सरस्वती वंदना माँ शारदे कहाँ तू भजन के शब्दों का अर्थ निम्नलिखित
सरस्वती वंदना माँ
"सरस्वती वंदना माँ शारदे कहाँ तू" भजन के शब्द:
सरस्वती वंदना, माँ शारदे कहाँ तू।
कहाँ गई तू वीणावादना, कहाँ तू बलखाये बू।
ज्ञान की देवी सरस्वती, वीणा वाजे हाथ।
बरसते तू ब्रह्माज्ञान, कर मुझको ज्ञान-स्नान॥
प्रदीप तेरे मन में, ज्ञान की जो आग।
जगमग कर ज्ञान के पंख, विचार की धारा बहाग॥
वीणा बजाते हाथ में, माला मां की कई।
सुधा का प्याला रस ले, जीवन रंग रचाई॥
चेहरे पे आँचल बिके, गलियों में माला हार।
कोयल की चुग लिए आवे, माँ सरस्वती ध्यान की धार॥
कविता का कुम्भ तू, विचारों की बहार।
ज्ञान दे मुझको, मां, कुछ ऐसा आवार।
सरस्वती वंदना, माँ शारदे कहाँ तू।
कहाँ गई तू वीणावादना, कहाँ तू बलखाये बू॥
यह भजन मां सरस्वती की पूजा, आराधना, और भक्ति का अद्भुत अभिव्यक्ति है, जिसमें भक्त उनसे ज्ञान और कला की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। इस भजन के शब्द वीणावादना, विचार, ज्ञान, और कविता के माध्यम से मां सरस्वती की महत्वपूर्ण गुणों को प्रकट करते हैं।
सरस्वती वंदना माँ शारदे कहाँ तू" भजन के शब्दों का अर्थ निम्नलिखित होता है
सरस्वती वंदना, माँ शारदे कहाँ तू।
कहाँ गई तू वीणावादना, कहाँ तू बलखाये बू॥
यह भजन भक्त की प्रार्थना का प्रतिफल है कि मां सरस्वती, जिन्हें विद्या, कला, और ज्ञान की देवी माना जाता है, वे कहाँ हैं। भक्त उन्हें वीणा बजाते हुए और ज्ञान का प्रकटकर्ता के रूप में चित्रित करते हैं।
ज्ञान की देवी सरस्वती, वीणा वाजे हाथ।
बरसते तू ब्रह्माज्ञान, कर मुझको ज्ञान-स्नान॥
इन पंक्तियों में भक्त उनके ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और उन्हें ब्रह्मज्ञान की वर्षा करने की आशीर्वाद मांगते हैं।
प्रदीप तेरे मन में, ज्ञान की जो आग।
जगमग कर ज्ञान के पंख, विचार की धारा बहाग॥
भक्त उनके मन में ज्ञान की प्रकाशमान आग की बात करते हैं, जो विचारों की धारा को प्रेरित करती है और ज्ञान के पंख फैलाती है।
वीणा बजाते हाथ में, माला मां की कई।
सुधा का प्याला रस ले, जीवन रंग रचाई॥
इन पंक्तियों में भक्त उनके हाथ में वीणा और माला के साथ दिखाई देते हैं, जो उनके गुणों की प्रतीक हैं। वे उनसे जीवन की रंग-रेखा का आनंद लेते हैं।
चेहरे पे आँचल बिके, गलियों में माला हार।
कोयल की चुग लिए आवे, माँ सरस्वती ध्यान की धार॥
भक्त चेहरे पर बिखरे हुए आँचल और गलियों में माला के वर्णन से उनकी आराधना करते हैं और उनके ध्यान में रत ब्रिंग कोयल की तरह आते हैं।
कविता का कुम्भ तू, विचारों की बहार।
ज्ञान दे मुझको, मां, कुछ ऐसा आवार।
यह पंक्तियाँ भक्त की उम्मीद और आशा को दर्शाती हैं कि मां सरस्वती विचारों की बहार हैं और उनसे ज्ञान का वरदान मांगते हैं।इस भजन के माध्यम से भक्त विद्या, कला और ज्ञान की मां सरस्वती की पूजा और आराधना करते हैं, और उनसे अपने जीवन में उन्नति की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं।
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