उनका रूप भगवान शिव के तांडव के प्रवर्तक के रूप में भी प्रतिष्ठित है।
कुछ मुख्य व्यक्तियाँ जिन्होंने तांडव नृत्य का प्रारंभ किया और इसे अपनी कथाओं में महत्वपूर्ण रूप से दर्शाया।

तांडव स्तोत्र 

तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और गुणों का वर्णन करने वाले एक प्रमुख स्त्रोत है। यह स्तोत्र शिव भक्तों द्वारा प्रेम और आदर से गाया जाता है और उनकी भक्ति को उत्साहित करता है। तांडव स्तोत्र के शब्द और भाव भगवान शिव की अनन्त शक्ति, वीरता, सौंदर्य और तेज को व्यक्त करते हैं।
यहां तांडव स्तोत्र का एक अंश है
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
अर्थात्:
नमामीशं - मैं ईश्वर को नमस्कार करता हूँ,
ईशान - जगत के स्वामी,
निर्वाणरूपं - निर्वाण के स्वरूप,
विभुं - सर्वव्यापक,
व्यापकं - सबमें समाये हुए,
ब्रह्मवेदस्वरूपं - ब्रह्म और वेद के स्वरूप,
निजं - स्वयं का,
निर्गुणं - गुणरहित,
निर्विकल्पं - कल्पनारहित,
निरीहं - सर्वासक्तिरहित,
चिदाकाशम् - चैतन्यमय आकाश,
आकाशवासं - आकाश में वास करने वाले,
भजेऽहम् - मैं उनका भजन करता हूँ।
यह स्तोत्र शिव के नामों, गुणों और स्वरूप का स्तवन करता है और भक्तों को शिव के असीम दिव्यता का आदर्श प्रदान करता है। तांडव स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की पूजा, ध्यान और भक्ति में उचित माना जाता है।

तांडव नृत्य 

तांडव नृत्य भगवान शिव का प्रमुख नृत्य रूप है। इस नृत्य में भगवान शिव अपनी दिव्यता और दैवी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। तांडव नृत्य को चार प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:
  1. अनंततांडव (Anant Tandav): यह तांडव नृत्य भगवान शिव के अद्वितीय रूप को प्रदर्शित करता है। इसमें उनकी दिव्यता, शक्ति और सर्वव्यापकता का प्रतीक्षा कीय जाता है।
  2. रुद्रतांडव (Rudra Tandav): इस तांडव नृत्य में भगवान शिव अपनी क्रोधी, विषमानन्दित और वीरता पूर्ण रूप से प्रगट होते हैं। इसमें उनका दर्शन भयंकर और विनाशकारी होता है।
  3. उमातांडव (Uma Tandav): इस तांडव नृत्य में भगवान शिव अपनी दिव्य सौंदर्य, प्रेम और सुंदरता का प्रदर्शन करते हैं। इसमें उनकी आद्याशक्ति, सौंदर्य और सुंदर संगतियों का वर्णन किया जाता है।
  4. काळतांडव (Kaala Tandav): इस तांडव नृत्य में भगवान शिव अपनी काली और विनाशकारी रूप विभाजित करते हैं। इसमें उनकी भयंकरता, क्रोध और विनाशकारिता का दर्शन किया जाता है।
ये चार प्रकार के तांडव नृत्य भगवान शिव की महिमा, शक्ति और विभिन्न रूपों को प्रकट करते हैं। इन नृत्यों के माध्यम से विश्व की सृष्टि, स्थिति और प्रलय की प्रक्रिया का प्रतीक्षा कीया जाता है।

शिव का तांडव नृत्य 

शिव का तांडव नृत्य भगवान शिव की एक प्रमुख नृत्य रस और दिव्यता का प्रदर्शन करने का एक प्रमुख तरीका है। यह नृत्य उनकी शक्ति, ऊर्जा और रौद्र स्वरूप को प्रकट करता है। तांडव नृत्य के दौरान, भगवान शिव अपनी आद्याशक्ति, वीरता और विनाशकारी स्वरूप को प्रकट करते हैं।

शिव के तांडव नृत्य की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं 

  1. रौद्र स्वरूप: तांडव नृत्य में भगवान शिव अपने रौद्र स्वरूप को प्रगट करते हैं। उनके आंग, आँखें और मुखौटे की भयानकता और उत्कटता दर्शाई जाती है। इस नृत्य में उनका आक्रोश, क्रोध और अद्भुतता प्रकट होती है।
  2. लोकरंग: शिव का तांडव नृत्य विशेष रूप से लोकरंग में प्रस्तुत होता है। इसमें उनकी आत्मा की उग्रता, उत्साह और आवेशकर भावना का प्रदर्शन होता है जो लोगों को प्रभावित करता है।
  3. भूत-भविष्य की प्रतीक्षा: तांडव नृत्य में शिव का नृत्य महाप्रलय, सृष्टि और प्रलय की प्रतीक्षा को दर्शाता है। इसके माध्यम से वे अपनी भूतपूर्व क्रियाओं को आविष्कार करते हैं और भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाते हैं।
शिव का तांडव नृत्य एक प्रमुख रूप से भगवान शिव की महिमा, दिव्यता और अद्भुतता को प्रकट करता है। यह नृत्य भक्तों को उनके सौंदर्य, प्रेम और शक्ति के साथ जोड़ता है और उन्हें शिव के सानिध्य में ले जाता है। है। तांडव नृत्य भगवान शिव का एक नृत्य रूप है जिसमें वे अपनी दिव्यता और विभिन्न रूपों का प्रदर्शन करते हैं। तांडव नृत्य उनकी शक्ति, उग्रता, वीरता, और विनाशकारी स्वरूप को प्रकट करता है।यद्यपि तांडव नृत्य के द्वारा सीधे ज्ञान प्राप्ति का वर्णन नहीं होता है, लेकिन भगवान शिव संबंधित ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में ज्ञान, समझ, और बोध की महत्ता को बताया गया है। शिव पूर्णतः ज्ञानवान और अनंत ज्ञान का स्रोत माने जाते हैं। उन्हें सर्वज्ञता की अद्भुत शक्ति अनुभव होती है और वे समस्त जगत् का ज्ञानी रूप हैं। इसलिए, भगवान शिव के तांडव नृत्य का अनुसरण करके मानव अपने मन, शरीर, और आत्मा के साथ ज्ञान की प्राप्ति की प्रार्थना कर सकते हैं।तांडव नृत्य की प्राकृतिक गति, उत्कटता, और उत्साह से भरी हुई होती है, जिसका प्रभाव साधक के मन को शांत, स्थिर, और ज्ञान प्राप्त करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, शिव की पूजा और ध्यान के माध्यम से भी ज्ञान प्राप्ति की प्रार्थना की जा सकती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए सद्गुरु के मार्गदर्शन में रहना भी महत्वपूर्ण होता है।

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